Ujjain News: महाकालेश्वर में प्लास्टिक, गत्ते के साथ स्टील के बर्तनों में भोग तत्काल बंद हो – समाजसेवी सुधीर भाई गोयल

मंदिर प्रशासक एवं संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर को लिखा पत्र

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उज्जैन। पूरे विश्व में भक्तों की आस्था के केंद्र और प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में भक्तो के मन को अत्यधिक पीड़ा हो रही है क्योंकि भगवान श्री महाकाल को जिनके पास सेकडो किलो चांदी और स्वर्ण का भंडार है उनको भोग स्टील के पात्र, प्लास्टिक के डब्बो और कागज के डब्बे में लगाया जाता है, जिसे तत्काल प्रतिबंधित करना चाहिए। वैसे भी श्री महाकालेश्वर मंदिर में प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध है। मंदिर समिति द्वारा श्री महाकालेश्वर के नित्य दर्शन हेतु सोशल मीडिया और अन्य प्रचार माध्यमों के जरिए जो फोटो भेजा जा रहा है उसमें साफ दिख रहा है कि भोलेनाथ श्री महाकालेश्वर को किस तरह के पात्रों में प्रसाद लगाया जा रहा है, जिस तरह के पात्रों में प्रसाद चढ़ाया जा रहा है वह धर्म संगत ना होकर धर्म विरुद्ध है।

समाजसेवी और सेवा धाम आश्रम के प्रमुख सुधीर भाई ने इस संबंध में श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रशासक एवं संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर को एक पत्र लिखकर भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को लेकर नीति बनाने की मांग की है, नीति में किन पात्रों का उपयोग करना चाहिए इसे लेकर स्पष्ट निर्देश होना चाहिए, उन्होंने सुझाव दिया कि यदि सोना चांदी भंडार गृह के लिए है तो खाखरे के दोना पत्तल का उपयोग किया जाना चाहिए जो स्टील और प्लास्टिक और कागज से कहीं अधिक पवित्र है, प्लास्टिक और स्टील पूर्णतया वर्जित हो। यह तो प्रसाद प्रदान करने वाले दुकानदारों का प्रचार और भगवान का अनादर है। सुधीर भाई ने सम्पूर्ण प्रदेश के मंदिरों हेतु भी निति निर्धारण की मांग की है।

पत्र में यह भी लिखा…..

भगवान की पूजा हर घर मंदिर में की जाती है, भगवान की पूजा से मन को शांति मिलती है व घर पवित्र हो जाता है। पूजा में कई प्रकार के बर्तनों का भी उपयोग किया जाता है। ये बर्तन किस धातु के होने चाहिए और किस धातु के नहीं, इस संबंध में कई नियम बताए गए हैं। जिन धातुओं को पूजा से वर्जित किया गया है उनका उपयोग पूजन कर्म में नहीं करना चाहिए। अन्यथा धर्म- कर्म का पूर्ण पुण्य फल प्राप्त नहीं हो पाता है। शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग धातु अलग-अलग फल देती हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं।

वैज्ञानिक कारण
सोना, चांदी, पीतल के बर्तनों का उपयोग शुभ माना गया है। वहीं दूसरी ओर पूजन में स्टील, लोहा,प्लास्टिक और एल्युमिनियम धातु से बने बर्तन वर्जित किए गए हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं।

इन धातुओं के बने बर्तन का उपयोग होता है शुभः-
पूजा में शंख, सीपी, पत्थर और चांदी के बने पात्रों का उपयोग करना शुभ होता है, क्योंकि ये सभी धातुएं केवल पानी से ही शुद्ध हो जाती हैं। सोने को कभी जंग नहीं लगती और न ही ये धातु कभी खराब होती है। इसकी चमक हमेशा बनी रहती है। इसी प्रकार चांदी को भी पवित्र धातु माना गया है। सोना-चांदी आदि धातुएं मात्र जल अभिषेक से ही शुद्ध हो जाती हैं, पीतल के बने पात्रों का उपयोग भी कर सकते हैं। ये धातुएं भी पूजा में शुभ फलदायक होती हैं।

इस कारण इन धातुओं का उपयोग नहीं होता पूजा मेंः-
पूजा और धार्मिक कार्यों में लोहा, स्टील और एल्युमिनियम को अपवित्र धातु माना गया है। इन धातुओं की मूर्तियां भी पूजा के लिए श्रेष्ठ नहीं मानी गई हैं। लोहे में हवा, पानी से जंग लग जाता है। एल्युमिनियम से भी कालिख निकलती है। पूजा में कई बार मूर्तियों को हाथों से स्नान कराया जाता है, उस समय इन मूर्तियों को रगड़ा भी जाता है। ऐसे में लोहे और एल्युमिनियम से निकलने वाली जंग और कालिख का हमारी त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए लोहा, एल्युमिनियम,और प्लास्टिक को पूजा में वर्जित गया है।

स्टील मानव निर्मित धातु है, जबकि पूजा के लिए प्राकृतिक धातुएं ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। पूजा में वर्जित धातुओं का उपयोग करने से पूजा सफल नहीं हो पाती है। इसीलिए स्टील के बर्तन भी पूजा में उपयोग नहीं करना चाहिए। पूजा में सोने, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए। इन धातुओं को रगड़ना हमारी त्वचा के लिए लाभदायक रहता है।