Arrowhead Tigress: रणथंभौर की बाघिन ‘एरोहेड’ का आखिरी सफर: जंगल की रानी का सन्नाटा

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Arrowhead Tigress: रणथंभौर की बाघिन ‘एरोहेड’ का आखिरी सफर: जंगल की रानी का सन्नाटा

राजेश जयंत की रिपोर्ट 

रणथंभौर के घने जंगलों में जब हवाएं थम जाती हैं और पद्म तालाब के किनारे शाम का सन्नाटा गहराता है, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा जंगल किसी अपने को खो देने के ग़म में डूब गया हो। 19 जून 2025 की वही शाम थी, जब रणथंभौर की सबसे चर्चित और खूबसूरत बाघिन ‘एरोहेड’ (T-84) ने पद्म तालाब के किनारे अपनी आखिरी सांस ली। उसकी मौत ने न सिर्फ रणथंभौर, बल्कि पूरे वाइल्डलाइफ प्रेमियों को झकझोर दिया।

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एरोहेड के नाम से मशहूर और निडर मगरमच्छ का शिकार करने वाली मशहूर बाघिन टी-84 ने गुरुवार को रणथंभौर के जोगी महल के पास अंतिम सांस ली। टीम ने शव को कब्जे में लिया। वन अधिकारियों ने बताया कि बाघिन टी-84 यानी एरोहैड डेढ़ साल से अधिक समय से बोन ट्यूमर की बीमारी से जूझ रही थी।

एरोहेड: जंगल की रानी

एरोहेड, जिसे T-84 के नाम से भी जाना जाता है, रणथंभौर की सबसे फोटोजेनिक और लोकप्रिय बाघिनों में गिनी जाती थी। वह मशहूर बाघिन ‘कृष्णा’ (T-19) की बेटी और रणथंबोर की “लेडी ऑफ लेक” बाघिनी “मछली” (T-16) की नातिन थी। एरोहेड ने अपनी नानी और मां की ही तरह पूरे जंगल पर राज किया। एरोहेड की पहचान उसके माथे पर बने तीर (Arrow) जैसे निशान से हुई, इसी वजह से उसे ‘एरोहेड’ नाम मिला।

उसने रणथंभौर के जोन 3 और 4 में कई सालों तक अपना दबदबा बनाए रखा। पर्यटक उसकी एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से आते थे। उसके शावकों के साथ खेलते, शिकार करते या पद्म तालाब के किनारे आराम करते फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल होते थे।

मौत का कारण और अंतिम क्षण

बीते कुछ समय से एरोहेड की तबीयत खराब चल रही थी। वन विभाग की टीम लगातार उस पर नजर रख रही थी। 19 जून को पद्म तालाब के पास उसकी हालत और बिगड़ गई। डॉक्टरों की टीम मौके पर पहुंची, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका।

अपने अंतिम दिनों में-

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प्राथमिक जांच में बुढ़ापे और स्वाभाविक कारणों से मृत्यु की पुष्टि हुई है। एरोहेड लगभग 14 साल की थी, जो एक जंगली बाघिन के लिए औसत उम्र से कुछ ज्यादा है।

एरोहेड की विरासत

एरोहेड ने रणथंभौर में कई शावकों को जन्म दिया, जो आज भी जंगल में उसकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उसकी मौजूदगी से रणथंभौर का इकोसिस्टम मजबूत हुआ और टाइगर टूरिज्म को भी नई पहचान मिली।

उसकी मौत के बाद वन विभाग ने पूरे सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया। कई वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर, गाइड्स और स्थानीय लोग उसकी याद में पद्म तालाब पहुंचे।

रणथंभौर की शान को श्रद्धांजलि

एरोहेड की मौत से रणथंभौर के जंगलों में एक खालीपन सा आ गया है। उसकी दहाड़, पद्म तालाब पर उसकी मौजूदगी और शावकों के साथ उसके खेल अब सिर्फ यादों में रह जाएंगे।

लेकिन उसकी विरासत और जंगल की रानी होने का गौरव हमेशा रणथंभौर की हवाओं में महसूस किया जाएगा।