
विश्व संग्रहालय दिवस
Don Bosco Museum, Shillong : डॉन बॉस्को म्यूज़ियम, शिलांग– एक सांस्कृतिक यात्रा
एशिया के सबसे बेहतरीन संग्रहालयों में से एक के रूप में प्रशंसित, डॉन बॉस्को संग्रहालय जो शिलांग में स्थित है (जिसे स्वदेशी संस्कृतियों के डॉन बॉस्को केंद्र के रूप में जाना जाता है) केवल एक संग्रहालय नहीं है। यह पूर्वोत्तर भारत के स्वदेशी आदिवासी समाज की जीवनशैली, व्यवसाय, पोशाक आदि का दर्पण है। यह शिलांग शहर के मावलाई फुदमावरी क्षेत्र में स्थित है। डॉन बॉस्को संग्रहालय एक सात मंजिला षट्कोणीय आकार की इमारत है और यह क्षितिज का दृश्य भी प्रदान करती है जो आगंतुकों को शिलांग के अवलोकन को देखने की अनुमति देती है। इमारत का डिज़ाइन अद्भुत है और इसे शिलांग का वास्तुशिल्प गौरव कहा जाता है।आज विश्व संग्रहालय दिवस पर इसकी जानकारी दे रहे हैं अपनी घुम्मकड़ी के लिए जाने जाते इंदौर के श्री महेश बंसल -सम्पादक
महेश बंसल, इंदौर
पूर्वोत्तर भारत की रंगीन संस्कृति और जीवंत विरासत को एक ही छत के नीचे समेटे हुए है .. डॉन बॉस्को म्यूज़ियम, जो शिलांग (मेघालय) के हृदय में स्थित है। मार्च 2024 की एक सुनहरी सुबह, जब हम इस संग्रहालय के भव्य द्वार से भीतर प्रविष्ट हुए, तो यह केवल एक पर्यटन स्थल नहीं था – यह एक ऐसी यात्रा थी, जिसने हमें भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्यों की आत्मा से रूबरू कराया।

संग्रहालय में प्रवेश करते ही सामने दिखाई दिए आदिवासी जनजातियों के आदमकद म्यूरल्स – इतने जीवंत कि ऐसा प्रतीत होता था मानो वे स्वागत कर रहे हों। उनके पारंपरिक वस्त्र, आभूषण और हाव-भाव संस्कृति की सजीव अभिव्यक्ति थे। एक गैलरी में पारंपरिक वाद्ययंत्रों की छवि और उनकी झंकार मन के तारों को झंकृत करने लगी।

सात मंज़िलों की संस्कृति यात्रा
यह संग्रहालय अपनी भव्य संरचना और अनूठे प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। सात मंज़िलों में विभाजित इस संग्रहालय में 17 गैलरियाँ हैं, जिनमें पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय परंपराओं, लोककला, वेशभूषा, हथियारों, औज़ारों, बांस शिल्प, नृत्य और धार्मिक विश्वासों का विस्तृत प्रदर्शन किया गया है। प्रत्येक मंज़िल जैसे एक नया संसार खोलती है .. कभी मिज़ोरम की पारंपरिक झोंपड़ियाँ दिखती हैं, तो कभी नागालैंड की उत्सवों से सजी जनजातियाँ अपने जीवंत रंगों में।
डॉन बॉस्को म्यूज़ियम केवल देखने का अनुभव नहीं है .. यह ज्ञान और समझ की गहराई में उतरने का निमंत्रण है। आधुनिक तकनीक से सजी स्क्रीनें, टच-पैनल्स और ऑडियो-विजुअल प्रस्तुतियाँ बच्चों और बड़ों दोनों के लिए रोचक थीं। हमने वहाँ के ‘साइंस गैलरी’ में पूर्वोत्तर की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और खेती की तकनीकों को भी देखा।

छत से पूर्वोत्तर का विहंगम दृश्य
म्यूज़ियम की अंतिम मंज़िल पर बनी स्काईवॉक गैलरी से जब हमने चारों ओर नज़र डाली, तो शिलांग की सुंदर पहाड़ियाँ और दूर तक फैले हरियाले दृश्य आँखों में बस गए। ऐसा लगा जैसे डॉन बॉस्को म्यूज़ियम ने न केवल अतीत की संस्कृति को दिखाया, बल्कि वर्तमान की सुंदरता को भी सहेज कर रख दिया हो।

डॉन बॉस्को म्यूज़ियम का उद्देश्य
यह संग्रहालय डॉन बॉस्को सेंटर फॉर इंडिजिनस कल्चर का एक हिस्सा है, जो स्थानीय जनजातियों की संस्कृति को संरक्षित करने और युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ने का कार्य करता है। यहाँ हमें यह समझ में आया कि विविधता में एकता क्या होती है .. भाषा, वेशभूषा और परंपराएँ भले ही भिन्न हों, लेकिन सभी में प्रकृति के प्रति प्रेम और समुदाय की भावना समान रूप से विद्यमान है।


हमारी यह यात्रा केवल एक स्थल-दर्शन नहीं थी .. यह एक संवेदनात्मक अनुभव थी, जिसमें हमने पूर्वोत्तर भारत को महसूस किया, उसकी सांसों को सुना, और उसकी धड़कनों के साथ अपने मन को जोड़ा। डॉन बॉस्को म्यूज़ियम से निकलते हुए हमारे मन में आदर, जिज्ञासा और जुड़ाव की भावना थी .. और यह अनुभव आज भी मन में जीवंत है।

महेश बंसल, इंदौर
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