राज- काज:Transport Scam: खजाना किस परिवहन मंत्री के कार्यकाल का….?
– परिवहन विभाग में प्रधान आरक्षक रहे सौरभ शर्मा के यहां छापे में सोना-चांदी और नगदी के रूप में बड़ा खजाना मिला है। सौरभ परिवहन विभाग में प्रधान आरक्षक रहे हैं, इसलिए लोगों के बीच इस बात को लेकर चर्चा ज्यादा है कि यह खजाना किस परिवहन मंत्री के कार्यकाल का है। वर्तमान परिवहन मंत्री उदय प्रताप सिंह के समय का या सागर जिले के भूपेंद्र सिंह और गाेविंद सिंह राजपूत के कार्यकाल का। खजाना इकट्ठा करने वाले सौरभ शर्मा ने दो साल पहले वीआरएस लेकर नौकरी छोड़ दी थी, इसलिए उदय प्रताप सिंह शक के दायरे से बाहर हो गए। बचे भूपेंद्र और गोविंद। इन दोनों के बीच राजनीतिक घमासान चर्चा का विषय है। भूपेंद्र तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे खास थे इसलिए उन्हें परिवहन विभाग का दायित्व मिला, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद जब कांग्रेस की सरकार गिरी और भाजपा सत्ता में आई, तब सिंधिया के सबसे खास गोविंद राजपूत परिवहन मंत्री बने। इसलिए शक की उंगली इन दो नेताओं पर ही उठ रही है। दोनों पूर्व परिवहन मंत्री इशारों में यह पैसा और सोना एक दूसरे का बता रहे हैं। खबर यहां तक है कि एक जांच एजेंसी सागर पहुंच गई है। दोनों पूर्व परिवहन मंत्रियों में से यह पैसा किसके कार्यकाल का है, यह खुलासा हो भी पाएगा या नहीं, कोई नहीं जानता।
*0 एक साल में प्रधानमंत्री के लाड़ले बन गए मोहन….*
– लगभग 17 साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जो स्नेह हासिल नहीं कर सके, डॉ मोहन यादव एक साल का कार्यकाल पूरा करते ही उनकी आंखों के तारे बन गए। आमतौर पर प्रधानमंत्री मोदी जिस प्रदेश में जाते हैं, वहां उस प्रदेश के मुख्यमंत्री की तारीफ करते हैं लेकिन मोहन यादव की तारीफ दूसरे प्रदेश राजस्थान में वहां के मुख्यमंत्री के सामने हुई। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की मौजूदगी में मोदी ने मोहन यादव को लाड़ला मुख्यमंत्री कहा। अवसर था पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदी जोड़ो परियोजना से संबंधित करार कार्यक्रम का। इस जीवनदायिनी योजना से राजस्थान और मप्र के बड़े हिस्से में सिंचाई और पेयजल की समस्या का समाधान होना है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की नजर में दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री लाड़ले ही हैं। आखिर, दिग्गजों को दरकिनार कर एक साल पहले डॉ मोहन यादव को मप्र और भजनलाल को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया था। दोनों नाम नए थे और चौंकाने वाले भी। एक साल बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मोहन को लाड़ला कहने से साफ है कि उनका यह कार्यकाल अच्छा रहा और पार्टी नेतृत्व उनसे पूरी तरह संतुष्ट है। संभवत: इसीलिए 17 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह को प्रधानमंत्री ने कभी लाड़ला नहीं कहा, जबकि एक साल बाद ही मोहन, मोदी के लाड़ले हो गए।
*0 नेता प्रतिपक्ष के तौर पर ‘कौशल’ दिखा गए उमंग….*
– विधानसभा का शीतकालीन सत्र हालांकि बहुत छोटा सिर्फ पांच दिन का था लेकिन सालों बाद यह पूरा चला। इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के साथ सत्तापक्ष और विपक्ष, सभी बधाई के पात्र हैं। फिर भी इसके लिए ज्यादा तारीफ नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की करना होगी। उन्हें पहली बार यह जवाबदारी मिली। वे अपेक्षाकृत नए भी हैं, लेकिन विधानसभा के अंदर उन्होंने एक परिपक्व और अनुभवी नेता की तरह राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। उन्होंने हर ज्वलंत मुद्दे पर विराेध कर लोगों का ध्यान खींचा और सत्तापक्ष को मौका भी नहीं दिया कि वह सदन की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा सके। नतीजा विधानसभा की गरिमा बहाल हुई और पूरे पांच दिन काम हुआ। खास बात यह भी कि सदन के अंदर विपक्ष ने लगभग हर दिन हंगामा किया। विधायक कभी खाद की बोरी लेकर पहुंचे, कभी चाय की केतली-गिलास और नलों की टोंटी लेकर। राष्ट्रीय मुद्दे को भी उन्होंने लगातार दो दिन उठाया और बाबा साहेब अंबेडकर की फोटो के साथ प्रदर्शन कर नारेबाजी की। उमंग के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगभग हर दिन वाकआउट किया और सदन की कार्रवाई में हिस्सा भी लिया। तारीफ की बात यह भी रही कि उमंग ने पार्टी के सभी विधायकों को जोड़ कर रखा। इससे उमंग के लंबी पारी खेलने के संकेत मिलते हैं।
*0 अनुभवी स्पीकर नरेंद्र तोमर कैसे कर गए यह चूक….*
– विधानसभा के वर्तमान स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर वरिष्ठ हैं और अनुभवी भी। इस नाते सदन के संचालन में उन्हें सत्तापक्ष और विपक्ष का पूरा सहयोग मिलता है। लगभग हर सदस्य उनके निर्देशों का पालन करता है। बावजूद इसके शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन वे एक बड़ी चूक कैसे कर गए, यह किसी के समझ नहीं आ रहा। बाबा साहेब अंबेडकर और राहुल गांधी द्वारा कथित तौर पर भाजपा सांसदों को धक्का देने को लेकर जब सत्तापक्ष और विपक्ष हंगामा कर रहा था, तब अचानक तोमर सदन की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर आंसदी छोड़ कर चले गए। पुरानी परंपरा है कि सत्तापक्ष के आग्रह पर कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की जाती है और ऐसा करने से पहले राष्ट्रगान होता है। लेकिन ये दोनों काम नहीं हुए। सत्तापक्ष की ओर से प्रस्ताव न रखना मामूली बात हो सकती है लेकिन राष्ट्रगान न कराया जाना बड़ी चूक मानी जा रही है। इससे पहले भी हंगामे के बीच कार्रवाई अनिश्चिकाल के लिए स्थगित होती रही है लेकिन आसंदी से जैसे ही कहा जाता है कि अब राष्ट्रगान होगा, सभी सदस्य हंगामा बंद कर अपने स्थान पर खड़े होकर राष्ट्रगान गाने लगते हैं। राष्ट्रगान न होने पर विपक्ष ने ऐतराज जताया है जबकि सत्तापक्ष द्वारा कहा जा रहा है कि हंगामे के कारण राष्ट्रगान का अपमान न हो, इसलिए स्पीकर ने सीधे कार्रवाई स्थगित कर दी।
*0 भाजपा के गले की फांस निकाल पाएंगे गोपाल….!*
– सागर जिले के दो नेताओं पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह और प्रदेश के खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बीच की लड़ाई भाजपा के गले की फांस बन रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा पर ही आरोप लगने लगे हैं, ऐसे में सवाल है कि भाजपा के गले की यह फांस कौन निकालेगा? नजर एक नेता पर जाकर टिकती है। ये हैं विधानसभा के लगातार 9 चुनाव जीत चुके पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव। गुटबाजी से दूर रहने वाले गोपाल से भूपेंद्र के अच्छे संबंध हैं और गोविंद के भी। दोनों उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाते हैं और भार्गव द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में जाने से भी परहेज नहीं करते। इसके विपरीत न भूपेंद्र-गोविंद एक दूसरे को ने अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करते और न ही आयोजित कार्यक्रमों में जाते। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया है कि कार्यक्रमों में आना-जाना तो दूर, इनके बीच समझौते के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। मीडिया के जरिए दोनों के बीच वाक युद्ध चल रहा है। ऐसे में भाजपा का एक बड़ा वर्ग मानता है कि यदि भार्गव चाहें तो भूपेंद्र-गोविंद के बीच गिले-शिकवे दूर करा सकते हैं। पर यह तभी संभव होगा जब भाजपा नेतृत्व उन्हें ये जवाबदारी सौंपे और भूपेंद्र-गोविंद भी समझौते के लिए तैयार हों। आखिर, पार्टी को इस विवाद का समाधान तो निकालना होगा, वर्ना सागर जिले में पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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