Shocking Issues: इन घटनाओं- बयानों ने देश को दहला दिया

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Shocking Issues: इन घटनाओं- बयानों ने देश को दहला दिया

रमण रावल

आइये, पहले कुछ घटनाओं-बयानों पर नजर डाल लेते हैं-

1-जिन्होंने बहनों का सिंदूर उजाड़ा,उन्हीं की बहन को भेजकर ऐसी-तैसी कर दी-पहलगाम आतंकवादी हमले के संदर्भ में विजय शाह केबिनेट मंत्री,मप्र शासन के ,13 मई,मानपुर(इंदौर) में भाषण का अंश।

2-ऑपरेशन सिंदूर पर पूरा देश,देश की सेना प्रधानमंत्री के चरणों में नतमस्तक है- जगदीश देवड़ा,उप मुख्यमंत्री,मप्र शासन,16 मई।

3-पहलगाम हमले में जिन महिलाओं ने अपने पति,परिजन को खोया वे वीरांगना की तरह आतंकवादियों से लड़ती तो कम लोग मरते-रामचंद्र जांगरा,राज्यसभा सासंद,भाजपा-25 मई।

4-मंदसौर(मप्र) जिले के भानपुरा इलाके में मुंबई-दिल्ली एक्सप्रेस हाई वे पर क्षेत्रीय भाजपा कार्यकर्ता मनोहरलाल धाकड़ का महिला मित्र के साथ अंतरंग पलों के वीडियो का वायरल होना-20 मई।

5-शहडोल(मप्र) जिले के बुढ़वा गांव के एक कपड़ा शो रूम के चेंजिंग रूम में लगे सीसीटीवी कैमरे में महिला ग्राहकों के कपड़े बदलते हुए वीडियो वायरल होना-25 मई।

6-खंडवा(मप्र) जिले में दो दरिंदों द्वारा एक परिचित महिला से पहले दुष्कर्म,फिर क्रूरतापूर्ण हरकत,जिससे बच्चादानी बाहर निकल आई और महिला की मौत हो गई-24 मई।

यह सही है कि पहली तीन घटनायें नेताओं के अर्नगल बयानबाजी की है, जबकि शेष तीन घटनायें समाज के कुछ वर्ग के गंभीर,निकृष्ट कदाचरण की है, जो बेशर्मी,क्रूरता और कामांधता की पराकाष्ठा को दर्शाती है। सोचकर हैरानी होती है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। सच पूछा जाये तो इन पर चर्चा करते हुए भी कोफ्त होती है कि किन मामलों में हमें विचार विमर्श करना पड़ रहा है। बेशक, ये घटनायें समूचे समाज के चरित्र का आईना नहीं हैं। फिर भी ये उसके एक उस हिस्से की असलियत है, जो सड़ांध मार रहा है। कोढ़ बनकर हमें विचलित कर रहा है।

पहले नेताओं के विवेकहीन बयानों की बात कर लेते हैं। एक तरफ जब समूचा राष्ट्र आतंकवादियों के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई का यशगान कर रहा होता है,अपनी सफलता व उपलब्धि पर झूम रहा होता है, तब दूसरी तरफ चंद नेता ऐसी भोंडी भाषा में तुलना-उपमा देने लगते हैं, जिसका सिर-पैर खुद उन्हीं की समझ से बाहर है। वे भले ही बाद में सौ-सौ माफी मांगे, वह हरकत खारिज तो नहीं की जा सकती। ये नेता किस दल के हैं, उनका ओहदा क्या है,वे किसके लिये कितनी अहमियत रखते हैं, वे जनता के द्वारा चुने हुए हैं या नहीं, उन्हें उनके दल द्वारा रखना,न रखना कोई मायने ही नहीं रखता। उन्होंने नितांत अमर्यादित,अवांछनीय हरकत की है याने की है। अब यह कोई महाभारत काल तो है नहीं कि कोई शिशुपाल निन्यानवें गलतियां करे और कोई वासुदेव उसे क्षमा करते रहें। फिर सौवीं गलती करने पर उसकी मुंडी उड़ा दे। यह तो इक्कीसवीं सदी है, जहां आतंकवादियों के भी मानवाधिकार होते हैं। जिसमें 99-100 गलतियां या अपराध कोई मायने नहीं रखते। यहां तो मुंबई में आतंकवादी हमले में डेढ सौ से अधिक लोगों को मार डालने वालों को भी बिरयानी खिलाकर जिंदा रखा जाता है,क्योंकि हमले का सबूत देना होता है, नहीं तो मानवाधिकार हनन का प्रकरण और दर्ज हो जाये।

मुझे तो नेताओं के बोल-वचन में किसी विवेक,नीति,मर्यादा की बात करना ही बेमानी लगता है। ऐसा उनके लिये नहीं है, जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, ,जो विवेकशील हैं, सुसंस्कृत हैं, विचारवान हैं,तार्किक हैं। इनकी संख्या कम है, लेकिन इन्होंने कश्ती संभाल रखी है। भारतीय राजनीति में भले ही यह अनुपात 60-40 का हो, लेकिन वे भी संख्या बल की राजनीति के आगे विवश हैं, कई बार तो बौने भी साबित होते हैं। यह दौर जारी है, जो सार्वजनिक जीवन को बेलगाम कर रहा है।

यूं तो राजनीति का अपराधीकरण तो अरसे पहले से हो चुका, किंतु अफसोस इस बात का है कि कमोबेश सभी दलों में इस ओर वास्तविक ध्यान ही नहीं है। यह भी संभवत: लोकतंत्र की बड़ी खामी हो, लेकिन यह विकराल स्वरूप लेती जा रही है। मेरी तरह देश का बड़ा वर्ग यही सोचता है कि स्पष्ट कदाचरण,अर्नगल,अमर्यादित दिखने वाले मामलों में नीर-क्षीर विवेचन अव्वल तो होता नहीं, फिर हो जाये तो कार्रवाई से दल प्रमुखों को परहेज क्यों रहता है? उन्हें क्यों नहीं लगता कि एक पर उचित व ठोस कार्रवाई करने से शेष पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और वे भविष्य में सचेत रहेंगे। इस बीच कोई दल छोड़ना चाहे तो छोड़ दे, क्या् फर्क पड़ता है ?

अब उन घटनाओं पर आते हैं। मुंबई-दिल्ली एक्सप्रेस हाई वे पर मप्र सीमा में मंदसौर जिले में भले ही रात के अंधेरे में ,लेकिन वाहनों की आवाजाही के दौरान नेताजी व उनकी कथित सहेली(जो बाद में कालगर्ल निकली) ने कामसूत्र के आसनों का जिस तरह से सड़क पर प्रदर्शन किया, वह हमारी समूची चेतना के चिथड़े उड़ा देने वाला है। इसकी तो विवेचना-व्याख्या करते घिन आती है। नितांत निजी क्रिया सड़क जैसे निहायत सार्वजनिक स्थान पर अंजाम देना इस तरह के विकृत सोच वाले लोगों की अपरिभाषेय,निकृष्टतम कुचेष्टा ने लोक मर्यादा के झिने परदे को दावानल में जला डालने जैसी है। दुस्साहस और बेहयाई की पराकाष्ठा देखिये कि वही मोहतरमा इस घटना में एक खबरनवीस के साथ चर्चा में वीडियो पर कह रही है कि शरीर मेरा,मरजी मेरी,कहीं पर भी करूं। आपको भी करना हो तो करो। आप सोच सकते हो कि समाज के ये चेहरे अधोपतन की किस खाई में तेजी से फिसल रहे हैं?

दूसरी घटना शहडोल जिले के गांव बुढ़वा की है। वहां कपड़े की दुकान के ट्रायल रूम में छुपाकर कैमरा लगा रखा था, जिससे जुड़े कंप्यूटर पर दुकान मालिक व उसका 14 वर्षीय बेटा देख कर अपनी हवस कामना को संतुष्टि देते होंगे। यह सिलसिला चलता रहता, यदि बेटे ने वे फूटेज मोबाइल में लेकर वायरल न किये होते। यह मामला ज्यादा ध्यान देने लायक इसलिये है कि सेक्स विकृति के जहरीले डंक किस तरह से हमारे ग्रामीण जनजीवन में भी घुल-मिल गये। शहरों में नीला जहर रचा-बसा है, वह तो अपनी जगह, किंतु आत्मीयता,मर्यादा,नैतिक जीवन के पौधे,लतायें गांवों में लहलहाते नजर आ जाते हैं-यह घटना उस पर विष घोल के छिड़काव जैसी है।

तीसरी घटना मप्र के ही खंडवा जिले के खालवा ब्लॉक के छोटे-से गांव की है। वहां दो मजदूर एक परिचित महिला के साथ पहले सामूहिक दुष्कर्म करते हैं ,फिर सरिये या किसी नुकीली वस्तु से यौनि पर ऐसा प्रहार करते हैं कि बच्चादानी व आंतें बाहर आ जाती हैं। उस महिला की आत्मा की नृशंस हत्या के बाद उसके शरीर को भी छिन्न-भिन्न करने का यह भले ही पहला मामला न हो(निर्भया के बाद), लेकिन इसने जनमानस को दहला दिया है। यह संवेदना की भ्रूण हत्या जैसा ही है। अब उन जालिमों को जो भी सजा मिले,कुछ फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने पुरुष होने पर कलंक पोत डाला। फिर भी सजा तो ऐसी मिलनी चाहिये कि अरसे तक संभावित अपराधी के दिल-दिमाग में शंखनाद की तरह गूंजे।

मसला यह है कि हमारे आसपास जंघा ठोंकने वाले दु:शासन टिड्‌डी दल की तरह फैलते जा रहे हैं। धृष्टता करने वाले शिशुपालों की नस्ल गली-गली घूम रही है। यौन हिंसा करने वाले मर्द होने के अभिमानी बने हमारे समाज में उठ-बैठ रहे हैं। न्याय व्यवस्था,शासन-प्रशासन,नेतृत्व ज्यादातर बार प्रक्रिया,कानून और सबूत की पट्‌टी आंखों पर बांधकर चाहे-अनचाहे धृतराष्ट्र बनकर पेश आ रहा है या भीष्म की तरह मौन रह जाता है। तो फिर इस कलियुग में कौन कृष्ण, किस अर्जुन को दुष्ट दमन के लिये गांडीव उठाने के लिये कब गीतोपदेश देगा ?