
96वीं जयंती पर राजनीति के संत का स्मरण…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
राजनीति के संत, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी का उनकी 96 वीं जयंती पर मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसरोवर सभागार में स्मरण किया गया। जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक और पहली पीढ़ी के सर्वमान्य ऐसे नेता जिन्हें उनकी ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा और पार्टी के प्रति समर्पण के चलते ‘राजनीति के संत’ के नाम से जाना जाता है। 1998 में वह राजगढ़ से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे तब दिग्विजय सिंह ने उन्हें हमेशा गुरु के नाम से संबोधित भी किया और उनका आशीर्वाद लेना भी कभी नहीं भूले। सत्ता पक्ष और विपक्ष में उन्हें बराबर सम्मान मिला। आदर्श राजनेता की छवि के रूप में कैलाश जोशी को देखा जाता है। उनके पुत्र दीपक जोशी मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं। राजनीति के संत के स्मरण को उनके पुत्र दीपक जोशी द्वारा सत्ता समीकरण को साधने के नजरिए से भी देखा जा रहा है। राजनीति में तो यह सब चलता ही है। पर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, प्रदेश प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह और अन्य गरिमामयी उपस्थिति में हजारों समर्थकों ने राजनीति के संत को बखूबी याद किया।
विदेश प्रवास पर गए प्रदेश के मुखिया डॉक्टर मोहन यादव ने ट्वीट कर लिखा कि ‘मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, परम श्रद्धेय कैलाश जोशी जी की 96वीं जयंती पर सादर नमन-वंदन करता हूं।सादगी, कर्मठता और संकल्प की त्रिवेणी आपका व्यक्तित्व सदैव लोककल्याण और कमजोर वर्ग के उत्थान की प्रेरणा देता रहेगा। जनसंघ और भाजपा के माध्यम से आपने असंख्य युवाओं को मातृभूमि की सेवा के संस्कार प्रदान किए। हम सभी उसे आत्मसात करने के लिए संकल्पित हैं।’
‘वन मैन अपोजीशन’-
मध्य प्रदेश में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह विपक्ष में इतने ज्यादा सक्रिय हैं कि उनके सामने युवा नेतृत्व जीतू पटवारी और उमंग सिंघार भी फीके पड़ गए हैं। 78 वर्षीय दिग्विजय सिंह बिना पल गंवाए वहां पहुंच जाते हैं जहां उन्हें विपक्ष की आवाज बनकर विरोध करना जरूरी लगता है। चाहे अशोकनगर की बात हो या फिर हरदा की। पुत्र जयवर्धन सिंह को भी हर समय साथ रखकर शायद वह यह सीख दे रहे हैं कि विपक्ष की भूमिका का सशक्त निर्वहन कैसे करना चाहिए या फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए कितना श्रम करना पड़ता है। अब चाहे इसे गुटों में बंटी कांग्रेस मानो या फिर कुछ और लेकिन यह बात सही है कि कमलनाथ और पार्टी के कुछ दूसरे स्तंभ दिग्विजय के आसपास नजर नहीं आ रहे हैं। हालांकि जीतू पटवारी, उमंग सिंघार को दिग्विजय सिंह का मार्गदर्शन पूरी तरह से मिल रहा है। समग्रता से यही माना जा सकता है कि मध्य प्रदेश में इन दिनों दिग्विजय सिंह ‘वन मैन अपोजीशन’ की तरह फील्ड में सक्रिय हैं, बस राज्यसभा सदस्य होने के चलते वह भौतिक रूप से विधानसभा में नजर नहीं आ सकते। मन ना माने तो दर्शक दीर्घा में अवश्य स्थान ग्रहण कर सकते हैं।
‘तोमर का असर’-
समिति प्रणाली की समीक्षा हेतु गठित पीठासीन अधिकारियों की समिति की पहली बैठक विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में भोपाल विधानसभा में संपन्न हुई। यह बैठक सालों से टल रही थी और शायद नरेंद्र सिंह तोमर का आग्रह न होता तो फिर टल जाती। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के विधानसभा अध्यक्षों ने पहली बैठक में यही भाव व्यक्त किए कि समितियों का असर बंधनकारी बनाया जाना चाहिए वरना कार्यपालिका स्वच्छंद हो रही हैं। सवालों के जवाब समय पर नहीं आते, अफसरों की मनमानी चलती है, समितियों के फैसले बंधनकारी नहीं हैं जैसे तमाम सुझाव और शिकायतें पीठासीन अधिकारियों की जुबां पर आ गईं। समितियों में विचार, नवाचार और उनके नए आकार को लेकर फिलहाल यह प्रारंभिक चर्चा थी अब बैठक का दूसरा दौर राजस्थान में होगा। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव विदेश यात्रा पर हैं वरना वह भी विधानसभा पहुंचकर पीठासीन अधिकारियों का स्वागत करते, पर उनकी अनुपस्थिति में राज्यपाल मंगू भाई पटेल विधानसभा पहुंचे और पीठासीन अधिकारियों की बैठक को और अधिक गरिमामय बना दिया। इसमें कोई दोराह नहीं है कि जहां नरेंद्र सिंह तोमर हों वहां उनका असर दिखना स्वाभाविक है। अपने राजनीतिक जीवन में जहां-जहां रहे वहां उनका अलग ही असर दिखा और फिलहाल विधानसभा अध्यक्ष के रूप में भी ‘तोमर का असर’ अलग ही नजर आता है।
‘मोहन का रिटर्न गिफ्ट मैनेजमेंट’-
मध्य प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव इन दोनों निवेशकों को लुभाने के लिए दुबई और स्पेन की यात्रा पर हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने दुबई में निवेशकों को आश्वस्त किया है कि
‘मध्यप्रदेश आपको बुला रहा है, बेहिचक निवेश करें। और हम भी आपको रिटर्न गिफ्ट देने में कोई कमी नहीं रखेंगे।’ दुबई में प्रवासी भारतीयों के फ्रैंड्स ऑफ एमपी इंटरनेशनल समूह से उन्होंने आत्मीय संवाद किया।कहा कि हमने 18 पारदर्शी नीतियां लागू की हैं, हम पर भरोसा करें, हमारी नीतियों का भरपूर लाभ उठाएं। दुबई में भारतीय निवेशकों पर गर्व करते हुए मोहन यादव ने कहा कि हीरा तो पन्ना में मिलता है, लेकिन मप्र के डायमंड तो दुबई में भी मिल रहे हैं। उन्होंने निवेशकों से कहा कि यदि आप मध्यप्रदेश के लोगों को रोजगार देने वाला कोई बड़ा उद्योग लगाते हैं तो हमारी सरकार अगले 10 साल तक प्रति लेबर 5 हजार रुपए की सहायता राशि भी मुहैया कराएगी। यदि मेडिकल एजुकेशन या मेडिकल कॉलेज जैसा बड़ा कोई निवेश करना चाहते हैं तो, हमारी सरकार आपको मात्र एक रूपए में जमीन देगी। उन्होंने कहा कि सरकार हर कदम पर निवेशकों के साथ है। मध्य प्रदेश को अपना दूसरा घर बनाईये। यहां निवेश जरूर कीजिए। तो उम्मीद है कि मोहन का यह ‘रिटर्न गिफ्ट मैनेजमेंट’, प्रदेश में इन्वेस्टमेंट का प्रभावी हथियार बन कर रहेगा। दुबई यात्रा के पहले दिन हजार करोड़ निवेश के प्रस्ताव मिल चुके हैं तो दूसरे दिन टेक्सटाइल उद्योग में अच्छे निवेश की उम्मीदें प्रभावी हैं।





