
Guru Purnima Special: गुरु, माता-पिता या भगवान: सबसे बड़ा मार्गदर्शक कौन..? पढ़िए दिल छू लेने वाला सच
“गुरु पूर्णिमा” पर “डॉ बिट्टो जोशी” की खास प्रस्तुति
गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में आस्था, श्रद्धा और गुरु-शिष्य परंपरा का सबसे बड़ा उत्सव है। जीवन में गुरु का होना बेहद जरूरी है- गुरु ही हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं, सही-गलत का फर्क सिखाते हैं। लेकिन हर आस्था के साथ विवेक भी जरूरी है, और सबसे पहले अपने प्रथम गुरु- मां-बाप को कभी नहीं भूलना चाहिए।
पर्व आते ही देश में ‘गुरु-भक्ति’ का डिजिटल मेला सज जाता है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप- हर कोना गुरु के चरणों में समर्पण की बाढ़ से तर-बतर हो जाता है। हर कोई अपना ‘गुरु’ खोज रहा है- कोई बाबा के चरणों में, कोई आश्रम के आंगन में, तो कोई किसी मोटिवेशनल स्पीकर के यूट्यूब चैनल पर। बड़े-बड़े श्लोक, भारी-भरकम कोट्स, और फोटोशॉप्ड तस्वीरों की होड़ में घर के कोने में बैठे मां-बाप चुपचाप सोचते हैं- ‘क्या आज बेटा-बहू हमें भी याद करेंगे?’
आश्रमों में फूलों की थाली लिए कतारबद्ध श्रद्धालु, मंदिरों में घंटों तक माथा टेकते भक्त, और सोशल मीडिया पर ‘गुरुर्ब्रह्मा’ लिखते लोग- सब व्यस्त हैं। घर की रसोई में मां की दवाई खत्म हो गई, ये किसी को याद नहीं। पिता की आंखों में इंतजार का धुंधलका गहराता जाता है, लेकिन बेटा तो आज गुरु पूर्णिमा की सेल्फी में व्यस्त है। आखिर, मंदिर में फोटो अच्छी आती है, और इंस्टाग्राम पर लाइक्स भी खूब मिलते हैं!

गुरु पूर्णिमा का असली मतलब क्या है…? क्या यही कि बाहर के गुरु को फूल चढ़ाओ और घर के गुरु को भूल जाओ…? सच तो यह है कि जिन मां-बाप ने उंगली पकड़कर चलना सिखाया, पहली बार ‘बोलो बेटा’ कहा, वही हमारे पहले गुरु हैं। लेकिन आजकल तो उनकी सेवा करना ‘आउटडेटेड’ हो गया है- अब तो बस दिखावे की पूजा चलती है।
अब तो हाल ये है कि कुछ लोग गुरु पूर्णिमा पर किसी वस्तु को ही गुरु मानकर उसकी पूजा करने लगते हैं.. इतना समर्पण कि घरवालों का नाम-ओ-निशान तक भूल जाते हैं। परिवार, मां-बाप, भाई-बहन सब पीछे छूट जाते हैं, लेकिन उस वस्तु के आगे सिर झुकाना नहीं भूलते। ऐसे लोगों से समर्पण, सेवा या ईमानदारी की उम्मीद करना वैसे ही है जैसे सूखे कुएं से पानी निकालना..!
गुरु पूर्णिमा पर असली परीक्षा घर के उन गुरुओं की सेवा में है, जिन्होंने हमें इंसान बनाया। जो अपने जन्मदाता गुरु को भूल जाता है, उसकी सारी गुरु-भक्ति बस एक दिखावा है- एक सोशल मीडिया ट्रेंड, जो हर साल रीफ्रेश हो जाता है।
फिर भी, आस्था की ताकत को नकारा नहीं जा सकता- गुरु का स्थान सदा ऊंचा है। बस, इस पर्व पर इतना जरूर याद रहे कि असली गुरु वही है, जिसने हमें जीवन की राह दिखाई। मंदिर-मठ के फूल-फल से पहले घर के मां-बाप को एक मुस्कान, एक गले लगाना और थोड़ा समय दीजिए, यही असली गुरु दक्षिणा है। बाकी सब तो बस ‘फिल्टर’ है, जो अगले साल फिर बदल जाएगा।

मुख्य बिंदु संक्षेप में:
– गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा और आस्था का बड़ा पर्व है।
– असली गुरु वही, जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए- सबसे पहले हमारे माता-पिता।
– आजकल सोशल मीडिया पर गुरु-भक्ति का दिखावा ज्यादा है, असली सेवा घर के गुरुओं की भूल जाते हैं।
– लोग बाहर के गुरु, बाबा या वस्तु को पूजते हैं, लेकिन घर के मां-बाप को नजरअंदाज कर देते हैं।
– असली गुरु दक्षिणा है- माता-पिता को समय, प्यार और सम्मान देना।
– सोशल मीडिया की पूजा दिखावा है, असली श्रद्धा घर में है।
– आस्था जरूरी है, लेकिन विवेक और परिवार की अहमियत भी उतनी ही जरूरी।





