अब किसानों के नाम पर फिर राजनीति और सड़क की लड़ाई
आलोक मेहता
कांग्रेस सहित कई राजनैतिक पार्टियां किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी , मुआवजे , मुफ्त बिजली इत्यादि की मांगों को लेकर नया तूफान खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं | किसानों को उनके खेतों की उपज का उचित मूल्य मिलना निश्चित रूप से जरुरी है | लेकिन देश की आवश्यकता के अनुसार अनाज , तिलहन के उत्पादन की प्राथमिकताएं तय होने पर ही सही दाम मिल सकते हैं | इसी तरह भारत के फल , सब्जी का निर्यात करने के लिए सड़क , रेल , हवाई सुविधाओं और आर्थिक संसाधन सरकार और प्राइवेट क्षेत्र को बड़े इंतजाम करने होंगे | मांगों और अपेक्षाओं की फेहरिस्त लगातार बढ़ सकती है | एक बार फिर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) एवं किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले किसानों ने 6 दिसंबर को अपनी मांगों के समर्थन में दिल्ली कूच आंदोलन तेज कर दिया | वे समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अलावा, किसान कृषि कर्ज माफी, किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी न करने, पुलिस मामलों की वापसी और 2021 लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए ‘न्याय’ की मांग कर रहे हैं, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की बहाली और 2020-21 में पिछले आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देना भी उनकी मांगें हैं |
इस बार किसानों के दिल्ली कूच में वह मरजीवड़ा जत्था है, जो शख्स किसी मकसद के लिए खुद को कुर्बान कर देता है | बताया जाता है कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने मरजीवड़ा जत्था (दल) बनाया था और इसमें भाई मतीदास, सतीदास और भाई दयाला को भी शामिल किया था| मतलब राजनीति के साथ धार्मिक भावना जोड़ दी है | 101 किसानों का यह जत्था निहत्थे और पैदल ही चलेगा | जत्थे में शामिल किसानों से सहमति फॉर्म भी भरवाया गया है | किसानों का जो आंदोलन हो रहा है, उसके पीछे संयुक्त किसान मोर्चाऔर किसान मजदूर मोर्चा है \ किसान 26 अक्टूबर को सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और समय पर धान खरीद सहित अपनी कई मांगों पर दबाव डालने के लिए संगरूर जिले के बदरुखा में बड़ी संख्या में जुटे हुए थे. | शंभू बॉर्डर पर किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि “मोर्चे को चलते 297 दिन हो गए है और खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन 11वें दिन में प्रवेश कर गया |. शंभु बॉर्डर पर किसान करीब 300 दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं |
दूसरी तरफ संसद में कांग्रेस और अन्य प्रतिपक्षी दल हमलावर हुए हैं | संगरूर के खनौरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाला ने किसानों की मांगों को लेकर उपराष्ट्रपति धनखड़ को चिट्ठी भी लिखी | इस पर श्री धनकड़ इतने भावुक और उत्तेजित हो गए कि मुंबई में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के शताब्दी समारोह में कृषि मंत्री शिवराज सिंह को कहने लगे – ” एक-एक पल आपका भारी है | कृपया करके मुझे बताइये कि किसानों से क्या वादा किया गया था? उनसे किया गया वादा क्यों नहीं निभाया गया? वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन हो रहा है. कालचक्र घूम रहा है, हम कुछ कर नहीं रहे हैं | पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है. | पहली बार मैं महसूस कर रहा हूं कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है. दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था | जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान परेशान और पीड़ित क्यों है? किसान अकेला है जो असहाय है| ‘ उप राष्ट्रपति ने अपने पद का उल्लेख करते हुए शिवराज सिंह चौहान पर सवालों की बौछार कर दी | बाद में शायद उन्हें इस रुख का अहसास हुआ या ध्यान दिलाया गया कि सरकार दो दिन पहले भी संसद में विस्तार से बता चुकी है कि सरकार कितना लाभ और फसल का अधिकाधिक मूल्य किसानों को दे रही है |
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यसभा में कहा कि सभी कृषि उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा, यह मोदी सरकार की गारंटी है |कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए तैयार है. बातचीत के दरवाजे उनके लिए खुले हैं. किसानों के साथ अभी तक संपर्क नहीं हो पाया है. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 साल में किसान कल्याण के लिए कई बड़े फैसले किए हैं |शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘ ढाई गुना और 3 गुना एमएसपी बढ़ाया है तो नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने बढ़ाया है और जब उधर (विपक्ष) की सरकार थी तो ये खरीदते नहीं थे | केवल एमएसपी घोषित करते थे. |इन्होंने दलहन की खरीदी 6 लाख 29 हजार मीट्रिक टन की थी. मोदी जी की सरकार ने 1 करोड़ 71 लाख मीट्रिक टन खरीदी की है | हम खरीद भी रहे हैं, दाम भी दे रहे हैं |एमएसपी भी लगातार बढ़ा रहे हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार है जिसने लागत पर 50% लाभ जोड़कर मिनिमम सपोर्ट प्राइज तय की है और सामने (विपक्ष) जो मित्र बैठे हैं, उन्होंने ने तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश मानने से ही इनकार कर दिया था कहा था कि बाजार विकृत हो जाएगा |’कृषि मंत्री ने बताया कि इस सरकार ने लागत पर 50% लाभ तय करके न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है | धान की एमएसपी जब उधर (विपक्ष) की सरकार थी तब 1510 रुपये था, जिसे बढ़ाकर 2300 रुपये क्विंटल किया नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने. ज्वार का एमएसपी 1500 रुपये प्रति क्विंटल था उसको बढ़ाकर 3371 रुपये प्रति क्विंटल नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने किया. बाजरा का एमएसपी 1250 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2625 रुपये प्रति क्विंटल किया तो मोदी जी की सरकार ने किया |रागी का एमएसपी 1500 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 4290 रुपये किया तो नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने किया. |मक्का का एमएसपी 1310 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2225 रुपये प्रति क्विंटल किया तो नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने किया | तूर का एमएसपी 4300 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 7550 रुपये प्रति क्विंटल किया तो नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने किया | ‘कृषि मंत्री ने कहा कि मूंग का एमएसपी 4500 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 8682 रुपये प्रति क्विंटल किया तो नरेंद्र मोदी जी सरकार ने किया |, उड़द का एमएसपी 4300 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 7600 रुपये प्रति क्विंटल किया. मूंगफली का एमएसपी 4000 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 6783 रुपये प्रति क्विंटल किया गया |’
इन आंकड़ों और कृषि उत्पादों का निर्यात दुनिया के अग्रणी देशों में है | पिछले साल करीब 250 मिलियन क्विंटल निर्यात से करीब 776 मिलियन डॉलर की आमदनी भारत को हुई है | लेकिन असली समस्या किसानों के नेतृत्व की है | चौधरी चरण सिंह या चौधरी देवीलाल के किसान नेता होने पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा पाया | हम, जैसे पत्रकार तो उनके उप प्रधान मंत्री रहते हुए सरकारी बंगले में गाय भैंस रखे जाने की खबर बना देते थे | जार्ज फर्नांडीज या मधु लिमये या दत्तोपंत ठेंगड़ी किसी भी राज्य में मजदूरों के लिए उनके साथ आंदोलन करने , जेल जाने , लाठियां खाने में आगे रहते थे | नम्बूदरीपाद ,ज्योति बसु या भूपेश गुप्त और हरकिशनसिंह सुरजीत सही अर्थों में कम्युनिस्ट विचारों और कार्यकर्ताओं के बल पर प्रभावशाली रहते थे | ऐसे सभी नेताओं को किराये पर भीड़ जुटाने की जरुरत नहीं होती थी | इस पृष्ठभूमि में सवाल उठता है कि गरीब किसान और मजदूरों का नेतृत्व क्या कोई एक या दो नेता इस समय बताया जा सकता है | देश भर में पार्टियों , जातियों , देशी विदेशी चंदे से चलने वाले संगठनों के अनेकानेक नेता हैं | तभी तो भारत सरकार दो महीने से किसानों के दावेदार नेताओं कई बैठक कर चुकी है और आज भी बातचीत को तैयार है | सिंधु बॉर्डर पर पुलिस से थोड़े टकराव के बाद प्रर्दशनकारी नेताओं ने तात्कालिक स्थगन कहकर बातचीत के लिए सहमति अवश्य दिखाई है , लेकिन मांगों की लम्बी सूची होने के कारण क्या जल्दी समझौता संभव होगा या राजनीतिक दांव पेंच चलते रहेंगे ?