12 साल के बेटे की दर्दभरी कहानी सुन सुप्रीम कोर्ट ने पलटा खुद का फैसला, मां की गोद में लौटा मासूम- केरल केस में न्याय की नई मिसाल

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12 साल के बेटे की दर्दभरी कहानी सुन सुप्रीम कोर्ट ने पलटा खुद का फैसला, मां की गोद में लौटा मासूम- केरल केस में न्याय की नई मिसाल

 

केरल के एक 12 वर्षीय बच्चे के कस्टडी विवाद ने सुप्रीम कोर्ट को भी झकझोर दिया। यह मामला वर्ष 2015 में माता-पिता के तलाक के बाद शुरू हुआ। शुरुआत में बच्चे की कस्टडी मां को मिली, लेकिन अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने पुराने आदेश को पलटते हुए पिता को कस्टडी दे दी थी। बच्चे के पिता के पास जाते ही उसकी मानसिक और भावनात्मक हालत बिगड़ गई- मनोविश्लेषकों ने चार अलग-अलग रिपोर्ट्स में बच्चे में गंभीर डिप्रेशन, एंग्जायटी और ‘सेपरेशन एंग्जायटी’ जैसी तकलीफें पाई। वह इलाज के लिए वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुआ।

 

इस सबका संज्ञान लेते हुए बच्चे की मां ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। 15 जुलाई 2025 को जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने “बेस्ट इंटरेस्ट ऑफ द चाइल्ड” को सर्वोच्च मानते हुए अपना 10 महीने पुराना आदेश पलट दिया और बच्चे की कस्टडी मां को सौंप दी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उनके पिछले आदेश से बच्चे के स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिति पर बुरा असर पड़ा है और कोर्ट का दायित्व है कि वह बच्चे के सुनहरे भविष्य और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे। अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि, भले ही मां ने दूसरी शादी कर ली हो- मासूम की भलाई मां की गोद में ही है।

फैसले में कोर्ट ने एक उदाहरण कायम किया कि बच्चों की आवाज़ और मनोदशा को न्याय में सबसे ऊपर रखना चाहिए।

यह ऐतिहासिक आदेश देशभर के कस्टडी विवादों के लिए संवेदनशीलता और इंसानियत की मिसाल है।