Faith and Superstition आस्था और अंधविश्वास
– एन के त्रिपाठी
आस्था से तात्पर्य किसी अवधारणा पर विश्वास करना है। आस्था एक मानसिक अवस्था है। यह किसी व्यक्ति, विचार, या धर्म के अस्तित्व, गुण, और शक्तियों पर विश्वास करना है। आस्था भावनात्मक लगाव, अनुभव या विश्वास पर आधारित होती है तथा इसके लिए किसी विशेष प्रमाण का होना आवश्यक नहीं है।
लगभग पाँच लाख वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों का मस्तिष्क इतना विकसित हो चुका था कि वह कुछ प्रारंभिक आध्यात्मिक शक्तियों पर विश्वास करने लगे। आदि मानव अन्य प्राणियों, वृक्षों और चट्टानों आदि को रहस्यमय ढंग से देखने लगा। लगभग दो लाख वर्ष पूर्व से मनुष्य अवचेतन अवस्था अर्थात लगभग समाधि की स्थिति में आत्मा से तादात्म्य करने लगा जैसा कि आजकल कुछ ओझा करते हैं। पचास हज़ार वर्ष से मानव समाज बहुत विविध हो गया और उसने विभिन्न कार्यों के लिए कुछ प्रारंभिक अनुष्ठान या कर्मकांड करना प्रारंभ कर दिया। दस हज़ार वर्ष पूर्व तक आते-आते विभिन्न आस्थाओं वाले प्रारंभिक धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ। सभ्यताओं के और विकास होने के साथ संगठित आधुनिक धर्मों का प्रचलन हुआ। यह अवश्य है कि मानव की प्रारंभिक चेतना से लेकर आज तक के सभी आध्यात्मिक, धार्मिक, कर्मकांडों तथा पूजा पद्धति का मूल आधार आस्था ही रहा है।
आस्था तथा विश्वास के साथ ही अंधविश्वास भी मानव की प्रवृत्ति में रहा है। यद्यपि अंधविश्वास की कोई एक परिभाषा नहीं है, लेकिन यह ऐसी मान्यताओं को दर्शाता है जो प्राकृतिक शक्तियों – जैसे कि नियति – में विश्वास करता है। अनिश्चितता के बीच अपने भविष्य को प्रभावित करने की इच्छा और अनिश्चितता को नियंत्रित करने की आवश्यकता ने अंधविश्वास को जन्म दिया। अंधविश्वास एक ऐसी मान्यता है जिसका तर्क और विज्ञान से कोई संबंध नहीं होता है। इसमें अलौकिक या प्राकृतिक शक्तियों का समावेश होता है। अंधविश्वास अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना को कम करने के लिए विकसित हुआ है।
पूर्व में मनुष्य अनेक घटनाओं के कारणों को नहीं जान पाता था। वह अज्ञानतावश समझता था कि इनके पीछे कोई अदृश्य शक्ति है। वर्षा, बिजली, रोग और अन्य विपत्तियाँ आदि किसी अज्ञात बुरी आत्माओं और पिशाचों के प्रकोप के कारण से माने जाते थे। इन बातों का रहस्य जान लेने के उपरांत भी अंधविश्वास विलीन नहीं हुए, बल्कि वे और अधिक प्रचलित होते गए। आदिकाल में मनुष्य की गतिविधियां सीमित थीं, इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी सीमित थी। ज्यों ज्यों मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार हुआ त्यों-त्यों अंधविश्वासों का प्रकार बढ़ता गया।अंधविश्वास सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं।
पश्चिमी देशों में 13 का अंक अशुभ माना जाता है। वहाँ इच्छापूर्ति के लिए सिक्कों को पानी में फेंकने का प्रचलन है। भारत में सप्ताह के दिनों के आधार पर यात्रा के लिए दिशाशूल या प्रस्थान करने की रीति रही है। विवाह के लिए मुहूर्त की आवश्यकता होती है। अन्य उदाहरण बिल्ली के रास्ता काट जाने से मार्ग में कठिनाई, बच्चों को बुरी दृष्टि से बचाने के लिए उनके माथे पर काला टीका, दक्षिण की ओर पैर कर के न सोना, शनिवार को नाखूना न काटना तथा नींबू मिर्च लटका कर अशुभ को दूर रखना आदि हैं। और भी बहुत से प्रचलित टोटके हैं। तंत्र-मन्त्र तथा अनेक प्रकार के जादू टोनों में असुरक्षित मनुष्यों का अन्धविश्वास होता है। जादू टोनों में अपने दुखों का कारण किसी दूसरे व्यक्ति पर डाल दिया जाता है। राजनैतिक नेता, अफ़सर तथा व्यापारी अपने लाभ के लिए अपनी जन्म कुंडली तथा हस्त रेखाओं को दिखाते रहते हैं।
भगवान की पूजा करना तथा अपने धर्म का पालन करना आस्था का विषय है।आस्था एक सकारात्मक और प्रेरणादायक भावना कही जाती है, जबकि अंधविश्वास तर्कहीन, नकारात्मक और भय से उत्पन्न होने वाला होता है। परन्तु यह कहना बहुत कठिन है कि आस्था की सीमा कहाँ समाप्त होती है और अंधविश्वास कहाँ से प्रारंभ होता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये एक ही स्पेक्ट्रम के भाग हों!