
प्रतिष्ठाआयोजन : पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल का अभिनव आयोजन “कथा-विश्लेष्ण “
पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा कहानियों पर केन्द्रित कथा – विश्लेष्ण कार्यक्रम काअभिनव आयोजन गूगल मिट पर आयोजित किया गया. इस आयोजन में दो प्रतिष्ठित कथाकारों देवास की मीनाक्षी दुबे और भोपाल की शीला मिश्रा ने कहानी पाठ किया। एक कहानी पर दो समीक्षकों ने कहानी का विश्लेष्ण करते हुए अपना वक्तव्य दिया। इस अवसर पर कथाकार मीनाक्षी दुबे की कहानी पर साहित्यकार श्री रमेशचंद्र शर्मा एवं लेखिका अपर्णा खरे ने समीक्षा की ,एवं कथाकार शीला मिश्रा की कहानी पर कहानीकार ,गुजराती कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ. नीहार गीते एवं लेखिका एक्रोपॉलिस महाविद्यालय मैनेजमेंट विभाग की प्राध्यापक डॉ. अनिता नाईक ने समीक्षा की।कार्यक्रम की रूपरेखा पर संस्था की अध्यक्ष स्वाति तिवारी ने प्रकाश डाला। यह कार्यक्रम उन्होंने अपने पिता श्री दीनानाथ व्यास की स्मृति में शुरू किया हैं ,पंडित दीनानाथ व्यास विश्व साहित्य की कहानियों को रोचक और अद्भुत तरीके से कथाकथन में सुनाया करते थे ,पंडित दीनानाथ व्यास कहानियों को बिना किसी पुस्तक का सहारा लिए शब्दशः सुनाते रहे हैं। इसीलिए कथापाठऔर कथा विश्लेष्ण का यह आयोजन उन्हें समर्पित किया गया है।
कथा पाठ-

“कुछ देर बाद उन्हें फिर खाँसी का दौरा पड़ा, पूरा शरीर पसीने से तर, चेहरा लाल और आँखें बाहर निकलती सी जान पड़ रही थी। गले की नसें तन गई थी खाँसी के तीव्र झटकों से साँस उखड़ने लगी। उसने रोटा हीलर में दवाई का एम्पुल डालकर गहरी साँस लेने और मुँह से दवाई खींचने को कहा। बहुत देर बाद उन्हें थोडा आराम तो मिला लेकिन वे लेटने की कोशिश करते ही खाँस पड़ती। सरला ने उन्हें दवाई पिलाई, चूसने वाली गोली मुँह में डाली, पीठ के पीछे दो तकिए लगाकर बैठा दिया। उनका चेहरा कपास की तरह सफेद और सूखा दिखाई दे रहा था।सरला को लगा कि माँ जी अब कुछ ही दिनों की मेहमान हैं.. उनका ब्रोंकिल अस्थमा अस्थमा तकलीफ़-देह होता जा रहा है। आजकल रोटा हीलर से भी अधिक फायदा नहीं हो पाता।” – मीनाक्षी दुबे की कहानी खांसी का एक अंश

“राहुल को ऐसा लगा मानो गर्म सीसा उसके कानों में उड़ेला गया हो। वह अपमान के भाव से तिलमिला उठा। श्वेता की सोच पर उसे जहाँ गुस्सा आ रहा था वहीं आश्चर्य भी हो रहा था। भावनात्मक रुप से ठगे जाने के ख्याल से वह अत्यंत विचलित हो उठा।धीरे-धीरे उसे स्वयँ पर भी क्रोध आने लगा परन्तु मुट्ठियाँ भींचे किसी तरह मन को काबू में रखने की कोशिश कर रहा था। अनायास माँ की मुस्कुराती छवि उसकी आँखों के समक्ष उपस्थित हो गई।स्वयँ के द्वारा उनके प्रति की गई उपेक्षा से वह उद्वेलित हो उठा तथा पलंग से उठकर चहलकदमी करने लगा और कुछ ही पलों में हिरण की तरह छलांग लगाता बचपन उसकी स्मृति में तैरने लगा …….कितना प्यार करती थी माँ उसे… ,दीदी व भैया से भी ज्यादा, छोटा जो था।”—शीला मिश्रा की कहानी स्मृति विस्मृति का एक अंश
मीनाक्षी दुबे की कहानी पर बोलते हुए समीक्षक अपर्णा खरे ने कहा कि एक आम भारतीय परिवार की कहानी खाँसी बहुत ही सरल और सहज भाषा में कही गई है जो आपको अंत तक बाँध कर रखती है| यह आधुनिक भारत को ध्यान में रखकर लिखी गई है, जैसे सरला का रात पाली में नौकरी करना, अपनी बेटी को महाविद्यालय में पढ़ाना और रुपये उसकी स्कूटी के लिए जोड़ना न कि शादी के लिए|
कहानी की सरसता और रोचकता को बनाए रखने के लिए सुबह कार्तिक गीत गाती महिलाओं का वर्णन बहुत ही सुंदर ढंग से किया गया है जो अपने सारे दुखों को भुलाकर थोड़ा समय अपने लिए निकाल लेती हैं
मीनाक्षी की कहानी पर साहित्यकार रमेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि कहानी “खांसी” मानवीय संवेदना और जीवन मूल्यों का जीवंत दस्तावेज है ।कहानी का समापन सच में चमत्कृत करने वाला है। चरमोत्कर्ष पर समापन सच में पाठकों को भी चमत्कृत कर देता है ।पाठकों की संवेदनाओं को कुरेदती मीनाक्षी दुबे की यह कहानी आम महिलाओं की व्यथा कथा का जीवंत का प्रमाण है। तमाम आर्थिक बदहाली और विपरीत परिस्थितियों का सामना करती सरला बेटी को कॉलेज में पढ़ाने के लिए रात पाली में काम करती है। बेटी द्वारा किया गया पिता का प्रतिकार समाधान भी प्रस्तुत कर देता है । यहां महिला शिक्षा को प्रतिपादित किया है। कथानक यथार्थ से परिपूर्ण है। आर्थिक विपन्न परिवारों में महिलाओं की दुर्दशा का रूपांकन करने में कहानीकार कामयाब है ।

शीला मिश्रा की कहानी स्मृति विस्मृति पर समीक्षक ,प्रोफेसर डॉ. अनीता नाईक ने कहा कि –
गहरी संवेदना को व्यक्त करती हुई एक मार्मिक कहानी है ,जो न केवल पारिवारिक संबंधों की कठिन स्थिति को उजागर करती है,बल्कि मां-बेटे के संबंध के साथ-साथ स्मृति,विस्मृति और पछतावे जैसे मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी अत्यंत सशक्त रूप से प्रस्तुत करती है।
कहानी की शुरुआत एक खुशहाल जीवन जी रहे परिवार से हुई है। पात्र राहुल की पत्नी श्वेता की बचपन की सहेलियाँ उसके घर आरही हैं उनसे मिलने की उत्सुकता उसके चेहरे की खुशी देखते ही नहीं बन रही है, परन्तु समय और परिस्थितियाँ कैसे आत्मीय संबंधों को कमज़ोर बना देती है । कहानी के माध्यम से स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है।
कहानी की भाषा सरल, मार्मिक और प्रभावशाली है। स्मृति और विस्मृति जैसे गूढ़ मनोवैज्ञानिक विषयों को संवेदनशील और सजीव चित्रण के साथ प्रस्तुत किया गया है।
कहानी की संरचना ऐसी है कि पाठक अंत तक भावनात्मक रूप से जुड़ा रहता है और अंत में करुणा और आत्मचिंतन के भाव से भर उठता है।
‘स्मृति-विस्मृति एक ऐसी कहानी है जो पाठक को भावनात्मक रूप से झकझोर देती है। यह केवल मां-बेटे के रिश्ते की कहानी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का आईना है जो समय के साथ अपने मूल संबंधों से दूर होता जा रहा है
इसी कहानी पर साहित्यकार ,पूर्व प्राचार्या नीहार गीते का कहना है कि -ये विषय स्त्री और स्त्री के बीच के अमानवीय सोच पर प्रश्न खड़े करता है। कहानी का कथ्य भावूकता लिए है और भाषा चमकदार नहीं पर इससे घर -घर मौजूद इस विषय की सम्प्रेश्नियता बनी रहती है। एक सीख देती यह कहानी कि रिश्तें जब तक हैं उनकी स्मृतियाँ जीवित बनी रहती है उन्हें भूलना नहीं चाहिए ,उन्हें विस्मृतियों के अन्धेरें में नहीं जाने देना चाहिए।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्य अनुरागी उपस्थित थे साहित्यकार अक्षरा साहित्यिक पत्रिका की पूर्व सम्पादक डॉ. सुनीता खत्री ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कहानी सुनना हमेशा सुखद लगता है ,यह कहानी और विश्लेष्ण का आयोजन कहानी लिखने की कलात्मकता सिखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्यशाला जैसा रहेगा। प्राध्यापक संगीता पाठक ने अपनी प्रतिक्रिया में दोनों कहानियों को स्त्री जीवन की और हमारे सामाजिक तानेबाने को चित्रित करती कहानियां बताया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ स्वाति तिवारी ने कहा हमारे जीवन में कहानियों का बहुत ही अधिक और गहरा महत्व है। कहानीयां सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है। बल्कि वह हमारे सोचने समझने विचार करने तथा महसूस करने के तरीको को भी प्रभावित करती है।हम जानते हैं कि कहानी सुनाना खुद को अभिव्यक्त करने का एक प्रभावी तरीका है, और हाल के शोध ने इसे समझाने में मदद की है। उदाहरण के लिए, महत्वपूर्ण और विविध तंत्रिका गतिविधि उत्पन्न करने के अलावा , कहानियाँ सुनने से मस्तिष्क ऑक्सीटोसिन का स्राव करता है ,जो हमारी संवेदना और कोमल भावनात्मक विकास के लिए जरुरी है। यही कारण है कि राजनीतिक भाषण, समाचार लेख, विज्ञापन, TED वार्ता, धर्मोपदेश और रात्रिभोज के बाद के संचार के विविध रूप अक्सर कहानी से शुरू होते हैं। कहानी सुनते हुए हुंकारे यानी आप सुन रहे हैं की स्वीकृति कहानी सुनानेवाले को कहानी की रोचकता बनाये रखने में उत्साहित करती है। कहानी साहित्य की वह विधा है जो सदियों से चल रही है और सदियों तक चलेगी भले ही उसके रूप बदलते रहे हों।

कार्यक्रम का सफल संचालन सुषमा व्यास राज निधि ने किया। इंदौर लेखिका संघ की अध्यक्ष विनीता तिवारी ,निहारिका सिंह ,रानी नारंग ,साहित्यकार नीना सिंह ,डॉ. सुमन चौरे ,नीलम सिंह ,उषा सक्सेना ,अनीता दुबे ,माधुरी व्यास। रूचि बागडदेव इत्यादि उपस्थित थे। आभार सुषमा व्यास ने व्यक्त किया।
कहानी संवाद: अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच का अभिनव आयोजन -‘दो कहानी- दो समीक्षक’




