Film Review: फ़तेह- हॉलीवुड ‘इश्टाईल’ में सोनू भिया की फ़तेह
डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
सोनू सूद को डायरेक्टर बनना था। बन गये। सोनू सूद को मैन हीरो बनना था। वह भी बन गये। सोनू सूद को अपनी फिल्म का लेखक बनना था और वे वह भी बन गये। …पर दर्शकों को उल्लू का पट्ठा नहीं बनना था। थैंक यू सोनू भैया। आपने कोरोना काल में जो उपकार किये थे, तब ये तो ट्वीट नहीं किया था न कि मेरी फिल्म का टिकट खरीदकर कर्ज उतार देना। वैसे भी आपने उस दिन फिल्म रिलीज करवाई जिस दिन गेम चेंजर फिल्म वालों ने टिकटवा महंगे कर दिए थे और पहले दिन आपने मल्टीप्लेक्स में 99 में फिल्म बता दी बता दी।
सोनू सूद कई सुपरस्टारों से ज्यादा हैंडसम हैं, इसमें किसी को शक नहीं। 51 के हैं पर जोश 25 वालों जैसा है। वे खुद ही मिलियन डॉलर से ज्यादा के ब्रांड हैं। वे रीयल लाइफ हीरो हैं ही, उन्हें रील लाइफ यानी पर्दे के हीरो बनने की क्या ज़रूरत? सोनू फतेह सिंह बने या नत्थे सिंह, सोना तो सोना ही रहेगा। सोनू सूद की की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म फतेह के ट्रेलर में ही बता दिया गया था कि फ़तेह एक एक्शन पैक्स फिल्म है। करीब साल भर से इसके विज्ञापन भी चले और यह फिल्म तब आई जब हिंदी फिल्मों के दर्शक एनिमल और पुष्पा 2 में भयानक हिंसक सीन देख चुके थे।
फतेह ऐसी एक्शन फिल्म है जिसमें एक्शन के नाम पर हिंसा की अति नहीं दिखाई गई। एक्शन फिल्म में कई जगह खून खच्चर और मारकाट दिखाना मजबूरी होता है। इसमें हिंसा के सीन दिखाने में डायरेक्टर ने ऐहतियात बरती है। एक कैरेक्टर को मारने का सीन दिखाने के लिए वहां भी डायरेक्टर ने दृश्य बदलकर टोमैटो कैचअप निकलते हुए दिखा दिया। किसी पात्र की चीख सुनाने की जगह गाड़ी के तेज हॉर्न की आवाज़ को चीख से रिप्लेस कर दिया। एक किरदार जीवन से हताश है। उसकी आँखें नाम है। वह भारी कदमों से कमरे दरवाजा बंद कर लेता है और कुछ ही कमरे के बाहर लोग इकठ्ठा होकर घुसपुस करने लगते हैं। फ़तेह एक कांच में देखता है। मुझे ‘एक दूजे के लिए’ फिल्म का आखिरी सीन याद आता है जब दुनिया से हताश हीरो काल हसन और हीरोइन रति अग्निहोत्री समंदर किनारे की चट्टान पर चढ़ते दिखाए गए थे और उसके बाद एक दुपट्टा ऊपर तैर रहा था और लहरों के साथ चट्टानों से टकरा रहा था।
फ़तेह स्पेशल स्पेशल फ़ोर्स के कमांडो रहे फ़तेह सिंह की कहानी तो है ही, साइबर फ्रॉड, डीपफेक, ऑनलाइन लोन ऍप वालों की कहानी भी है। जॉन स्टीवर्ट एडरी और हैंस जिमर का बैकग्राउंड संगीत और अरिजीत सिंह तथा बी प्राक के गाने ठीक-ठाक हैं। ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ वाले ली व्हिटेकर की एक्शन कोरियोग्राफी कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है। इसमें अंग्रेजी फिल्मों ‘आइरिशमैन’ ‘जॉन विक’, ‘ट्रांसपोर्टर’, ‘एजेंट 47’, ‘बी कीपर’ और ‘मेकैनिक’ के किरदार होने का एहसास भी होता है।
नसीरूद्दीन शाह और विजय राज खल भूमिकाओं में हैं, लेकिन उनके रोल चपटे कर दिये गये। यह डायरेक्टर के रूप में उनकी असफलता है। जैकलीन फर्नांडीस का काम मेकअप कराके कैमरे के सामने आना ही नज़र आया।
सोनू के फैन और एक्शन में दिलचस्पी रखनेवालों के लिए ही है फ़तेह !