Travel Diary : आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा…

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Travel Diary : आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा…

     69 वर्षीय इंदौर निवासी श्री महेश बंसल, जो विगत वर्षों से बागवानी एवं प्राकृतिक लेखन में सक्रिय हैं, ने अपने परिवार और परिजनों के 14 सदस्यीय दल के साथ यह यात्रा की है।आदि कैलाश और ओम पर्वत यात्रा, उत्तराखंड में स्थित दो महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। आदि कैलाश, जिसे छोटा कैलाश भी कहा जाता है, भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, जबकि ओम पर्वत अपनी प्राकृतिक रूप से बनी ‘ओम’ आकृति के लिए प्रसिद्ध है. आम धारणा है कि आदि कैलाश और ॐ पर्वत की यात्रा अत्यंत कठिन होती है, लेकिन महेश जी का मानना है –
“यह यात्रा सुलभ है, कठिन तो कदापि नहीं। श्रद्धा हो तो हर कोई इसे कर सकता है।”

12 दिन की उनकी यात्रा डायरी के संस्मरण हम क्रमशः प्रतिदिन प्रकाशित करेंगे औरप्राकृतिक सौन्दर्य का और यात्रा अनुभव का आनंद शब्दों के माध्यम से लेते हुए हम पाठकीय परिक्रमा करेंगे ——–

स्वाति तिवारी – संपादक

1 -यह आत्मा की पुकार थी; एक ऐसा आह्वान जो हिमालय की गोद में छिपी दिव्यता से मिलने ले चला—–

महेश बंसल, इंदौर

 प्रथम दिवस-  बुलावे की वह अनसुनी पुकार अब सुनाई दी…

जिसकी वर्षों से मन में हूक थी, वह बुलावा इस बार सचमुच आ गया – और वह भी बहन कांता के माध्यम से। ऐसा प्रतीत हुआ मानो वे केवल सहयात्री नहीं, बल्कि स्वयं आदि देव की ओर से भेजी गई सन्देशवाहक हों।

हम चौदह तीर्थयात्री – यह कोई सामान्य यात्रा नहीं थी। यह आत्मा की पुकार थी; एक ऐसा आह्वान जो हिमालय की गोद में छिपी दिव्यता से मिलने चला आया था।
और इस बुलावे की संपूर्ण व्यवस्था – बिना किसी टूर ऑपरेटर के – भाभी उषा गुप्ता और बहन कांता गोयल ने जिस धैर्य, समर्पण और स्नेह से की, वह सचमुच अद्वितीय थी।

प्रबंधन नहीं, यह तो एक स्मृति रचना थी

तीन दिन की आदि कैलाश और ॐ पर्वत की मुख्य यात्रा हो या उसके पहले-पश्चात के नौ दिन, जिनमें होटल से लेकर हर पड़ाव की योजना सम्मिलित थी – इन दोनों देवियों ने जो किया, वह प्रबंधन नहीं, एक युग-स्मृति रचना थी।
यह कार्य अक्सर पुरुषों के जिम्मे समझा जाता है, लेकिन श्रद्धा और सेवा जब नारी के हाथ में होती है, तब वह एक तीर्थ को जीवंत कर देती है।

जब ‘हाँ’ ने यात्रा का द्वार खोल दिया…

करीब डेढ़ माह पूर्व कांता का फोन आया – “भाईसाहब, आदि कैलाश यात्रा पर चलोगे?”
जवाब में अनायास ‘हाँ’ निकल गया।
और उस ‘हाँ’ ने हमें यहाँ पहुँचा दिया – 9 जून को इंदौर से दिल्ली, और फिर दिल्ली से पंतनगर की यात्रा हमने वायुयान से की।
इसके बाद का सफर ऊँचे पहाड़ों, गहरी घाटियों और घुमावदार रास्तों पर, एसयूवी गाड़ियों से आरंभ हुआ।

 

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एक अप्रत्याशित भेंट – कपिल देव से आमना-सामना

दिल्ली एयरपोर्ट पर बोर्डिंग का इंतज़ार करते हुए एक अप्रत्याशित दृश्य ने सबका ध्यान खींचा – कॉफी स्टॉल के पास महान क्रिकेटर कपिल देव बैठे थे।
मोबाइल कैमरे जाग गए, कुछ लोग दूर से तो कुछ पास जाकर सेल्फी लेने लगे। हमारी टीम ने भी फोटो लिए, लेकिन यह देखकर मन ठहर सा गया कि कपिल देव जी की आँखों में एक अजीब सी शून्यता थी – वे न कॉफी से हटे, न मोबाइल से।

उन्हें यूँ लगातार ताकते, उनके पीछे भीड़ को भागते देख यही सोचा –
सेलेब्रिटी होना शायद उपलब्धि से अधिक बंधन बन जाता है।
हर पल पर नजरें, हर क्षण में हस्तक्षेप – निजता शायद खो ही जाती है।

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यात्रा की प्रथम स्थली – यति धाम और जोगेश्वर धाम

पंतनगर एयरपोर्ट पर उतरते ही हमारी चार गाड़ियाँ तैयार खड़ी थीं। उत्तराखंड की इस यात्रा में पहला देव दर्शन रास्ते में हल्द्वानी के यति धाम स्थित महालक्ष्मी मंदिर में हुआ। महालक्ष्मी की यह दिव्य प्रतिमा इंदौर के ही यति जी महाराज के शिष्य द्वारा भेंट की गई थी। हमारे कुछ सहयात्री दिवंगत स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज के अनुयायी थे – जिनका आश्रम ‘विश्वनाथ धाम’ इंदौर में भी स्थित है।

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अल्मोड़ा की टिमटिमाती रात – जैसे सितारों की बस्ती

रात्रि विश्राम हेतु हम जोगेश्वर धाम पहुँचे।
मार्ग में अल्मोड़ा का रात्रिकालीन दृश्य देखने को मिला –
दूर से टिमटिमाती रोशनी से सजे घरों की घाटी जैसे सितारों की कोई नगरी उतर आई हो।

यह था यात्रा का पहला दिवस

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पहली अनुभूति, पहली सीढ़ी।
और अभी शेष थी अनेक अनुभवों की श्रृंखला…

यात्रा संस्मरण भाग 2 -In the Country of Nefertiti : दीवारों पर ममीज़ बनाने की प्रक्रिया चित्रों में अंकित थी

Memoirs: खो गया मेरे गाँव का पनघट