
Divorce Cases of Jain Community : जैन समाज के तलाक संबंधी 28 मामले इंदौर फैमिली कोर्ट ने खारिज किए, मामला हाई कोर्ट पहुंचा!
कोर्ट ने कहा ‘जैन समाज अल्पसंख्यक वर्ग में, उसे हिंदू मैरिज एक्ट में तलाक लेने का हक नहीं!’
Indore : फैमिली कोर्ट के एक फैसले से जैन समाज में भारी नाराजी है। मामले के अनुसार, पिछले महीने फ़ैमिली कोर्ट ने जैन समाज की एक दंपत्ति की तलाक की याचिका ये कहकर खारिज कर दी, थी कि जैन समाज अल्पसंख्यक वर्ग में आता है। उसे हिंदू मैरिज एक्ट में तलाक लेने का हक नहीं है। कोर्ट ने फैसले में यह भी बताया कि कैसे जैन, हिंदू धर्म से अलग है। इसके खिलाफ समाज की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट में लंबित याचिकाओं को खारिज करने पर रोक लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद जैन धर्म सनातन का ही हिस्सा है, इसे कोर्ट में साबित करने के लिए जैन समाज के वकील पुराने संदर्भ खंगाल रहे हैं! इस बारे में विश्व जैन संगठन और दिगंबर जैन सोशल ग्रुप फेडरेशन के मीडिया प्रभारी राजेश जैन का कहना है कि वोट मांगते समय नेता जैन समाज को सनातनी कहते हैं। लेकिन, कोर्ट हमें सनातनी नहीं मान रहा। ये जैन समाज के साथ अन्याय है। अभी तक सब कुछ ठीक चल रहा था, अब ऐसा क्या हुआ, जो जैन समाज के साथ इस तरह का बर्ताव किया जा रहा है।

जानिए क्या है यह मामला
इंदौर फैमिली कोर्ट के सामने एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की तरफ से तलाक की याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता की शादी 2017 में हुई थी। साल 2024 में इस दंपत्ति ने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम (हिंदू मैरिज एक्ट) की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से तलाक की मांग की। फैमिली कोर्ट ने कहा कि 27 जनवरी 2014 को केंद्र सरकार जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की अधिसूचना जारी कर चुकी है। इस धर्म के अनुयायियों को अब हिंदू विवाह अधिनियम के तहत राहत पाने का कोई अधिकार नहीं है। फैमिली कोर्ट ने कहा कि जैन समुदाय परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 7 के तहत अपने वैवाहिक विवादों को समाधान के लिए पेश करने के लिए स्वतंत्र है।
फैसले पर वकीलों की आपत्ति
याचिकाकर्ता के वकीलों ने फैमिली कोर्ट के सामने तर्क रखा था कि जैन समाज के वैवाहिक विवादों का निराकरण अब तक हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही होता आ रहा है। हिंदू विवाह अधिनियम में मुस्लिमों को छोड़कर हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को शामिल किया गया है। वैवाहिक विवादों के निपटारे के लिए जैन समाज का कोई अपना कानून नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 7 के तहत अपने वैवाहिक विवादों को समाधान के लिए पेश करने दंपती स्वतंत्र है। याचिकाकर्ता के वकील प्रमोद जोशी का तर्क है कि धारा 7 में याचिका दायर करने का प्रावधान ही नहीं है। धारा-7 में किन मामलों को सुना जा सकता है, केवल इसका जिक्र है।
सिख और बौद्ध भी तो अल्पसंख्यक
फैमिली कोर्ट में वर्तमान में पांच खंडपीठ हैं। जिस खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया, उसी कोर्ट ने 28 और याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस बारे में एडवोकेट कहते हैं कि पूरे भारत में ऐसा नहीं हुआ। जो केस खारिज किए गए हैं, उनमें दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना, तलाक, आपसी रजामंदी से तलाक के केस हैं। जैन समाज के लिए कोई अलग से कानून ही नहीं है। फैमिली कोर्ट के फैसले के आधार पर तो सिख, बौद्ध सभी की याचिकाएं खारिज हो जानी चाहिए। इन्हें भी अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।
हाईकोर्ट गए याचिकाकर्ता
इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उनके एडवोकेट दिलीप सिसोदिया ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में दलील दी कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2-बी हिंदुओं के अलावा जैन, बौद्ध और सिख समुदायों पर भी लागू होती है। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जैन समुदाय के लोगों के वैवाहिक अधिकारों से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने दलील सुनने के बाद फैमिली कोर्ट के जैन समाज को अल्पसंख्यक बताकर तलाक की याचिकाएं खारिज करने पर रोक लगा दी है। इस मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी। साथ ही कोर्ट ने हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट को न्यायमित्र के रूप में नियुक्त किया है, जो दोनों पक्षों की बातें सुनकर अपना मत हाईकोर्ट में रखेंगे।





