Questions Raised- Why IAS Suleman Took VRS: सीनियर IAS मोहम्मद सुलेमान के VRS के पीछे कई कयास, वक्त सच बताएगा!

शिवराज सरकार में 18 साल दबदबा रहा, CS नहीं बन पाने का मलाल भी रहा!

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Questions Raised- Why IAS Suleman Took VRS: सीनियर IAS मोहम्मद सुलेमान के VRS के पीछे कई कयास, वक्त सच बताएगा!

सुरेश तिवारी की विशेष रिपोर्ट

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Bhopal : Questions Raised- Why IAS Suleman Took VRS: सीनियर IAS मोहम्मद सुलेमान के VRS लेने के पीछे कई कयास लगाए जा रहे हैं। अब यह वक्त बताएगा कि इसका सच क्या है? जिस अधिकारी का शिवराज सरकार में 18 साल तक लगातार दबदबा रहा, वो आज हाशिए पर है। उन्हें मुख्य सचिव नहीं बन पाने का मलाल भी रहा!

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*जानिए इस एपिसोड की पूरी कहानी :* 

भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1989 बैच के सीनियर IAS अधिकारी मोहम्मद सुलेमान ने रिटायरमेंट के करीब पांच महीने पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) ले ली। उन्होंने महीने भर पहले जो आवेदन दिया था, उसे सरकार ने मंजूर कर लिया। पर, अब ये सवाल जवाब मांग रहा है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि उनका नौकरी से मन उचट गया। जबकि, 5 महीने बाद जुलाई में वे रिटायर होने वाले थे। उनका VRS लेना सामान्य बात नहीं है। कुछ तो ऐसा हुआ ही है, जिस वजह से उन्होंने यह फैसला लिया!

डेढ़ साल पहले तक जिस अफसर की वल्लभ भवन में तूती बोलती थी, वे खामोशी से पिछले रास्ते से क्यों बाहर आ गए! इसके कई कारण वल्लभ भवन के गलियारों में तैर रहे हैं। पर, सबका लब्बोलुआब यही है कि मोहम्मद सुलेमान की विदाई के पीछे कुछ ऐसे कारण जरूर हैं, जो सिर्फ वे जानते हैं! वे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के न सिर्फ विश्वस्त अफसर थे वरन तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के बाद मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में नंबर दो की स्थिति में थे। शिवराज की सरकार के 18 साल में सुलेमान का अलग ही दबदबा था। साफ कहा जाए तो इकबाल सिंह बैस के बाद मोहम्मद सुलेमान ही वे शख्स थे, जिनकी शिवराज परिवार से निकटता रही! यह कहने में कोई अड़चन भी नहीं कि यदि शिवराज सिंह मुख्यमंत्री होते तो मोहम्मद सुलेमान ही आज चीफ सेक्रेटरी होते। वे मुख्य सचिव अनुराग जैन के समकक्ष बैच (1989) के ही IAS अधिकारी है और CS की दौड़ में अग्रणी पंक्ति में थे।

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फिलहाल वे कृषि उत्पादन आयुक्त (APC) है। सुनने में यह कुर्सी भले ही बड़ी लगती हो, पर वास्तव में है नहीं! इस विभाग का न तो बजट में कोई दखल है और न प्रशासनिक रूप से इसकी धमक महसूस की जाती है। उनको मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल के अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया। यह दोनों ऐसे प्रभार हैं जिसमें दिन भर में शायद इक्का-दुक्का फाइल ही टेबल पर आती है।

एक तरह से मंत्रालय में उनकी उपस्थिति नहीं के समान ही मानी जा सकती है। बताया जाता है कि जिस अफसर से मिलने के लिए लाइन लगती थी और जिसके पास फाइलों का इतना अम्बर होता था यानि इतना अधिक वर्कलोड था कि एक मिनिट का समय निकालना मुश्किल होता था, अब वहां किसी अफसर या फाइल के दर्शन न के बराबर थे। स्वाभाविक रूप से और निश्चित रूप से यह बात उन्हें खली भी होगी।

APC (एग्रीकल्चर प्रोडक्शन कमिश्नर) का पद सुनने में तो बड़ा और गरिमापूर्ण लगता है, लेकिन ब्यूरोक्रेट्स के बीच इसे लूप लाइन पोस्टिंग ही माना जाता है।

मंत्रालय की चर्चाओं को अगर सही माना जाए तो अनुराग जैन के मुख्य सचिव बनने के बाद उन्हें झटका जरूर लगा। इसके बाद ही उन्होंने फ्यूचर प्लानिंग की होगी।

वे मुख्य सचिव क्यों नहीं बन सके, इस सवाल के कई जवाब हैं और उनमें बड़ा कारण सामाजिक भी माना जा सकता है। वर्ना उनके पास प्रशासनिक अनुभव का बड़ा खजाना है। कोरोना काल में उन्हें प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में अपर मुख्य सचिव (ACS) हेल्थ का अहम जिम्मा सौंपा गया था। वे इंदौर समेत कई जिलों में कलेक्टर रहने के अलावा ऊर्जा और उद्योग विभाग में लंबे समय तक प्रमुख सचिव रहे हैं। इसमें भी ऊर्जा संबंधित मामलों में उनकी महारत मानी जाती है और यही कारण है कि नौकरी से मुक्त होने के बाद वे ऊर्जा (एनर्जी) से जुड़े विषय में पीएचडी करने वाले हैं।

आज के दौर में देश के सभी नामचीन उद्योगपति एनर्जी के क्षेत्र में पैर फैला रहे हैं, तो समझा जा सकता है कि पीएचडी करके डॉ मोहम्मद सुलेमान बनने के बाद उनकी पूछ परख किस तरह होगी! वे दिल्ली के ‘द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ (टेरी) से पीएचडी करने वाले हैं। आश्चर्य नहीं कि बाद में वे किसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में किसी बड़े ओहदे पर दिखाई दें।

प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद चार साल से स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के अपर मुख्य सचिव (ACS) के पद पर बैठे मोहम्मद सुलेमान को कृषि उत्पादन आयुक्त बनाया गया, जो उनके अनुभव, क्षमता और विशेषताओं के हिसाब से बहुत हल्का पद है। उनकी काबलियत को कमलनाथ सरकार के समय भी महसूस किया गया था। जब 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तो मोहम्मद सुलेमान को उद्योग जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिला था। यहां तक कि इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट्स के लिए कमलनाथ जनवरी 2019 में उन्हें अपने साथ स्विट्जरलैंड भी ले गए थे।

ऐसे में कहा जा सकता है वे वल्लभ भवन के गलियारों में अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे थे। इसीलिए उन्होंने अपनी काबिलियत को सिद्ध करने के लिए नया रास्ता चुना। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह रास्ता अब आगे उन्हें कहा लेकर जाता है?