
Travel Diary-2 : आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा…
महेश बंसल, इंदौर

द्वितीय दिवस – जागेश्वर धाम से पिथौरागढ़ तक – श्रद्धा, सौहार्द और सौंदर्य की त्रिवेणी
बुराँस कोट – अंधेरे में उतरता रोमांच
रात्रि का घना अंधकार, उबड़-खाबड़ रास्ते, जंगल की नीरवता और मोबाइल नेटवर्क का न मिलना – यह सब कुछ मिलकर बुराँस कोट पहुँचते-पहुँचते हमें एक रहस्यमय वातावरण में पहुँचा चुका था।
पहाड़ों की रात में बुक किया गया होम स्टे ढूँढना किसी रोमांच से कम नहीं था। हमारी सात कमरों की आवश्यकता दो अलग-अलग होम स्टे में पूरी हो सकी।
एकता की मिसाल – तीन भाइयों का सामंजस्य
तब ज्ञात हुआ कि यह तीन भाइयों का संयुक्त उपक्रम है – तीनों अपने-अपने होम स्टे संचालित करते हैं और आरक्षित बुकिंग आपसी सामंजस्य से बाँट लेते हैं।
भिन्न स्थान, एक भावना – पारिवारिक एकता।
यह अनुभव हमें उत्तराखंड के पर्वतीय समाज के आपसी सौहार्द, सहजीवन और सरलता की जीवंत मिसाल लगा।
Travel Diary : आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा…

बुराँस कोट की सुबह – जैसे स्वर्ग उतर आया हो

सवेरा हुआ तो…
प्रकृति ने हमारे मन की सारी आशंकाएँ धो डालीं।
बुराँस कोट की सुबह – जैसे हर पत्ती, हर फूल, हर पक्षी, हर किरण हमारे स्वागत में मुस्कुरा रही हो।
घना जंगल, पंछियों की चहचहाहट, और दूर-दूर तक फैली घाटियाँ – मानो स्वयं स्वर्ग के द्वार खुल गए हों।
होम स्टे भी बहुतायत में बने थे।

वृद्ध जागेश्वर और जागेश्वर धाम – त्रिकाल की गूँज
हमने दर्शन किए पास ही स्थित वृद्ध जागेश्वर मंदिर के।
फिर पहुँचे – ज्योतिर्लिंग जागेश्वर धाम,
जहाँ आस्था, इतिहास और प्रकृति एक त्रिवेणी के समान बहती हैं। सन् 2023 में आदि कैलाश यात्रा व पार्वती कुंड दर्शन के पश्चात प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जागेश्वर धाम दर्शन हेतु आएं थे, उनकी उस यात्रा के दृश्य यहां आकर जीवंत हो गये।
उत्तराखंड के इस प्राचीन शिव मंदिर समूह की मान्यता है कि इनका संबंध महाभारत काल से है।
यहाँ हर पत्थर, हर शिला, जैसे सहस्र वर्षों की गाथा कहती है।
प्रकृति की प्रतीकात्मक रचना – वृक्षों में शिव-पार्वती
मंदिर परिसर में दो वृक्ष विशेष रूप से ध्यान खींचते हैं –
एक की शाखा में स्वाभाविक रूप से उभरी गणेश जी की आकृति,
और दूसरा – जमीन से 10–15 फीट तक दो वृक्ष जैसे एक ही तने में चिपके हों, ऊपर जाकर विभक्त हो जाते हैं – मानो शिव-पार्वती का प्रतीक स्वयं प्रकृति ने रच दिया हो।
फूलों में शिव – धतूरा और हाइड्रेंजिया की उपस्थिति
यहाँ उत्तराखंड की विशिष्टता भी सामने आई –
पूजा की थालियों में हमें धतूरा और हाइड्रेंजिया के फूल अनिवार्य रूप से दिखाई दिए।
यहाँ Brugmansia (Datura Golden / Angel’s Trumpet) तथा Hydrangea के पौधे बाग-बग़ीचों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।
इन फूलों की उपस्थिति इस भूमि को शिवमय बना देती है।

श्री गुरबा माता मंदिर – राह का श्रद्धा पड़ाव
जागेश्वर से आगे बढ़े पिथौरागढ़ की ओर।
रास्ते में श्रद्धा का एक और सुंदर पड़ाव था –
श्री गुरबा माता मंदिर, जहाँ हर गुजरता वाहन रुकता है।
यहाँ की लोक-आस्था देखकर मुझे ए.बी. रोड पर स्थित भैरव घाट मंदिर की याद हो आई –
जहाँ यात्रा और श्रद्धा का यह सहज संगम हम रोज़ देखते हैं।

मोस्टमानु मंदिर – घाटी का चित्रमय अवलोकन
पिथौरागढ़ पहुँचने से पूर्व दर्शन किए — मोस्टमानु मंदिर के।
यहाँ से पूरे शहर और घाटी का दृश्य ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी चित्रकार की कल्पना साकार हो गई हो।
पास ही एक विशाल झूला बच्चों ही नहीं, बड़ों को भी अपनी ओर खींचता है –
मानव और प्रकृति के मध्य यह सजीव संवाद यात्रा की थकान हर लेता है।
इस प्रकार यात्रा के दूसरे दिन का समापन हुआ –
श्रद्धा, सहजीवन और सौंदर्य से परिपूर्ण अनुभूतियों के साथ।
(क्रमशः)
Book Review-“Urvashi-Pururava”: प्रेम की सनातन चेतना को आधुनिक दृष्टि देती “उर्वशी-पुरुरवा”





