राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों के उप चुनाव: प्रमुख दलों के उम्मीदवारों की तस्वीर तो हुई साफ.. लेकिन चुनाव प्रचार में कांग्रेस से भाजपा आगे
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट
राजस्थान में सात सीटों पर हो रहे विधानसभा उप चुनावों के लिए नामांकन भरने की अन्तिम तिथि से एक दिन पहले प्रमुख दलों के उम्मीदवारों की तस्वीर तो साफ हो गई है लेकिन चुनाव प्रचार में कांग्रेस से भाजपा बहुत आगे चल रही है जबकि कांग्रेस में अभी तक सन्नाटा ही पसरा था। हालांकि चालीस स्थानीय नेताओं को स्टार प्रचारक बनाने के साथ ही खबर आ रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा और विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जुली पार्टी के उम्मीदवारों की नामांकन रैलियों में शामिल होंगे। शुक्रवार को दौसा की नामांकन रैली में इन नेताओं ने भाग भी लिया है। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट संभवत विदेश में है इसलिए उसे लेकर कोई अपग्रेड नहीं आ रहा है।
भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने सभी सात सीटों पर प्रचार अभियान का शुभारंभ करते हुए पार्टी के धुंआधार प्रचार में जुट गए है। उन्होंने पार्टी के असंतुष्ट एवं बागी उम्मीदवार को भी अपनी ओर से संतुष्ट करने का हर संभव प्रयास किया है। वे अपने उम्मीदवार की हर नामांकन रैली में भी जा रहे है। उनके साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ और केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल भूपेन्द्र यादव गजेंद्र सिंह शेखावत आदि भी रैलियों में भाग ले रहे है। भाजपा ने चुनाव तिथियों की घोषणा होने के बाद सबसे पहले छह सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने का प्रयास किया था जिसमें कमोबेश वे सफल भी रहे।
इधर कांग्रेस द्वारा नामांकन भरने की अंतिम तिथि से ठीक पहले घोषित सातों उम्मीदवारों में झुंझुनूं और अलवर जिले की रामगढ़ सीट को नामों को छोड़ कर अन्य उम्मीदवारों के नामों को लेकर अंतर्विरोध की स्थिति बनी हुई है। सलूंबर में पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार रेशम मीणा का खुले आम विरोध किया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि कांग्रेस इस बार भी एक जूट होकर उप चुनाव नहीं लड़ी तो कोई आश्चर्य नहीं है कि उन्हें उन सीटों पर भी पराजय का मुंह देखना पड़ सकता है जिन पर पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी विजय हुई थी।
कांग्रेस पार्टी इन दिनों प्रदेश में काफी असहज दिख रही है क्योंकि इंडिया गठबंधन के साथी दलों आर एल डी और भारतीय आदिवासी पार्टी बाप जिन्होंने लोकसभा चुनाव साथ मिल कर लड़ा था, वे इस बार कांग्रेस से छिटक गए है ।फलस्वरूप सात विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होना तय लगता है। यदि ऐन वक्त पर कोई चमत्कार हो जाय तो स्थिति बदल भी सकती है। कांग्रेस ने इस बार सातों विधानसभा सीटों पर नए चेहरों पर दांव खेला हैं।
राज्य की सात विधानसभा सीटों झुंझुनू, दौसा, टोंक जिले की देवली-उनियारा, नागौर जिले की खींवसर, डूंगरपुर जिले की चौरासी, सलूंबर और अलवर जिले की रामगढ़ में होने वाले उपचुनाव के लिए नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 30 अक्टूबर है। उसके बाद ही हकीकत में उम्मीदवारों की वास्तविक तस्वीर साफ होगी तथा इन सभी सीटों पर 13 नवंबर को मतदान होगा और 23 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे।
भाजपा ने गुरुवार को अपने एक शेष प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर दिया और चौरासी विधानसभा सीट से कारीलाल ननोमा को अपना प्रत्याशी बनाया है। इससे इस सीट पर कांग्रेस भाजपा और बाप पार्टियों में त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। दूसरी ओर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के अध्यक्ष सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को खींवसर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में प्रत्याशी घोषित किया है। वहां भी कांग्रेस भाजपा और आर एल डी के मध्य त्रिकोणीय मुकाबला की स्थिति बन गई है।
प्रदेश में उप चुनावों की घोषणा के बाद भाजपा ने सबसे पहले 6 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया था। बीजेपी ने दौसा से जगमोहन मीना, सलूंबर से शांता देवी मीना, झुंझनूं से राजेन्द्र भांबू, रामगढ़ में सुखवंत सिंह, खींवसर से रेवतराम डांगा और देवली-उनियारा से राजेन्द्र गुर्जर को चुनावी रण में उतारा है। वहीं, शेष बची चौरासी सीट पर भी उम्मीदवार का ऐलान कर कारीलाल ननोमा को अपना उम्मीद्वार बनाया है। इधर, कांग्रेस ने दौसा से दीनदयाल बैरवा, सलूंबर से रेशम मीणा, झुंझुनूं से अमित ओला, रामगढ़ से आर्यन जुबेर खान, खींवसर से रतन चौधरी, देवली उनियारा से कस्तूर चंद मीना और चौरासी से महेश रोत को टिकट दिया है।
इसके साथ ही प्रदेश की सात सीटों में से चार सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने का सीधा मुकाबला तय हो गया है। वहीं तीन सीटों सलूंबर,चौरासी और खींवसर में इण्डिया गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के राज कुमार रोत और आरएलपी सुप्रीमों हनुमान बेनीवाल द्वारा अपने उम्मीदवार खड़े करने से त्रिकोणीय मुकाबला की स्थिति बन गई हैं। कुल मिला कर प्रदेश में उप चुनाव काफी रोमांचक और रोचक बन गया है। आगामी 30 अक्टूबर को नाम वापसी के अंतिम दिन चुनाव की तस्वीर और भी अधिक स्पष्ट हो जाएगी।
वैसे प्रायः यह माना जाता है उप चुनावों में सत्ताधारी दल को अधिक फायदा मिलता है और भाजपा ने उम्मीदवारों की सर्व प्रथम घोषणा के बाद चुनाव जीतने की रणनीति बना कर सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ने का जतन कर दिखाया है। जबकि चुनाव प्रचार अभियान में कांग्रेस अभी काफी पीछे चल रही हैं। देखना है इस बार राजस्थान का चुनावी रण का परिणाम किस दिशा की ओर जाएगा ?