Women Protests Against Corruption: सरकारी कार्यालय में ‘कमीशन’ का काला खेल, नाराज महिलाएं कलेक्टर की गाड़ी को घेरकर धरने पर बैठी, कलेक्टर ने CEO को सौंपी जांच

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Women Protests Against Corruption: सरकारी कार्यालय में ‘कमीशन’ का काला खेल, नाराज महिलाएं कलेक्टर की गाड़ी को घेरकर धरने पर बैठी, कलेक्टर ने CEO को सौंपी जांच

राजेश चौरसिया की खास रिपोर्ट

छतरपुर: छतरपुर जिले के जनजातीय कार्यालय में मंगलवार को उस वक्त हड़कंप मच गया जब विभाग में कार्यरत एकाउंटेंट पर महिलाओं ने हल्ला बोल दिया और ऑफिस के अंदर ही टेबिल-कुर्सी को घेरकर धरने पर बैठ गईं और सरेआम मीडिया के सामने कर्मचारी एकाउंटेंट रामबाबू शुक्ला को भृष्ट करार देते हुए रिश्वत/कमीशन लेने के आरोप लगाये।

महिलाओं ने खुलेआम भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए विभाग के अकाउंटेंट रामबाबू शुक्ला पर कमीशन मांगने के गंभीर आरोप लगाते हुए बुरा-भला कहा, मामले की गंभीरता और वक्त की नज़ाकत को देखते हुए (हमले और पिटाई के डर से) रामबाबू शुक्ला अपने अपनी टेबिल-कुर्सी सीट छोड़कर ऑफिस के कमरे से बाहर आकर बैठ गया। बाबजूद इसके महिलाओं ने वहां पहुंचकर बुराभला कहा और आरोपों की झड़ी लगा दी।

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●एकाउंटेंट बोला मैं 1995 से पदस्थ हूँ…

महिलाओं द्वरा लगाये आरोपों पर मीडिया के सवालों पर एकाउंटेंट रामबाबू शुक्ला बोला मैं 1995 से पदस्थ हूँ, जब पूछा कि इतने सालों से एक ही जगह क्यों तो वह बोला यह शासन और अधिकारी जानें, एकाउंटेंट के जवाब पर महिलाओं का गुस्सा फूट पड़ा और वह बोलीं कि इसी लिए तो भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूब गये हो और अंगद के पैर की तरह जमे हुए हो।
यहां महिलाओं ने आरोप लगाया कि हम छोटे लोगों की मेहनत की कमाई से कमीशन और रिस्वत लेकर भ्रस्टाचार में डूब गये हो पर अब हम ऐसा नहीं होने देंगे तुम्हें हटाकर रहेंगे। महिलाओं के आरोप हैं कि यहां के अधिकारी, शासन, प्रशाशन, जिम्मेदारों जनप्रतिनिधियों को यह नहीं दिखता कि इतने सालों से एक ही जगह क्यों जमा है। इससे तो साफ जाहिर होता है कि भ्रष्टाचार नीचे से ऊपर तक है उसकी बानगी यह एकाउंटेंट है। जिम्मेदारों को चाहिए कि इसे यहां से तत्काल हटाया जाये।

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●वेतन के बदले ‘कमीशन’ की डिमांड…

महिलाओं का आरोप है कि रामबाबू शुक्ला द्वारा वेतन भुगतान के एवज में खुलकर कमीशन की मांग की जाती है। जिनके द्वारा कमीशन दे दिया जाता है, उन्हें पूरा भुगतान मिलता है, जबकि विरोध करने वालों के वेतन में कटौती की जाती है या पेमेंट रोक दिया जाता है। अपनी आवाज बुलंद करने पर उन्हें हटाने की गाज़ गिराई जाती है।

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●पहले 8400 के बजाय दे रहे सिर्फ ₹5000 भुगतान…

प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने बताया कि पहले उन्हें 8400 रुपए भुगतान किया जाता था। मगर अब उन्हें काम के बदले में उन्हें सिर्फ ₹5000 का भुगतान किया गया। यह राशि न केवल न्यूनतम मजदूरी के नियमों के खिलाफ है, बल्कि विभागीय शोषण का उदाहरण भी है। महिलाओं का आरोप है जिन कर्मचारियों द्वारा कमीशन दे दिया जाता है उन्हें पूरा वेतन दिया जाता था बाकी कर्मचारियों को 3400 काटकर वेतन दिया जा रहा है।

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●कलेक्टर रेट पर भुगतान की मांग…

महिलाओं ने स्पष्ट कहा कि उन्हें ‘कलेक्टर रेट’ पर भुगतान मिलना चाहिए, जो उनके परिश्रम के अनुरूप है। वर्तमान में जिले में 200 से अधिक महिला एवं पुरुष कर्मचारी जनजातीय विभाग के तहत कार्यरत हैं, जो शोषण का शिकार हो रहे हैं।

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●एक ही जगह जमे अकाउंटेंट पर उठे सवाल…

गौरतलब है कि अकाउंटेंट रामबाबू शुक्ला लगभग 30 वर्षों से एक ही पद और स्थान पर जमे हुए हैं। आज तक उनका तबादला नहीं किया गया, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि विभागीय प्रशासनिक नीति और शासन के दिशा-निर्देशों की खुलेआम अवहेलना हो रही है। यह स्थिति विभागीय मिलीभगत की ओर इशारा करती है।

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●डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार ने सुनी व्यथा, कलेक्टर तक पहुंचाई बात…

विरोध के बीच मौके पर पहुंचे छतरपुर डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार संदीप तिवारी ने प्रदर्शन कर रहीं महिलाओं से संवाद किया और उनकी समस्याएं जानीं। इसके बाद कर्मचारियों के प्रतिनिधि मंडल की कलेक्टर से मुलाकात कराई गई। कलेक्टर ने मामले को टीएल (Time Limit) बैठक में शामिल कर शीघ्र निराकरण का आश्वासन दिया। वहीं महिलाओं का डिप्टी कलेक्टर से कहना था कि सर पिछली बार भी आपने समस्या सुनी थी पर कोई निराकरण नहीं हुआ नतीजा सिफर का सिफर रहा, जिसपर डिप्टी कलेक्टर ने कहा कि मामले में जांच चल रही है।

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●कलेक्टर की गाड़ी के सामने जमाया डेरा…

डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार के आश्वासन के बाद भी नहीं माने और कलेक्टर की गाड़ी के सामने धरना देकर बैठ गईं कि आज कलेक्टर को भी नहीं जाने देंगे।

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“शोषण की चुप्पी तोड़ी… अब जवाब चाहिए!”

> एक ओर सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है, तो दूसरी ओर सरकारी विभागों में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। जनजातीय कार्यालय जैसी संवेदनशील संस्थाओं में जब इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं, तो यह पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करती हैं। क्या एक अकाउंटेंट के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होगी? या फिर एक बार फिर सबकुछ ‘फाइलों’ में दफन होकर रह जाएगा?