दीपोत्सव 2024: पंच दिवसीय ज्योति पर्व – दीपावली गुरुवार की 

ज्योतिर्विद पंडित राघवेंद्र रवीशराय गौड़ मन्दसौर 

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दीपोत्सव 2024: पंच दिवसीय ज्योति पर्व – दीपावली गुरुवार की 

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ज्योतिर्विद पंडित राघवेंद्र रवीशराय गौड़ मन्दसौर 

प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मन्दसौर 

सनातन धर्म अनुरागी ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के अनेक देशों में , अलग अलग मतावलंबियों , समाजों , जातियों , प्रान्तों , शासन प्रशासन , में दीपावली को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है । दीपोत्सव ज्योति पर्व पांच दिन तक चलने वाला दीपोत्सव ‘पंचपर्व’ कहलाता है। इन पांच दिनों में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन होता है। इसके विधान हैं ।

 

दीपों के उत्सव की पौराणिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महिमा सर्वविदित है। दीपावली ऐसा त्योहार है, जो उत्साह और उल्लास के साथ विभिन्न प्रांतों में अनेक कृत्यों के साथ मनाया जाता है। वैसे यह पांच दिनों तक अनवरत चलने वाला उत्सव-पर्व है, जो धन त्रयोदशी धन तेरस से आरम्भ होकर भाई दूज भाई बीज तक चलता है। दीपावली इनके केंद्र में है। पांच दिन तक चलने वाला दीपोत्सव ‘पंचपर्व’ कहलाता है। इन पांच दिनों में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन होता है, जो धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर न्याय के प्रणेता भगवान चित्रगुप्त के लिए दीपदान तक चलता है।

 

रात्रि व्यापिनी अमावस्या के कारण से 31 अक्तूबर को दीवाली पूजन का निर्णय सही

 

विद्वान सभा ने विमर्श उपरांत दिवाली का पर्व एक नवंबर के स्थान पर 31 अक्तूबर को मनाए जाने का सामूहिक निर्णय लिया। इसी तरह काशी, मथुरा, द्वारिका एवं उज्जैन के विद्वानों ने रात्रि व्यापिनी अमावस्या होने के कारण 31 अक्तूबर को दिवाली मनाए जाने का निर्णय लिया है।

 

♦️शुक्रवार 1 नवंबर को क्यों नहीं ?

 

स्कंदपुराण के द्वितीय भाग वैष्णवखंड के कार्तिकमहात्म्य के 10वें अध्याय “दीपावली कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा महात्म्य” नामक अध्याय के श्लोक क्रमांक 11 में भगवान श्री ब्रह्माजी ने स्पष्ट कह दिया…

“माङ्गल्यंतद्दिनेचेत्स्याद्वित्तादितस्यनश्यति।

बलेश्चप्रतिपद्दर्शाद्यदिविद्धं भविष्यति॥”

अर्थात् –

अमावस्या विद्ध बलि प्रतिपदा तिथि में मोहवशात् माङ्गल्य कार्य हेतु अनुष्ठान करने से सारा पूजन फल नष्ट हो जाता है।”

 

♦️पंच दिवस ज्योति पर्व

 

कुबेर एवं धन्वंतारि की धन तेरसपूजा

29 अक्‍टूबर मंगलवार

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी धन तेरस के नाम से जानी जाती है। पौराणिक विद्वानों के अनुसार धसतेरस में ‘धन’ शब्द का संबंध संपत्ति के अधिपति कुबेर के साथ आरोग्य के प्रदाता धन्वन्तरि से भी है। इसीलिए इस दिन चिकित्सक लोग अमृतधारी भगवान धन्वन्तरि का पूजन करते हैं। प्राय: इस दिन से दीप जलाने की शुरुआत होती है, और पांच दिनों तक जलाए जाते हैं।लोकाचार में प्रसिद्ध है कि इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के धातुमय पात्र अक्षय सुख देते हैं। इस नाते लोग नए बर्तन या दूसरे नए सामान धनतेरस के दिन ही खरीदते हैं। एक परंपरा यह भी है कि इस दिन नव-निधियों के नाम का उच्चारण किया जाए। नौ निधियों के नाम हैं – महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व।

धनतेरस शुभ मुहूर्त

धनतेरस की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर को सुबह 10 बकर 31 मिनट पर शुरू हो जाएगी और तिथि का समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर होगा.

 

धनतेरस का खरीदारी मुहूर्त

धनतेरस के दिन इस बार त्रिपुष्कर योग बन रहा है, जिसमें खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है.

पहला मुहूर्त- 29 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 31 मिनट से लेकर 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा.

दूसरा मुहूर्त- दोपहर 11 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक.

गोधूलि मुहूर्त- गोधूलि मुहूर्त में भी खरीदारी की जा सकती है. इस दिन गोधूली मुहूर्त शाम 5 बजकर 38 मिनट से लेकर 6 बजकर 04 मिनट तक रहेगा.

 

पूजन का मुहूर्त

धनतेरस का पूजन शाम को किया जाता है. 29 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 31 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 31 मिनट तक पूजन किया जा सकता है. यानी धनतेरस पूजन के लिए 1 घंटा 42 मिनट का मुहूर्त मिलेगा.

 

नरक चतुर्दशी या रूप चौदस

 

बुधवार 30 अक्‍टूबर
दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाली चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध किया था। परम्परा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है, इसलिए इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।

 

दीपावली इस बार कब मनाना उचित ?

 

दीपावली इस साल 31 अक्‍टूबर, दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। वैदेही, ऋषिकेश और विश्‍वविद्यालय इन तीनों पंचांगों में दी गई जानकारी के अनुसार दीपावली का पर्व सर्वसम्‍मत रूप से 31 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए। दीपावली का त्‍योहार कार्तिक मास की अमावस्‍या तिथि को मनाया जाता है और प्रदोष काल के बाद दीपावली की पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष अमावस्‍या तिथि 31 अक्‍टूबर को दोपहर के बाद 3 बजकर 52 पर शुरू होकर 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। यानी कि 31 अक्‍टूबर की रात को अमावस्‍या तिथि विद्यमान रहेगी। इसलिए 31 अक्‍टूबर की रात को ही दीपावली मनाना तर्कसंगत होगा। 31 अक्‍टूबर को रात में ही लक्ष्‍मी पूजन, और निशिथ काल की पूजा की जाएगी। मध्य रात्रि की पूजा भी 31 अक्‍टूबर की रात को ही करना सर्वमान्‍य होगा। जबकि अमावस्‍या से जुड़े दान पुण्‍य के कार्य और पितृ कर्म आदि 1 नवंबर को सुबह के वक्‍त करना उचित होगा।

 

ज्योति पर्व है दीपोत्सव 31 अक्टूबर गुरुवार

कार्तिक अमावस्या सनातन प्रकाश पर्व के रूप में स्थापित है। यह दिन अंधेरे की अनादि सत्ता को अंत में बदल देता है, जब छोटे-छोटे ज्योति-कलश दीप जगमगाने लगते हैं। यह दिन लक्ष्मी पूजा के लिए प्रशस्त है। किसानों की बरसाती फसल दीवाली से पहले पककर तैयार हो जाती है। इस नाते यह आनंद-वितरण करने वाला उत्सव है। इस दिन सायं (जिसे प्रदोषकाल कहा जाता है) माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है।

गणपति, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा भी माता लक्ष्मी के साथ होती है। सुख, सौभाग्य और सम्पत्ति की प्रदात्री भगवती सिंधुजा की पूजा नए धान और उपलब्ध पत्र-पुष्पों से होती है। स्पष्ट है कि माता लक्ष्मी के रूप में यह प्रकृति पूजन है जो शताब्दियों से चला आ रहा है। अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्विी माता को ही दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। इसी कारण लक्ष्मी पूजन की मुख्य सामग्री गन्ना और अन्य ऐसे पदार्थ हैं, जो सर्वकाल और सार्वभौम सुलभ हैं।

 

तिथि निर्णय एवं मुहूर्त :-

वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष अमावस्या तिथि 31 अक्तूबर को दोपहर 3 बजकर 12 मिनट पर शुरू हो जाएगी, जो 01 नवंबर की शाम तक रहेगी।

इस तरह से दिवाली पर सभी तरह की वैदिक स्थितियां 31 अक्तूबर के दिन लागू रहेगी जबकि 01 नवंबर 2024 को अमावस्या तिथि सूर्योदय के दौरान रहेगी लेकिन समाप्ति शाम को 06 बजकर 16 मिनट पर हो जाएगी।

 

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 31 अक्तूबर गुरुवार

 

पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की प्रदोषव्यापिनी अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।

31 अक्तूबर को लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए पहला शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में ही प्राप्त हो रहा है।

31 अक्तूबर को प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट लेकर 08 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। वहीं वृषभ लग्न शाम 06 बजकर 25 मिनट से लेकर रात को 08 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। ऐसे में गृहस्थ लोग इस समय के दौरान लक्ष्मी पूजन करें।

 

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त ( निशीथकाल) 2024- 31 अक्तूबर

तंत्र-मंत्र साधना और तांत्रिक क्रियाओं के लिए निशीथ काल में पूजा करना ज्यादा लाभकारी माना जाता है।  31 अक्तूबर को निशीथ काल में पूजा करने लिए शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 39 मिनट से लेकर 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।

 

स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का महत्व

मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था और स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजन करने से महालक्ष्मी स्थिर रहती हैं। ऐसे में दिवाली पर प्रदोष काल में पड़ने वाले वृषभ लग्न में ही महालक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन करना अति उत्तम रहेगा।

 

पंचांग के अनुसार 31 अक्तूबर को वृषभ लग्न शाम को 6:25 से लेकर रात्रि 8:20 तक रहेगा। साथ ही इस समय प्रदोष काल भी मिल जाएगा। प्रदोषकाल, वृषभ लग्न और चौघड़ियां का ध्यान रखते हुए लक्ष्मी पूजन के लिए 31 अक्तूबर की शाम को 06:25 से लेकर 7:13 के बीच का समय सर्वोत्तम रहेगा। कुल मिलाकर 48 मिनट का यह मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।

 

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट 02 नवंबर

अमूमन दिवाली के दूसरे दिन ही गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा की जाती है। लेकिन इस साल 1 नवंबर को रिक्त तिथी के कारण अगले दिन यानी 02 नवंबर को मनाया जाएगा। अन्नकूट पूजा गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण से समर्पित है।

 

दीपावली का दूसरा दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है।

ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। अत: तब से आज तक यह विष्णु विजय दिवस कहलाता है।

 

यशोदानंदन श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेन्द्र के मानमर्दन हेतु गोवर्धन को धारण किया था। अत: स्थान-स्थान पर नव धान्य के बने हुए पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। वामनपुराण में इसे वीर-प्रतिपदा भी कहा गया है। इस दिन गो माता एवं बैलों की विशिष्ट पूजा की जाती है। यह दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर 3 पगों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेंद्र के मानमर्दन के लिए गोवर्धन को धारण किया था। शहर में जगह-जगह नवधान्य के बने पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित होता है।

 

गोवर्धन पूजा मुहूर्त –

सुबह गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 5 बजकर 34 मिनट से लेकर 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा. जिसमें भक्तों को पूजा करने के लिए कुल 2 घंटे 12 मिनट का समय मिलेगा. इसके बाद गोवर्धन पूजा का दूसरा मुहूर्त शाम 3 बजकर 23 मिनट से लेकर 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगा. जिसमे भक्तों को कुल 2 घंटे 12 मिनट का समय मिलेगा.

 

प्रेम का प्रतीक भाई दूज 3 नवंबर

 

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को एक सुन्दर उत्सव होता है, जिसका नाम है यमद्वितीया या भाई दूज। भविष्य पुराण में आया है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था। अत: आज भी इस दिन समझदार लोग अपने घर मध्याह्न का भोजन नहीं करते। लोगों को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए, जिससे कल्याण और समृद्धि प्राप्त होती है।

 

इसी दिन भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए और इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान भी करना चाहिए।

मुहूर्त

दोपहर बाद 01 बजकर 10 मिनट से लेकर 03 बजकर 22 मिनट तक है । इसके अतिरिक्त भी आप चोघड़िया विचार कर तिलक पूजन आदि कर सकते है ।

 

दीपावली पर इस बार विशेष रूप से करे ये सात अचूक उपाय और आर्थिक समस्या से निजात पाएं

 

इस बार दिवाली पर आप करें परंपरागत ऐसे उपाय जिन्हें करने से आपको कर्ज से मुक्ति मिल सकती है और धन संबंधी समस्या का समाधन हो सकता है। दीपावली को माता लक्ष्मी को कमल का फूल चढ़ाया जाता है और घर में नई झाड़ू लाई जाती है साथ ही एक झाड़ू मंदिर में भी दान की जाती है।…

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तो आजमाएं ये लक्ष्मी प्रिय सात उपाय।

 

1. चांदी का ठोस हाथी : विष्णु तथा लक्ष्‍मी को हाथी प्रिय रहा है इसीलिए घर में ठोस चांदी या सोने का हाथी रखना चाहिए। ठोस चांदी के हाथी के घर में रखे होने से शांति रहती है और यह राहू के किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव को होने से रोकता है।

 

2. कौड़ियां : पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। ये कौड़ियां धनलक्ष्मी को आकर्षित करती हैं।

 

3. चांदी की गढ़वी : चांदी का एक छोटा-सा घड़ा, जिसमें 10-12 तांबे, चांदी, पीतल या कांसे के सिक्के रख सकते हैं, उसे गढ़वी कहते हैं। इसे घर की तिजोरी या किसी सुरक्षित स्थान पर रखने से धन और समृद्धि बढ़ती है। दीपावली पूजन में इसकी भी पूजा होती है।

 

4. मंगल कलश : एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।

 

5.सात मुखी दीपक : माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहे, इसके लिए हमें उनके समक्ष सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए। दीपक में घी होना चाहिए। दीपावली पर यह कार्य अवश्य कीजिए। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मी माता की मूर्त‌ि के सामने नौ बाती वाली घी का दीपक जलाने से जल्दी धन लाभ म‌िलता है और आर्थ‌िक मामले में उन्नत‌ि होती है।

 

6.रंगोली : वर्तमान में रंगोली का प्रचलन सबसे अधिक है, लेकिन पुरानी परंपरानुसार आज भी आंतरिक इलाकों में मांडने बनाए जाते हैं। द्वार, देहरी, चौक और माता लक्ष्मी के पूजा स्थल के पास रंगोली अवश्य बनाएं।

 

7.दीपक : दीपावली की रात को घर में और घर के आसपास खास जगहों पर दीपक जलाकर रखे जाते हैं। कहते हैं कि दीपावली की रात को देवालय में गाय के दूध का शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे तुरंत ही कर्ज से छुटकारा मिलता है और आर्थिक तंगी दूर हो जाती है। दीपावली की रात को दूसरा दिया लक्ष्मी पूजा के दौरान जलाएं। तीसरा दिया तुलसी के पास, चौथा दिया दरवाजे के बाहर, पांचवां दिया पीपल के पेड़ के नीचे, छठा दिया पास के किसी मंदिर में, सातवां कचरा रखने वाले स्थान पर, आठवां बाथरूम में, नौवां मुंडेर पर, दसवां दिवारों पर, ग्यारहां खिड़की, बारहवां छत पर और तेरहावं किसी चौराहे पर। दीपावली पर कुल देवी या देवता, यम और पितरों के लिए भी दीपक जलाए जाते हैं।

 

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।

सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥

 

*नारायणनारायण*

*सर्वे भवन्तु सुखीनः*

दीपोत्सव ज्योति पर्व की शुभकामनाएं ।