नौनिहालों की सुध ली, उच्च शिक्षा पर भी मेहरबानी जरूरी है सरकार…

किसानों का दर्द समझा तो साहूकारों पर शिकंजा की भी है दरकार...

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मध्यप्रदेश में एक तरफ कोरोना अपना खौफ दिखाकर लोगों को डरा रहा है, तो दूसरी तरफ मौसम ने कई जिलों के किसानों की कमर तोड़ दी है। नौनिहालों की सुध लेते हुए सरकार ने कक्षा पहली से बारहवीं तक के निजी-सरकारी स्कूल बंद कर बहुत बड़ी मेहरबानी की है। फिलहाल 31 जनवरी तक स्कूल बंद किए गए हैं तो इस सत्र के लिए यह तारीख आगे भी बढ़ती जाएगी, यह लगभग तय है।
वैसे तो यह फैसला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उसी दिन ले लेना चाहिए था, जब स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने गुहार लगाई थी। लेकिन फिर भी अभी देर नहीं हो पाई थी और सरकार ने स्कूल बंद करने का फरमान जारी कर नौनिहालों की सुरक्षा को तवज्जो देकर अपनी संवेदनशीलता का परिचय ही दिया है। जरूरी यह भी है कि उच्च शिक्षा ले रहे विद्यार्थियों को भी कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए सख्त फैसले समय पर लिए जा सकें।
तो दूसरी तरफ ओलावृष्टि और तेज बारिश ने किसानों की मेहनत को मटियामेट कर उनकी कमर तोड़ने का काम किया है। शिवराज ने खुद खेतों में जाकर किसानों की बर्बादी का मंजर अपनी आंखों से देखा और किसानों को राहत देने का भरोसा भी दिलाया है। पर जरूरी यह है कि किसानों को राहत समय पर नसीब हो जाए। वरना फिर हताश-निराश किसान कब उसी खेत के सूखे पेड़ पर फंदा लगाकर मौत को गले लगाने को मजबूर हो जाएगा, इसका पता ही नहीं लगेगा।
ऐसे समय में सबसे ज्यादा जरूरी है कि सूदखोरों पर शिकंजा कसा जाए। वरना कुदरत ने किसानों को मारा है तो सूदखोर फंदे तक पहुंचाने या जहर की पुड़िया गटकने को मजबूर करने में देरी नहीं लगाएंगे। बाद में भले ही सरकारी रिकार्ड मौत पर व्यक्तिगत कारण, बीमारी वगैरह को वजह में दर्ज कर ले, लेकिन वास्तव में किसान की मौत के लिए कर्ज सूदखोरी का कहर ही काल बनकर आता रहा है।
सरकार ने मध्यप्रदेश में 15 से 31 जनवरी तक कक्षा 1 से 12वीं तक सरकारी और प्रायवेट स्कूल बंद करने की बात कही है। धार्मिक और व्यावसायिक मेले लगने पर रोक लगा दी गई है। समस्त राजनैतिक, धार्मिक रैली प्रतिबंधित कर दी गई हैं। हॉल में कार्यक्रम हो सकेंगे लेकिन बैठक क्षमता से 50 प्रतिशत संख्या के साथ।
बड़ी सभाएं और आयोजन प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। खेल गतिविधियां भी खाली-खाली स्टेडियम के साथ चल पाएंगीं। प्री बोर्ड परीक्षाएं जो 20 जनवरी से थीं, वह टेक होम एग्जाम होंगे। हालांकि आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध नहीं है और रात्रि कर्फ़्यू 11 से 5 बजे तक जारी रहेगा। वहीं बढ़ते हुए कोरोना संक्रमण के मद्देनजर इंदौर में डीएवीवी के छात्रों ने ऑफलाइन परीक्षा न कराने की मांग की है।
बात डीएवीवी की नहीं, पूरे प्रदेश के सीनियर विद्यार्थियों की है। कोरोना का खतरा उन्हें भी है। बेहतर है कि सरकार उच्च शिक्षा के संस्थानों को भी बंद कर ऑनलाइन परीक्षा कराने का फैसला कर ले। ताकि मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र, दिल्ली की तरह स्थितियां भयावह न हो सकें और फिर मजबूरी में ऐसे फैसले न लेना पड़ें।
 कुदरत का कहर देखकर तो लगता है जैसे खेती को लाभ का धंधा बना पाना महज एक सपना ही है। किसान की किस्मत तो कुदरत के कहर से ही बंधी है, जिससे मुक्त करा पाना शायद सरकारों के वश में नहीं ही है। बेहतर तो यही है कि फसल बीमा का तंत्र दुरुस्त हो जाए, जिसे इतना मुआवजा देने को मजबूर किया जा सके कि किसान फसल बर्बाद होने पर भी लाभ का हकदार बन सके।
और किसान को सर्वे से पहले भी फौरी राहत के तौर पर प्रति बीगा एक निश्चित राशि अग्रिम भुगतान के रूप में मुहैया कराई जा सके ताकि किसान किस्मत को कोसने पर मजबूर न हो। तो सरकार पर किसान का भरोसा इतना अटूट हो जाए कि कुदरत की काली करतूत पर भी उसका कलेजा न फट सके।
जरूरी है एक फूलप्रूफ फसल बीमा योजना की, जिसका उपहार देकर शिवराज सरकार किसानों की सच्ची हितैषी साबित हो सकती है। तो कैलाश विजयवर्गीय के मुताबिक देश के सबसे सफल कृषि मंत्री कमल पटेल, शिवराज के कंधे से कंधा मिलाकर सशक्त फसल बीमा योजना बनाकर किसानों का दिल जीतकर सरकार के खाते में सबसे बड़ी उपलब्धि दर्ज करा सकते हैं।
तो कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे हैं। सरकार सजगता दिखा रही है। शिवराज फैसले भी ले रहे हैं, तो इलाज की पुख्ता व्यवस्थाओं पर भी निगाह रखे हैं। कोरोना से बचाव के लिए हम भी सतर्क रहें, सावधानी बरतें और घर की खुशियों को आबाद रखें। तो किसानों की समस्या का स्थायी समाधान हो, सरकार प्राकृतिक आपदा पर किसानों को समय पर मुआवजा मिलने की गारंटी का कानून पारित कर दे। साथ ही सूदखोरी को जड़ से नष्ट करने की दिशा में भी सरकार कहर बनकर बरपे।
किसानों को फसल के नुकसान पर त्वरित अग्रिम मदद राशि उपलब्ध कराई जाए तो निश्चित समयावधि में संपूर्ण मुआवजा भी वितरित हो ताकि खेती किसानों को कभी भी हताश-निराश न कर सके। और किसान कभी भी जान देने को मजबूर न हो पाएं। शिवराज के ध्यानार्थ बस यही बात कि नौनिहालों की सुध ली, इसके लिए शुक्रिया लेकिन उच्च शिक्षा पर भी मेहरबानी जरूरी है सरकार। और किसानों का दर्द समझा, इसके लिए भी दिल से आभार, लेकिन साहूकारों पर शिकंजा की भी है दरकार ताकि किसानों की सांसें इनके चंगुल में न अटक पाएं।