Story of a Bear Family: चमत्कार या षड्यंत्र नहीं, मनुष्य और भालू का सहज प्रेम

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Story of a Bear Family: चमत्कार या षड्यंत्र नहीं, मनुष्य और भालू का सहज प्रेम

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हमारे बचपन में सँपेरे ,बंदर वाले और भालू नचाने वाले हम बच्चों को रोमांच और आनंद देते थे .हाथी और भाग्यवक्ता नंदी भी जब तब गली मोहल्लों में मजमा लगाते रहते थे .अब यह सब प्रतिबंधित है और उचित ही है .

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क़िस्सा दो साल पहले का है . शहडोल संभाग का बताया गया एक वीडीओ अंश वायरल हुआ .प्रचलित की गई कहानी में एक बाबा को भजन गाते और भालुओं को भजन सुनते दिखाया गया था .धार्मिक और भजन प्रेमी भालू व्हाट्सएप से लेकर ख़बरिया चैनलों पर छा गए .हमने पता किया तो हमारे सुपर कॉप याने ADG साहब ने बताया कि मप्र और छत्तीस गढ़ के सीमांत पर नक्सल प्रभावित इलाक़े में यह वीडीओ फ़िल्माया गया है .इसकी सच्चाई और इसके पीछे क्या गणित है जानने एक दिन हम लोग अचानक वहाँ गये .घनघोर जंगलों और एक छोटी नदी पार कर हमारी टीम उस पहाड़ी पर चढ़ी जहाँ उन बाबाजी का आश्रम था .छत्तीसगढ़ के सशस्त्र पुलिस बल और हमारे मप्र पुलिस के सशस्त्र बल अपनी अपनी सीमा पर सजग सुरक्षा घेरा बनाये हुए थे इसलिये हम लोग निश्चिंत थे .बाबाजी से राम राम हुई तो पता चला वे शहडोल ज़िले के ब्यौहारी के निवासी हैं.संसार से ऊबकर यहाँ अरण्य में आ बसे हैं .एक बैगा भगतन भी प्रभु सेवा में यहाँ हैं.

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बाबाजी ने बताया कि सूर्य ढलने के कुछ देर बाद जैसे ही अन्धेरा होता है ,भालू परिवार एक एक कर आता है .उनके हाथ से खाद्य सामग्री लेकर वापस चला जाता है .आप लोग शांत रहें ,हथियार न दिखायें तो ही भालू दर्शन होगा .हमारे अंग रक्षक और शेष पुलिस बल उस गुफा नुमा आश्रम के बिल्कुल पास किंतु ओट में बैठ गए .अँधेरा हो चला था .हम सब उस ओर नज़रें गड़ाये हुए बैठे थे जहाँ से भालू प्रकट होने वाले थे .बेचैनी बढ़ रही थी .कुछ देर बाद एक काला धब्बा किसी प्रेत की तरह आश्रम की ओर बढ़ता दिखा .धीरे धीरे वह बड़ा होने लगा .यह भालू ही था .आश्रम के और पास आने पर हमने एक बच्चे को उसकी पीठ पर चिपका पाया .ओह यह मादा भालू है .वह आश्रम में आई .बाबाजी ने उसे प्रेम से कोई तरल दलिया जैसा खिलाया उसने भर पेट खाया .हम अपरिचित आगंतुकों की ओर देखा .अपने बच्चे को लिया और जंगल में वापस चली गई .थोड़ी देर बाद एक और मादा भालू आई .हमें देखकर ठिठकी तो बाबाजी ने उसे पुचकारा .वह आश्वस्त हुई .भोजन किया और चली गई .अब बारी हमारे लौटने की थी .रात को जंगल में सूखे पत्तों पर चलते हुए खड खड की आवाज सुनते हुए हम लौट रहे थे .यह मनुष्य और भालू का सहज और प्रेम पूर्ण सह जीवन का क़िस्सा था .कोई चमत्कार या षड्यंत्र नहीं था .