The snake charmers: साँप पालने में निपुण हाथ जब च्यवनप्राश बनाने लगे 

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The snake charmers: साँप पालने में निपुण हाथ जब च्यवनप्राश बनाने लगे

राजीव शर्मा

हमारे बचपन के सँपेरे ,भालू और बंदर नचाने वाले याद हैं आपको ? वो देसी बाइस्कोप दिखाने वाला ? वो रस्सी पर करतब दिखाने वाले कहाँ बिला गये ? क्या हुआ उनकी आजीविका का ? साँपों, बिच्छुओं, भालुओं की चिंता करना अच्छा है पर इन बाज़ीगरों,जादूगरों ,नटों,सँपेरों को दरिद्रता के दलदल में दम तोड़ने के लिये छोड़ दिया गया. हमारे इन असहाय और असंगठित बंधुओं के हाथ में हमारी करुणा या बंधुत्व की कोई रेखा दिखी नहीं .

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के पास सँपेरों का गाँव है -नाम है जहरमऊ .साँप रखने दिखाने पर रोक तो लग गई पर पेट की आग पर किसकी रोक ? पुरुष मजदूरी के लिये भटकने लगे तो महिलाओं ने भी हाथ पैर मारने शुरू किये.गाँव की आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर खेती किसानी के पारम्परिक कौशल से अपनी डगमगाती आर्थिक स्थिति को सँभाला .मण्डला के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को स्व सहायता समूह से जोड़ने मैंने स्वयंप्रभा अभियान चलाया था .ज़हरमऊ की महिलायें भी स्व सहायता समूहों में संगठित हो गई .

गाँव में भ्रमण के दौरान जब मैंने इन महिलाओं की जिजीविषा और कुछ कर दिखाने का जुनून देखा तो इन्हें च्यवनप्राश बनाने का प्रशिक्षण दिया गया .लोहे के कड़ाहों में चूल्हे की आग पर विशुद्ध शास्त्रोक्त पद्धति से बना च्यवनप्राश भोपाल से दिल्ली तक खूब बिका .पैकिंग और मार्केटिंग का जिम्मा ज़िला पंचायत ने सँभाला.

साँप पालने में निपुण हाथ च्यवनप्राश बनाने और उसे मेलों में बेचने में भी निपुण ही साबित हुए .सँपेरों का गाँव अब च्यवनप्राश के नाम से प्रसिद्ध हो गया था .