बुंदेलखंड के लिए वरदान: केन – बेतवा लिंक परियोजना

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बुंदेलखंड के लिए वरदान: केन – बेतवा लिंक परियोजना

– अनूप पौराणिक की विशेष रिपोर्ट 

भारत के जल संसाधनों का कुशल प्रबंधन और सतत विकास, हमारी सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। बुंदेलखंड के लिए, जो वर्षों से पानी की कमी और सूखे की मार झेलता आ रहा है, यह स्वप्न अब साकार होता दिख रहा है। ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना’ और ‘पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना’ इन क्षेत्रों में जल क्रांति का नया अध्याय लिखने जा रही हैं। इन ऐतिहासिक परियोजनाओं का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मोहन यादव की दृढ़ इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता को जाता है।

साल 2002 में देश में सूखा और सिंचाई की गंभीर समस्या थी, जिसके समाधान के लिए भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ‘नदियों को जोड़ने’ का विचार प्रस्तुत कर भारत के भविष्य को नया दृष्टिकोण दिया था, लेकिन इसके बाद केंद्र में कांग्रेस की सरकार आ जाने के बाद योजना में कई अड़चने आईं और यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। कांग्रेस सरकार के दौरान इस योजना पर कोई गंभीर काम नहीं हुआ। राहुल गांधी और उनके तमाम नेता बुंदेलखंड में विकास के ठोस काम करने के बजाय सिर्फ राजनीतिक पर्यटन करते रहे, पानी की समस्या से जूझ रहे किसान और आम जनता की ओर उनका ध्यान नहीं दिया। 2014 में केंद्र में सरकार बनते ही पीएम मोदी ने फिर से इस पर काम शुरू किया और ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना’ को मंजूरी दी। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी इस योजना के महत्व को समझा और उनकी तत्परता का ही परिणाम है कि अब उनके कार्यकाल के एक साल के अंदर अटल जी का सपना पूरा होने जा रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के देखे इस सपने के साकार होने का वक्त आ गया है। यह उनकी प्रेरणा और दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि आज ‘केन-बेतवा’ और ‘पार्वती-कालीसिंध-चंबल’ जैसी परियोजनाएं साकार रूप ले रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर केन बेतवा लिंक परियोजना के प्रथम चरण का शिलान्यास करने खजुराहो के मेला ग्राउंड पहुंच रहे हैं। परियोजना के लिए 44,608 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत हुई है। इसमें केंद्र सरकार 90 प्रतिशत खर्च उठाएगी। बाकी 10 प्रतिशत राशि राज्य सरकार वहन करेगी। यह पीएम मोदी का वाजपेयी जी के अधूरे सपनों को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

केन और बेतवा नदियों को जोड़ने वाली यह परियोजना न केवल बुंदेलखंड के लिए पानी की समस्या का समाधान करेगी, बल्कि इससे क्षेत्र की कृषि, उद्योग और रोजगार में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। यह परियोजना लगभग 13.62 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के दायरे में लाएगी और 62 लाख लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध कराएगी। वहीं 10 जिलों और 1900 गांवों की तस्वीर बदल जाएगी। पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र में कृषि से जुडी गतिविधियों का बढावा मिलेगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार बढेगा और बुंदेलखंड से होने वाला पलायन रूकेगा। इसके अलावा, यह परियोजना बुंदेलखंड के वन्यजीवों के संरक्षण के लिए भी मददगार साबित होगी। पन्ना टाइगर रिजर्व को जल आपूर्ति सुनिश्चित कर, यह क्षेत्र पर्यावरणीय संतुलन में भी योगदान देगा।

पार्वती, कालीसिंध, और चंबल नदियों को जोड़ने की यह परियोजना न केवल मध्यप्रदेश बल्कि राजस्थान के लिए भी वरदान साबित होगी। यह योजना हजारों गांवों में सिंचाई के साधन विकसित करेगी और जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों में राहत प्रदान करेगी। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार ने इस परियोजना को प्राथमिकता देकर यह सुनिश्चित किया है कि इसके माध्यम से क्षेत्र का समग्र विकास हो सके। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से यह परियोजना मील का पत्थर साबित होगी।

यह परियोजनाएं बुंदेलखंड और आसपास के क्षेत्रों के लिए उम्मीद की नई किरण हैं। पानी की कमी से जूझते किसानों, पलायन करते युवाओं, और पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रही महिलाओं के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं हैं। ‘केन-बेतवा’ और ‘पार्वती-कालीसिंध-चंबल’ परियोजनाएं न केवल नदियों को जोड़ने का कार्य करेंगी, बल्कि दिलों और सपनों को भी जोड़ेंगी। यह भारत के ग्रामीण इलाकों में समृद्धि और खुशहाली का नया अध्याय लिखेंगी।

आज जब हम इन ऐतिहासिक परियोजनाओं की ओर देखते हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों को साकार करने और बुंदेलखंड की तकदीर बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री मोहन यादव का यह प्रयास आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है।