केंद्रीय बजट आ रहा है। पांच राज्यों में चुनाव जोर पकड़ चुका है। उत्तर प्रदेश का चुनाव देश का भाग्य तय करेगा। मोदी-योगी के लिए यह चुनाव निर्णायक है। पंजाब के किसान लड़ाई जीतकर चुनावी चौसर पर निगाहें टिकाए हैं। यहां सिद्धू-चन्नी की चकल्लस मतदाताओं को कितनी रास आती है, यह एक चरण के चुनाव में ही तय हो जाएगा। उत्तराखंड में धामी क्या धमाल मचा पाते हैं, यह पता चलने वाला है।
गोवा में मनोहर पर्रिकर के बेटे से परहेज करने वाली भाजपा पर सबकी निगाहें हैं। तो मणिपुर में भाजपा गठबंधन का असर सरकार की उत्तर-पूर्व नीति से जोड़कर देखा जाएगा। पर इन पांच राज्यों में चुनाव से पहले के केंद्रीय बजट पर उन करोड़ों मतदाताओं की निगाहें जरूर टिकी हैं, जिनकी मुट्ठी में देश का भाग्य भी है और राज्यों में राजनैतिक दलों की किस्मत भी इनकी सोच पर निर्भर है। चुनाव से ऐन वक्त पहले का बजट आम आदमी को कितना खुश कर पाता है। उनकी जेब को कितनी राहत मिलती है। युवाओं के हाथों को काम मिलने की कितनी उम्मीद यह बजट पैदा करता है। महिलाओं के किचन में बजट की खुशबू कितनी फैल पाती है।
कोरोना जैसी महामारियों और स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चों में राहत का कितना तड़का लगता है। उद्योगों को क्या सौगात मिलती है। बिजली, सड़क, पानी, रोटी, कपड़ा, मकान पर बजट में सरकार का इम्तिहान होगा और मूल्यांकन मतदाताओं के हाथ में है। तो सबसे बड़ा फैसला करने वाला है किसान, कि बजट में उनके खेत-खलिहानों पर सरकार की कोशिश क्या किसान आंदोलन की बुरी यादों को दिलो-दिमाग से निकाल फेंकने का बंदोबस्त कर सकेगी? तो यह तय है कि तमाम राजनीतिक समीकरणों के साथ-साथ इन पांच राज्यों के 18 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं की राय बनाने में बजट की भूमिका भी अहम होने वाली है।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पहले ही कह चुकी हैं इस बार का बजट ऐसा होगा, जैसा पहले कभी नहीं देखा गया होगा। तो उम्मीद करें कि बजट ऐसा ही होगा, जिसमें किसान, नौजवान, आयकरदाता, विद्यार्थी वर्ग, छोटे-बड़े व्यवसायी, महिलाएं, उद्योगपति आदि सभी के चेहरों पर वह खुशी दिखाई देगी जैसी कि अभी तक नहीं दिखी हो। बजट यदि राहत भरा होगा और महंगाई से छुटकारा दिलाएगा, तब पांच राज्यों के करोडों एंटी मतदाता भी कुछ सेंटी तो जरूर होंगे। पेट्रोल-डीजल के दाम कम होंगे तो सौ फीसदी मतदाता प्रभावित होंगे। घरेलू गैस सिलेंडर के दाम कम होंगे तो आधी आबादी दुआ करेगी। किसानों के लिए सरकार विशेष पैकेज लाएगी तो अपने दल की तरफ मतदाताओं को लुभा पाएगी।
अनुमान लगाए गए हैं कि कोरोना से प्रभावित अर्थव्यवस्था में लोगों को बूस्टर डोज का इंतजार है। संभावना है कि सरकार धारा 80 सी में कर स्लैब और कटौती को रीस्ट्रक्चर कर सकती है। प्रधानमंत्री आवास योजना में अधिक से अधिक आवंटन हो सकता है और इसे लागू करने पर जोर रहेगा। ग्रामीण और कृषि क्षेत्र पर जोर है। ग्रामीण क्षेत्र के लिए अधिक बजटीय आवंटन देख सकते हैं।
कृषि क्षेत्र के लिए कुछ नए प्रावधान किए जा सकते हैं। मैन्यूफैक्चरिंग या विनिर्माण क्षेत्र में सरकार अधिक से अधिक क्षेत्रों के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजनाओं को जारी रख सकती है। हम आयातित वस्तुओं जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, टायर आदि के लिए ड्यूटी बढ़ती देख सकते हैं। विभिन्न वस्तुएं भी बहुत कम आयात शुल्क को आकर्षित कर रही है। सरकार उन पर भी आयात शुल्क लगा सकती है। व्यापक फोकस घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने पर होगा।
तो निर्मला सीतारमण का बजट उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की नजर में काशी-विश्वनाथ मंदिर और राम मंदिर के साथ-साथ बूस्टर डोज का अहसास दिलाने के लिए काफी होगा या फिर कुछ और सोचने पर मजबूर करेगा। तो कृषि के प्रावधान पंजाब के किसानों को भी मरहम की घुट्टी पिलाकर भाजपा की धारा में लाने की कोशिश करते दिखाई दे सकते हैं। उत्तराखंड में अदला-बदली की परंपरा पर विराम लगा सकते हैं।
तो गोवा-मणिपुर के मतदाताओं पर मोहिनी असर डाल सकते हैं। देखते हैं निर्मला सीतारमण का बजट का बस्ता पांच राज्यों के चुनावों की दृष्टि से महंगाई पर कितना शिकंजा कसने वाला दिखता है। तब यह भी उम्मीद लगाई जा सकती है कि निर्मला का गिफ्ट यदि ऐसा होगा कि जैसा अभी तक किसी ने नहीं देखा होगा, तब फिर तय है कि पांच राज्यों के मतदाता भी ऐसा रिटर्न गिफ्ट दिए बिना नहीं मानेंगे जैसा मोदी-शाह और निर्मला ने अभी तक नहीं देखा होगा।