हमें ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-पंथ के भेदभावों को समाप्त कर देना चाहिए …

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हमें ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-पंथ के भेदभावों को समाप्त कर देना चाहिए …

 

कौशल किशोर चतुर्वेदी

सरदार वल्लभ भाई पटेल वह नाम है, जिनके सामने पूरा देश बिना दलगत भेदभाव के श्रद्धा से नमन करता है। ऐसे व्यक्तित्व में बहुत कुछ खास था, जिसके चलते वह कल भी प्रासंगिक थे, आज भी प्रासंगिक हैं और कल भी प्रासंगिक रहेंगे। भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री पटेल ने राष्ट्रहित‌ से कभी समझौता नहीं किया। यही वजह है कि राष्ट्र उन्हें निधन के 74 साल बाद भी भुला नहीं पाया है। और 7400 साल बाद भी भुला नहीं पाएगा। उनकी कही हुई हर बात हमें प्रेरणा से भर देती है। वल्लभ भाई पटेल ने कहा था कि इस मिट्टी में कुछ खास है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है‌। यह कथन भारत की महिमा का बखान करता है।

74 वीं पुण्यतिथि पर वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875 – 15 दिसम्बर 1950) को पूरा देश नमन कर रहा है। वह सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त किया। भारत और अन्य जगहों पर, उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है “प्रमुख”। दरअसल बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया।इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की थी। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंतर्संबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा था कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रहा है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

सरदार पटेल ने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। राष्ट्र के प्रति नागरिकों की सोच क्या होनी चाहिए, यह उन्होंने बताया था कि हर नागरिक की यह मुख्य जिम्मेदारी है कि वह महसूस करे कि उसका देश स्वतंत्र है और अपने स्वतंत्र देश की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। वहीं सरदार पटेल ने कहा था कि आज हमें ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-पंथ के भेदभावों को समाप्त कर देना चाहिए तभी हम एक उन्नत देश की कल्पना कर सकते हैं। आज पटेल का यह देश उन्नत होने की राह पर हर दिन कदम बढ़ा रहा है, पर यह दर्द भी है कि ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-पंथ के भेदभाव खत्म नहीं हो पाए हैं। और हर नागरिक देश की रक्षा के प्रति अपने कर्तव्यों की पूर्ति नहीं कर पा रहा है। यदि ऐसा होता तो आज देश सभी सामाजिक बुराईयों से मुक्त होने की राह पर होता। बेहतर यही है कि सरदार को नमन करते हुए हम उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लें। भारत की मिट्टी में वाकई कुछ खास है, कि सरदार जैसे व्यक्तित्व इस देश में जन्मे और जो हर भारतीय के दिल में हमेशा-हमेशा जिंदा रहेंगे।

हमें ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-पंथ के भेदभावों को समाप्त कर देना चाहिए…जैसे भाव कुछ दिन पहले सनातन और हिन्दुत्व के समर्थक बाबा बागेश्वर धाम ने व्यक्त किए थे। तो संतों ने हमेशा ही यह भाव व्यक्त किए हैं। ऐसे में सरदार पटेल में भी एक राजनैतिक संत की तस्वीर दिखाई देती है। ऐसे सरदार को शत-शत नमन…।