
नजरिया: आशीर्वाद आटा-अन्न को अन्नपूर्णा माँ के रूप पूजा जाता हैउसका विज्ञापन शौचालय से जुड़ा
सपना उपाध्याय
आज का समय विज्ञापनों का समय है सुई से लेकर कार तक बेचने के लिये विज्ञापन का सहारा लिया जाता है। विज्ञापनों का प्रभाव इतना अधिक होता है की घटिया से घटिया चीज भी शानदार विज्ञापन द्वारा बिक जाती है नहीं तो अच्छी वस्तु भी कमजोर विज्ञापन के कारण बिक नहीं पाती।वर्तमान समय दिखावे का समय है ।आधुनिकता के अंधाधुकरण ने हम सब को अंधा कर दिया है ।समझ नहीं आता कि ये विज्ञापन वाले अपना समान बेचने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है उन्हें हमारी संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है और हम भी मूक बधिरों कि तरह सब चुपचाप देख और सुन लेते है या तो हम विज्ञापन के समय में उन्हें बिना देखे अपना दूसरा काम निपटा लेते है किंतु एक जागरूक भारतीय होने के नाते मुझे कई बार सब नहीं किंतु कुछ विज्ञापन बहुत खलते है और मन आक्रोश से भर जाता है ।पुरुषों द्वारा उपयोग में ली जाने वाली कोई भी वस्तु के विज्ञापन में किसी स्त्री और भी अर्धनग्न की क्या आवश्यकता है ?गोरा करने की क्रीम हमारी उन तमाम भारतीय कन्याओं को आत्मगलानी से भर देती है जिनका रंग श्यामवर्ण है अरे इन्हें कौन समझाए कि इंसान कि परख उसके गुणों से होती है रंग से नहीं ।विज्ञापनो का उपयोग बुरी बात बात नहीं है किंतु आप उसे कैसे प्रस्तुत कर रहे है यह बहुत मायने रखता है ।आप मेरे विचारों से कहा तक सहमत है पता नहीं किंतु
आज मैं आप सब से बात करूँगी एक विज्ञापन की जिसको देखकर मेरी सहनशक्ति जवाब दे गई और वो विज्ञापन है
एक चिंतित मां हर बार जब उसका बेटा शौचालय से बाहर निकलता है तो पूछती है ‘हुआ क्या?’
आईटीसी के आटा ब्रांड आशीर्वाद आटा ने अपने ‘मल्टीग्रेन्स’ वैरिएंट के लिए ‘हैप्पी टमी फॉर ए हैप्पी यू’ विज्ञापन अभियान जारी किया है। यह अभियान मल्टीग्रेन्स के ‘हाई इन फाइबर’ प्रस्ताव पर आधारित है – कि यह पाचन में सहायता करता है और आंत के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। अभियान में दिन-प्रतिदिन की आंत संबंधी समस्याओं पर एक हल्का-फुल्का वर्णन भी किया गया है।
“आशीर्वाद आटा “ का जिसमें एक छोटे बच्चे से उसके अभिभावक बार बार शौचालय से आने पर पूछते हैं कि आई या नहीं और बच्चा बार बार मना कर देता है क्यों की उसके माँ पिता उसे फाइबर से भरपूर भोजन नहीं दे रहे है फिर वो आशीर्वाद आटा ( जो मैदे जैसा है ) से बनी रोटी खाता है और उसका पेट एकदम साफ़ हो जाता है । मैं आप सब से पूछना चाहूँगी की जिस देश में अन्न को अन्नपूर्णा माँ के रूप पूजा जाता है उसी देश में उस अन्न को किस सह संबंध के रूप में दिखाया जा रहा है रेशेदार आटे को ( जो मैदे जैसा बारीक है ) किसी और तरह से भी तो परिभाषित किया जा सकता था ।
अनेक खाद्य पदार्थ जैसे फल सब्ज़ीया और अन्य वस्तुओं में भी भरपूर फाइबर होता है ।पता नहीं ये विज्ञापन हमारे समाज को क्या संदेश देना चाहते है ।
जरा सोचिए और जागरूक होईये।




