EOW Big Action: सहारा समूह द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध गरीब निवेशकों के साथ ₹72.82 करोड़ की हेराफेरी, FIR दर्ज

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EOW Big Action: सहारा समूह द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध गरीब निवेशकों के साथ ₹72.82 करोड़ की हेराफेरी, FIR दर्ज

सहारा समूह की संपत्तियों के विक्रय में भारी अनियमितताएं उजागर, 310 एकड़ भूमि के विक्रय में कम से कम ₹72.82 करोड़ का गबन पाया गया।

EOW Big Action: सहारा समूह द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध गरीब निवेशकों के साथ ₹72.82 करोड़ की हेराफेरी की गई है। इस संबंध में मध्यप्रदेश के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) द्वारा FIR दर्ज विवेचना प्रारंभ की गई है।
मध्यप्रदेश के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) द्वारा सहारा समूह की विभिन्न सहायक कंपनियों के विरुद्ध प्रारंभिक जांच के आधार पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, न्यायालय आदेशों की अवहेलना और निवेशकों की राशि के दुरुपयोग के आरोपों में FIR दर्ज की गई है।

EOW Big Action: आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ,द्वारा प्रारंभिक जांच क्रमांक 01/25 दिनांक 22.01.2025 के अंतर्गत सहारा समूह द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के उल्लंघन, निवेशकों के धन का दुरुपयोग एवं सुनियोजित आर्थिक कदाचार के संबंध में प्राप्त शिकायतों की जांच की गई। जांच के दौरान प्राप्त साक्ष्यों, दस्तावेजों एवं वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के उपरांत यह प्रतिपादित हुआ कि सहारा समूह के पदाधिकारियों द्वारा न्यायालयीन निर्देशों का जानबूझकर उल्लंघन करते हुए संपत्ति विक्रय से प्राप्त ₹72.82 करोड़ की राशि को SEBI-Sahara Refund Account में जमा न कर अन्य खातों में स्थानांतरित किया गया तथा निजी स्वार्थ हेतु उपयोग किया गया। यह पैसा उन लाखों छोटे-छोटे निवेशकों का था, जैसे मजदूर, किसान, और छोटे दुकानदार, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई सहारा में जमा की थी। इन गम्भीर तथ्यों के आलोक में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) एवं 120-बी (आपराधिक साजिश) के अंतर्गत विधिसम्मत अपराध पाया गया, जिसके परिप्रेक्ष्य में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कर वैधानिक कार्यवाही प्रारंभ की गई है।जाँच में यह खुलासा हुआ है कि सहारा के बड़े अधिकारियों ने मिलकर एक साज़िश रची और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए करीब ₹72.82 करोड़ की हेराफेरी की। इस मामले में सहारा प्रमुख के बेटे श्री सीमांतो रॉय समेत कंपनी के बड़े अधिकारी श्री ओ.पी. श्रीवास्तव, श्री जे.बी. रॉय को मुख्य आरोपी बनाया गया है।

EOW Big Action: आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने यह जाँच तीन अलग-अलग शिकायतकर्ता श्री आशुतोष दीक्षित (मनु), श्री दीपेन्द्र सिंह ठाकुर एवं श्री हिमांशु पवैया के शिकायत पत्र के आधार पर शुरू की, जिन्हें एक ही मामले (प्रारंभिक जाँच क्रमांक 01/2025) में शामिल कर जाँच की गई।

जाँच की पृष्ठभूमि माननीय उच्चतम न्यायालय के दो प्रमुख आदेशों पर आधारित है, जो सहारा समूह को निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए अपनी संपत्तियों को बेचने के संबंध में दिए गए थे:

सहारा समूह द्वारा आम जनता से निवेश के नाम पर बड़ी मात्रा में राशि एकत्रित की गई थी। इस राशि को लौटाने में हो रही देरी और अनियमितताओं के कारण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने वर्ष 2012 में हस्तक्षेप करते हुए आदेश जारी किया कि सहारा समूह सभी निवेशकों की राशि ब्याज सहित लौटाए। इसी विषय पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 05 दिसंबर 2012 को आदेश पारित कर सहारा को निर्देशित किया कि वह अपनी अचल संपत्तियाँ विक्रय करके प्राप्त राशि सीधे SEBI-Sahara Refund Account में जमा कराए।

बाद में दिनांक 04 जून 2014 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह और स्पष्ट किया कि इन संपत्तियों को सर्कल दर से कम मूल्य पर नहीं बेचा जा सकता और यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि खरीदार सहारा समूह से सम्बंधित न हो। इस आदेश के बाद भी सहारा समूह द्वारा अचल संपत्तियाँ उचित प्रक्रिया के बिना बेची जाती रहीं। वर्ष 2016 में कोर्ट ने पुनः आदेश पारित किया कि संपत्तियाँ संबंधित क्षेत्र की सर्कल दर की 90% से कम कीमत पर न बेची जाएं और विक्रय से प्राप्त पूरी राशि (टीडीएस व कर घटाकर) सीधे SEBI रिफंड खाते में ही जमा हो।

जांच में यह साफ़ तौर पर सामने आया कि सहारा समूह ने जिन अचल संपत्तियों को बेचा, उन विक्रय से प्राप्त करोड़ों रुपये की राशि को SEBI-Sahara Refund Account में जमा नहीं किया, जैसा कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अनिवार्य किया गया था। इसके बजाय, यह राशि सहारा समूह की अलग-अलग सहायक कंपनियों के खातों में जानबूझकर ट्रांसफर कर दी गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि निवेशकों की राशि को वापस करने की कोई मंशा नहीं थी।

इसके अतिरिक्त, विक्रय में उपयोग किए गए अधिकृत प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी फर्जी तरीके से की गई थी — जिनके नाम से विक्रय विलेखों पर हस्ताक्षर कर संपत्तियाँ बेची गईं। जांच में यह भी पाया गया कि ये अधिकृत प्रतिनिधि वास्तव में सहारा समूह के कर्मचारी ही थे, जिनकी नियुक्ति केवल दिखावे के लिए की गई थी, और किसी बोर्ड मीटिंग में यह निर्णय नहीं लिया गया था।

जाँच में पाया गया कि भोपाल और सागर में सहारा समूह ने उच्चतम न्यायालय के आदेशों का सीधा उल्लंघन किया। यहाँ बिक्री से प्राप्त पूरी की पूरी रकम को SEBI-Sahara खाते में जमा ही नहीं कराया गया:

भोपाल: सहारा समूह की मक्सी ग्राम की भूमि के संबंध में जांच में यह तथ्य उजागर हुआ कि वर्ष 2014 में सहारा समूह द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय, नई दिल्ली में प्रस्तुत एक मूल्यांकन रिपोर्ट में उक्त भूमि (क्षेत्रफल लगभग 110 एकड़) का अनुमानित मूल्य ₹125 करोड़ दर्शाया गया था। यह रिपोर्ट सहारा समूह द्वारा उस समय प्रस्तुत की गई थी जब कंपनी ने निवेशकों को उनकी जमा राशि वापस करने के उद्देश्य से देश के विभिन्न शहरों में स्थित अपनी संपत्तियों को विक्रय करने की अनुमति न्यायालय से मांगी थी। ₹125 करोड़ की अनुमानित मूल्य वाली बताई गई भूमि को मात्र ₹47.73 करोड़ में बेचा गया। इस बिक्री से प्राप्त पूरी ₹47.73 करोड़ की राशि को SEBI-Sahara खाते में जमा करने के बजाय, समूह ने इसे अपनी ही एक सोसाइटी ‘हमारा इंडिया क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड’ के खातों में ट्रांसफर कर दिया।

सागर: यहाँ लगभग 99.76 एकड़ भूमि ₹14.79 करोड़ में बेची गई। इस मामले में भी, एक भी रुपया SEBI-Sahara खाते में जमा नहीं किया गया। राशि को सहारा की सहायक कंपनियों और फिर ‘हमारा इंडिया’ और ‘सहारा क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी’ के खातों में ले जाकर उपयोग कर लिया गया। इसमें एक बिक्री विलेख में ₹1.61 करोड़ का चेक बाउंस होने के बावजूद भुगतान मिलना बताकर रजिस्ट्री करा दी गई और वास्तविक भुगतान लगभग दो साल बाद किया गया।

जिन मामलों में बिक्री की राशि SEBI-Sahara खाते में जमा की भी गई, वहाँ न्यायालय के निर्देशों के विरुद्ध जाकर करोड़ों रुपये की अवैध कटौतियाँ की गईं:

जबलपुर और कटनी: यहाँ भूमि बिक्री से प्राप्त राशि में से “भूमि विकास व्यय”, “कस्टमर लायबिलिटी”, और “विविध शासकीय कर” के तहत कुल ₹9.06 करोड़ से अधिक की राशि अवैध रूप से काट ली गई।

ग्वालियर: यहाँ की भूमि बिक्री में से “अन्य कटौती” के नाम पर ₹1.22 करोड़ की राशि अवैध रूप से काटी गई।
इस तरह, इन तीनों जिलों में कुल ₹10.29 करोड़ से अधिक की राशि अवैध रूप से काटी गई।

₹8.81 करोड़ की राशि विविध व्यय के नाम पर दर्शाई गई

₹9.06 करोड़ की राशि कस्टमर लाईबिलिटी‘भूमि विकास,TDS,GSTव अखिलेश रियलिटी जैसे फर्जी या अनौचित्यपूर्ण मदों में खर्च दिखाई गई।

जिला
भूमि क्षेत्रफल
विक्रय मूल्य
राशि सेबी खाते में जमा
अन्यत्र दुरुपयोग की गई राशि
भोपाल
110.10 एकड़
₹47.73 करोड़
₹0
₹47.73 करोड़
सागर
99.76 एकड़
₹14.79 करोड़
₹0
₹14.79 करोड़
कटनी
99.43 एकड़
₹22.00 करोड़
₹14.85 करोड़
₹7.15 करोड़ (लगभग)
जबलपुर
99.44 एकड़
₹20.60 करोड़
₹17.07 करोड़
₹3.53 करोड़ (लगभग)
ग्वालियर
99.76 एकड़
₹18.60 करोड़
आंशिक / नहीं
₹1.22 करोड़ (कटौत्रा)

कुल अवैध रूप से दुरुपयोग की गई राशि: ₹72,82,26,728/-

जाँच में प्रत्येक शीर्ष अधिकारी की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने आई है:

श्री सीमांतो रॉय (प्रमुख, CCM) (कॉर्पोरेट कंट्रोल मैनेजमेंट): जबलपुर और कटनी की भूमि बिक्री के निर्णयों में सीधे तौर पर शामिल पाए गए।
श्री जे.बी. रॉय (DGM, DMW): भोपाल भूमि सौदे के वित्तीय लेन-देन और निर्णयों में इनकी सक्रिय भूमिका थी।
श्री ओ.पी. श्रीवास्तव (डिप्टी मैनेजिंग वर्कर): सहारा के लैंड डिवीजन के प्रमुख होने के नाते सागर भूमि सौदे के निर्णयों में शामिल पाए गए।
कुल मिलाकर, सहारा समूह के अधिकारियों और उनके सहयोगियों ने दो तरीकों से धोखाधड़ी की:
भोपाल और सागर में बिक्री की पूरी राशि ₹62.52 करोड़ को SEBI-Sahara खाते में जमा न करना।
जबलपुर, कटनी और ग्वालियर में अवैध कटौतियों के माध्यम से ₹10.29 करोड़ की हेराफेरी करना।
इस प्रकार, कुल ₹72.82 करोड़ की राशि, जो निवेशकों को वापस मिलनी चाहिए थी, उसे आपराधिक षड्यंत्र के तहत हड़प लिया गया।

इन तथ्यों और सबूतों के आधार पर, EOW ने आरोपियों , मेसर्स सहारा इंडिया , श्री सहारा प्राईम सिटी लिमिटेड कंपनी, श्री सीमांतो रॉय, श्री जे.बी. रॉय, श्री ओ.पी. श्रीवास्तव, एवं अन्य अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध भारतीय दंड विधान की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना प्रारंभ की है।