मार्गशीर्ष में छिपे हैं कई अर्थ
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भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं- “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”, तो मार्गशीर्ष की महिमा अपने आप बढ़ जाती है। मार्गशीर्ष का महत्व इसलिये है, कि इसके साथ ही हेमन्त ऋतु आती है। हेमन्त ऋतु का अर्थ है स्वर्णिम ऋतु। यह ऋतु धान की लहलहाती फसल के कारण स्वर्णिम है, और सब ऋतुओं में सर्वाधिक चमकदार। सफेद रंग के फूलों की बहार वाली ऋतु है यह। महाकवि कालिदास कहते हैं कि इस ऋतु में निसर्ग के साथ-साथ मनुष्य और सब जीव-जन्तुओं का मन खिल उठता है।
भारतीय कालगणना के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान कर और पवित्र नदियों में अवगाहन कर मार्गशीर्ष ज्योतिकलश छलकाता हुआ आता है। यह संवत्सर में सबसे आगे-आगे आता है, इसीलिए मार्गशीर्ष को अग्रहायण भी कहा जाता है। यह मास भगवान् को प्रिय है, इसलिये भी यह अग्रहायण है।
भारतीय संस्कृति के इतिहास में मार्गशीर्ष का महत्व दो बहुत बड़ी घटनाओं के कारण है। पहली है मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम का सीता से विवाह मार्गशीर्ष की विवाहपंचमी को हुआ। राम का राम होना सीता के कारण है, और सीता का सीता होना राम के कारण। राम और सीता के बिना भारत का क्या गौरव! राम और सीता का चरित्र भारत की पवित्र अस्मिता है। कहा जाता है कि शिव और पार्वती के बाद राम और सीता का विवाह ही भारत के भाग्य का वह द्वार है, जिसके खुलते ही हमारा मानस अपने आपको श्रद्धा और विश्वास के सामने खड़ा हुआ पाता है।
राम और सीता का दाम्पत्य बेहद कंटीले रास्तों से होता हुआ भी जिस मुकाम पर पहुँचता है, वह इतना पावन है कि युगों-युगों से भारतीय दाम्पत्य का कवच बना हुआ है। वशिष्ठ ऋषि और राजर्षि जनक ने राम और सीता के विवाह के लिये मार्गशीर्ष का ही महीना चुना। राम और सीता ने जीवन भर कष्ट ही कष्ट उठाए, यह जानते हुए भी राम और सीता का दाम्पत्य किस के लिये आदर्श नहीं। पूरे भारत में मार्गशीर्ष लगते ही शहनाइयाँ गूँजने लगती हैं। वह तिथि सर्वाधिक मंगलमय मानी जाती है, जिसमें राम और सीता के लग्न हुए। सीता राम की सिद्धि है, लक्ष्मी है, दया है, क्षमा है। भारतीय समाज में हरेक पत्नी को यही दर्जा प्राप्त है। यह नींव है, जिस पर अनगिनत आपदाओं के चलते हुए भी हमारे परिवार सदियों से मजबूत बने हुए हैं।
मार्गशीर्ष का एक और माहात्म्य है। इसी मास में मोक्षदा एकादशी का वह दिन आता है, जब भगवान् के श्रीमुख से पवित्र गीता निकली। वह गीता अब केवल भारतीयों का ही नहीं, सम्पूर्ण मनुष्य जाति की आत्मा को जगाये रखने वाला अद्भुत गीत-ग्रंथ माना जाता है। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण एक महान् आचार्य की तरह उपस्थित होते हैं। जिज्ञासु अर्जुन के भीतर श्रीकृष्ण को अपना सच्चा शिष्य दिखाई देता है। गीता वैश्व आचार्य का वैश्व शिष्य के साथ किया गया वह शाश्वत संवाद है, जो देश और काल की सीमाओं को लांघ कर अब भी चल रहा है। यह संवाद कभी भी जीर्ण नहीं होगा। यह भगवान् के श्रीमुख से गाया गया वह गीत है, जिसकी बुनावट योग्य श्रोता के हृदय में उतर कर हुई है। भगवान् श्रीकृष्ण प्राणियों के संसार का सम्मान करते हुए उस अध्यात्म के ऊपर से यवनिका हटाते हैं, जो हमारा घर है, जहाँ से हम चले थे, और जहाँ लौट कर हमें आना है। वह सनातन है, अमृतमय है, आनंदमय है। इस भागवत संवाद ने मार्गशीर्ष की महिमा को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा दिया है।
श्रीमद्भागवत महापुराण (10.22.4) में उल्लेख है कि मार्गशीर्षमास (अगहन) में ही व्रजबालाओं ने अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की-
कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
कार्तिक के बाद मार्गशीर्ष हमारे जीवन में आत्मा का सच्चा उत्सव लेकर आता है। मार्गशीर्ष के पास सबसे बड़ी शक्ति यह है, कि देव जाग चुके हैं। आपदाओं की जड़ें वहाँ हैं, जहाँ हमारे भीतर के देव सोये पड़े हैं। मार्गशीर्ष हमारे मन को जगाता है, उस पर चाँदी का वर्क चढ़ाता है, और हमें अकर्मण्यता के जंगल से बाहर खींच लेता है। वह हमें नया पुरुषार्थ देता है, नया संकल्प देता है। वह नया जीवन, नई गति, नई लय और नया विश्वास देकर हमें उज्ज्वल प्रकाश में अवगाहन के लिये आमंत्रित करता है। मार्गशीर्ष का एक छिपा हुआ अर्थ यह भी है कि समय के प्रवाह में एक यही मार्ग है, जो हमें एक शीर्ष से दूसरे शीर्ष पर ले जाता है। अपने भीतर शुभ संकल्प को जगाने के लिये आप उचित मौके या मुहूर्त की तलाश में हैं, या कोई अनिन्द्य मार्ग ढूँढ रहे हैं, तो भरोसा रखिए। पूरा का पूरा मार्गशीर्ष बाँहें फैलाये खड़ा है आपके सुनहले भविष्य का तोरणद्वार बनकर।
ज्योतिष गणना के अनुसार मार्गशीर्ष की पूर्णिमा का चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में होता है। मृगशिरा नक्षत्र में चन्द्रमा होने का एक अर्थ यह भी है कि हमारे मन का उस मृग की तरह चौकड़ियाँ भरना, जो मुड़-मुड़कर तिरछी चितवन से अपने ही शिर को देखता है। उसका यह देखना अभिराम होता है। कालिदास का लिखा हुआ याद आता है-‘ग्रीवाभंगाभिरामं मुहुरनुपतति स्यन्दने बद्धदृष्टि:।’ चंद्रमा पृथ्वी के और हमारे मन का प्रतिनिधि है। मार्गशीर्ष हमें मन का उत्कर्ष देता है, मन की शक्ति देता है, और पार्थिव चेतनाओं से उजाले की यात्रा का आह्वान करता है।
मार्गशीर्ष की महिमाओं के वर्णन वेदों से लेकर पुराणों तक में भरे पड़े हैं। ऋषियों ने मार्गशीर्ष को उस उत्स के रूप में देखा, जहाँ से काल प्रवाहित हुआ। ऐसा माना जाता है कि मार्गशीर्ष हमें देख रहा है, हमारे कर्मों को देख रहा है। वह मनुष्य को अंधेरे में पड़ा हुआ देखना नहीं चाहता। वह हमारे चित्त को उजाले से नहलाना चाहता है। कहा जाता है कि मार्गशीर्ष में लिये गये शुभ संकल्प पूरे होते हैं, और फिर पूरा वर्ष आनंद और उल्लास से जगमग होता है।