अब दो दिन बाद खुलेगा राज…

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अब दो दिन बाद खुलेगा राज…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

अब दो दिन तक महाराष्ट्र-झारखंड में एग्जिट पोल्स के अनुमान वाले विजेता ऊंचे आसमान पर तैरते रहेंगे। ज्यादा हवा महाराष्ट्र में ‘महायुति’ के लौटने की है और झारखंड में झामुमो सरकार के सत्ता से एग्जिट की है। दोनों ही जगह भाजपा के हाथों में अनुमानी लड्डू नजर आ रहे हैं। हालांकि यह 23 नवंबर के नतीजों में ख्याली साबित हो जाएं, तो कोई बड़ी बात भी नहीं है। हाल ही में हरियाणा इसका पुख्ता प्रमाण है। बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ हैं…थ्योरी काम कर गई, तो महाराष्ट्र में ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नजर आ जाएगा। पर बाला साहब ठाकरे की याद मराठी मानुष को सता गई तो अनुमान फेल होने की संभावना बढ़ जाएगी। झारखंड में भी सोरेन का जेल जाना और चंपई का अपमान जैसे फैक्टर प्रभावी तौर पर निर्णायक साबित होंगे। अनुमान ‘चार सौ पार’ से लेकर हरियाणा तक में फेल हुए हैं। इसका मतलब यह भी कदापि नहीं है कि महाराष्ट्र और झारखंड में भी अनुमान फेल होंगे। पर यदि हो भी गए तो किसी के दिल को ठेस भी नहीं पहुंचेगी, क्योंकि एग्जिट पोल्स और चुनावी जंग में सब मुमकिन है। यहां पोल्स नहीं मतदाता की चलती है। मतदाता खुद कुछ बोलता नहीं है, बस फैसला सुनाकर मौन हो जाता है। और मतदाता के फैसला सुनाने के बाद एग्जिट पोल्स मुखर हो जाते हैं। तो पोल्स ने फैसला सुना दिया, पर हकीकत में राज दो दिन बाद ही खुलेगा।

चुनावी दंगल में हिंदुत्व और गैर हिंदुत्व जैसे मुद्दे खूब फल-फूल रहे हैं। तो हम कथाकार ज्ञानरंजन का एक ज्ञान का टुकड़ा परोसकर आज इस चुनावी मौसम का लुत्फ उठाते हैं। ज्ञानरंजन की बात इसलिए क्योंकि उनका 21 नवंबर को जन्मदिन है। इस वक्तव्य का विषय है ‘हिंदुत्व, भाजपा, कांग्रेस और फासिज्म’।ज्ञानरंजन जी का मत है कि किसी भी रूप में इतिहास के क्षणों में विफल हो जाना एक लम्बी दिक्कत पैदा कर सकता है, जो आज हमारे देश में पैदा हो गई है। गलती हम सब कर रहे हैं। भाजपा अगर यह सोचती है कि हिंदुत्व जागृत होगा तो यह नासमझी है। शांत, कोमल धर्मात्मा और सात्विक हिंदू पहले से ही अलग है। हिंदू किसान और गरीब श्रमिक पहले ही इस पचडे से अलग है। एक विशाल हिंदू समुदाय है जो हिंदू-अत्याचार का शिकार है। और अब तो हिंदू के और भी विभाजित होने के दिन आ गए हैं। पत्रकार गिरिलाल जैन ने अपने लेख अपनी जड़ से उध्वस्त राष्ट्रीयता में सही लिखा है कि आज देश में जितने भी विघटन हैं वे सब हिंदू विघटन हैं। पिछड़ी और उन्नत जातियां, दलित और सवर्ण तथा निम्न और उच्च वर्ग- ये सब हिंदू विघटन हैं और आज भारतीय जनता पार्टी और उसके कुसंगियों ने हिन्दुओं के सर्वनाश की पूरी व्यस्था कर ली है। अब एक विशाल कट्टर,अपराधी हिंदू वर्ग का विकास हो रहा है। इसी की लहर में, इसी की रक्त-रंजित चाल-ढाल में पूरा देश तहस-नहस हो रहा है।

हमें एक मिथक से उबरना होगा की हिंदू तो बेचारा है, विनम्र है और मूलतः अहिंसक है। भारत के अहिंसक समाज में सर्वाधिक हिंसा है। सारे धर्मान्तरण हिंदू धर्म की असहिष्णुता और शोषण के कारण हैं। बौद्ध और जैन समाजों के प्रति हिन्दुओं का आक्रामक रुख रहा है। हजारों जैन मूर्तियों और कलाकृतियों को तोड़ने और ग्रंथों को भस्मीभूत करने की शर्म हिंदू समाज के माथे पर इतिहास में लिखी हुई है। श्रीकाकुलम में काले-कलूटे आदिवासिओं को उजाड़ देने और उनकी जनचेतना को कुचलने का काम हिंदू सत्ता ने किया। तुर्कमान गेट के इलाके में आपातकाल के दौर में जो हुआ वह मदांध हिंदू सत्ता का कारनामा था। संजय गाँधी इसी वास्ते आरएसएस का प्रियतम व्यक्ति था। इंदिरा गाँधी भी पीर-पैगम्बरों,मंदिरों और तंत्र-मंत्र के साथ शंकराचार्यों से संपर्क बनाये रखती थीं। नेहरू के बाद किसी न किसी रूप में हिन्दूपन कांग्रस का एक प्रमुख लक्षण था। और मुसलमानों का तुष्टिकरण एक रणनीति मात्र थी। भाजपा एक दबी-छुपी हिंदू कांग्रेस का विस्फोट है, विकास है। दिल्ली में 84 के दंगों में 4000 सिखों को बर्बरतम तरीकों से जिन्दा मारा गया। इतिहास पर आज जितनी धूल फेन फेंकी जाए, ये नृशंशताएँ अमिट रहेंगी। विभूति नारायण राय ने अपने सम्पादकीय में ठीक ही लिखा है कि हिंदू ही एकमात्र ऐसा समुदाय है, जिसमें बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में स्त्रियाँ जला दी जाती हैं। किसी दुसरे समुदाय में यह बर्बरता नहीं है। हमें इस सत्य को भी सर्वसाधारण तक पहुँचा देना चाहिए कि देश का एक भी दंगा ऐसा नहीं है जिसमें मरने वाले हिन्दुओं की तादाद ज्यादा रही हो। हिटलर भी चुना हुआ व्यक्ति था। फासिज्म, एक हद के बाद इतना चमकदार हो जाता है कि लुभाने लगता है।

अंत में वह लिखते हैं कि इस समय हिंदू की लडाई हिंदू से है। आप अपने को एक आदर्श हिंदू के रूप में बचाने में सफल हों , यही सबसे जरुरी है। विवेकानंद ने कहा था , ”अगर कोई यहाँ पर आशा करता है कि एकता, किसी एक धर्म की विजय तथा दूसरे के विनाश से स्थापित होगी तो यह आशा एक मृग मरीचिका के सिवाय कुछ नहीं।” चर्च ने यूरोप में साम्यवाद की विफलता के लिए अपूर्व भूमिका अदा की। इरान, मिस्र और अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरता ने विध्वंशक कार्य किया। भारत में चर्च, इस्लाम और हिंदुत्व मिलकर जनतंत्र का मुखौटा चला रहे हैं। इसलिए यहाँ विनाश और ज्यादा गंभीर होगा।

तो ज्ञानरंजन की बात को भारत में वर्तमान में राजनीति के महत्वपूर्ण मुद्दों के पार्श्व में पढ़कर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया जताने को सब आजाद है। और दो दिन बाद यह पता चल ही जाएगा कि महाराष्ट्र और झारखंड में किसका राज रहेगा। तो मध्यप्रदेश के बुधनी और विजयपुर विधानसभा उपचुनाव के फैसलों पर भी सबकी नजर है ही…।