रविवारीय गपशप: मेहनती अफसर का काम, फटकार और CS की मुस्कुराहट!
आनंद शर्मा
प्रयागराज में महाकुम्भ की तैयारियाँ ज़ोरों से जारी हैं , इसके बाद सिंहस्थ की बारी है , जो पावन क्षिप्रा के तट पर वर्ष 2028 को आयोजित होगा । सिंहस्थ से जुड़ी कुछ यादें भी इस अवसर पर ताज़ा हो रही हैं , जो आपके साथ साझा कर रहा हूँ ।
सन् 1995 में उज्जैन में पदस्थापना के साथ ही विनोद शर्मा से मेरी मुलाक़ात हुई थी , जो तब वहाँ मुख्यालय एस. डी. एम. थे , और हम जल्द ही अच्छे मित्र बन गए । अपने शासकीय सेवाकाल में विनोद जैसे मेहनती और लगनशील अधिकारी मैंने बहुत कम देखे हैं । वर्ष 2004 में सिंहस्थ के कुछ महीने पूर्व ही विनोद को उज्जैन नगर निगम के कमिश्नर के रूप में पदस्थ कर दिया गया , समय बहुत कम था और काम अपरंपार । कमिश्नर नगर निगम के सर पर ढेर सारे कामों की जिम्मेदारी रहती है , इन महीनों में कई रातें तो विनोद शर्मा ने अपनी कार में ही सो कर गुज़ारी । सिंहस्थ सफलता पूर्वक संपन्न हुआ , और परिश्रम के पुरस्कार के रूप में उज्जैन में पदस्थ सभी अधिकारियों को यथायोग्य अच्छी पदस्थापनाओं में भेजा गया , पर विनोद के लिए सिफारिश करने वाला कोई नहीं था , सो उसे वैसी पदस्थापना नहीं मिली जैसी बाकियों के साथ हुए व्यवहार से अपेक्षित थी ।
वक्त बीतता गया और विनोद को दतिया अपर कलेक्टर के रूप में पदस्थ कर दिया गया । पारिवारिक कारणों से विनोद के लिए ये इच्छित पोस्टिंग नहीं थी , सो कुछ दिन उसने जिले में ज्वाइन नहीं किया और अपने कुछ हितैषी लोगों के माध्यम से उसने पोस्टिंग परिवर्तन के प्रयास भी किए । स्वाभाविक था वरिष्ठ अधिकारी गण नाराज़ हो गए और मुख्य सचिव ने उसे तलब किया । विनोद से दूरभाष पर मेरी बात हुई तो मैंने उसे सलाह दी कि मिलने जाने से पहले जिले में ज्वाइन कर लेना । मध्यप्रदेश के CS उन दिनों विजय सिंह हुआ करते थे , जिनकी अपनी एक अलग धाक थी ।
विनोद समय पर पहुँच गया , पर्ची भेजी और जैसे ही अंदर पहुँचा , विजय सिंह साहब ने गुस्से में पूछा – “तुम अपने आप को समझते क्या हो , सरकारी आदेश की अवहेलना करते हो ?” विनोद ने अपना जॉइनिग लेटर उन्हें दिखाते हुए कहा कि सर मैं ज्वाइन कर चुका हूँ । CS कुछ ठंडे हुए , और कहने लगे तुमने क्या लापरवाही कर रखी है , ये मेरी टेबल पर नगर निगम उज्जैन में तुम्हारे कार्यकाल में बनी सड़कों की बदहालियों की रिपोर्ट है और इसमें तुम्हें निलंबित करने का प्रस्ताव है । विनोद अचानक आई विपदा से से कुछ विचलित हुआ , पर अपने काम के बारे में वो दुरुस्त रहता था , तो उसने कहा सर इजाज़त हो तो मैं कुछ अर्ज़ करना चाहता हूँ । CS ने हाँ कहा तो उसने कहा सर मुझे काम करने के कुछ ही माह मिले थे , इतने कम समय में हमने साफ़-सफ़ाई , परिवहन , जलप्रदाय जैसी अनके सुविधायें उपलब्ध कराने के साथ सैकड़ों सड़कें भी बनवायीं । इनमें से केवल चार-पाँच सड़कों के ख़राब होने की शिकायत हुई है , जो सही भी है , पर वे सभी सड़कें परफ़ॉर्मेंस गारण्टी में कवर्ड हैं , इनको समय सीमा पर सुधारने का जिम्मा भी सड़क बनाने वाले ठेकेदार का ही है । विजय सिंह साहब सुनते रहे और विनोद को देखते भी रहे , फिर बोले तुम इंदौर रहे हो क्या ? विजय सिंह जब इंदौर कमिश्नर थे तो विनोद वहाँ प्रोबेशनर डिप्टी कलेक्टर था , और सिंह साहब के राजबाड़े के सौंदर्यीकरण और छतरियों के साज सम्हाल जैसी कई परियोजनाओं में अपने स्वभाव अनुरूप बढ़ चढ़कर काम किया था । विनोद ने गर्दन हिलाई और कुछ प्रोजेक्ट भी याद दिलाए ।
विजय सिंह साहब को उसके किए काम याद आए और वे मुस्कुराए और बोले ठीक है तुम जाओ । भाग्य इसी को कहते हैं , कहाँ विनोद डाँट खाने गया था और कहाँ इतनी बड़ी मुश्किल से निजात पाकर CS के कक्ष से निकला ।