कारगिल विजय दिवस पर विशेष: …जब सैनिकों के सम्मान में बाहर ही उतार दी चप्पल…!!

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कारगिल विजय दिवस पर विशेष: …जब सैनिकों के सम्मान में बाहर ही उतार दी चप्पल…!!

शिमला से संजीव शर्मा की विशेष रिपोर्ट

वीर सैनिकों के लिए आयोजित कार्यक्रम में जब एक महिला चप्पल बाहर उतारकर शामिल हुई तो कार्यक्रम में मौजूद आम लोगों के साथ सैन्य अधिकारी भी आश्चर्यचकित रह गए। सैनिकों के प्रति इतनी अटूट श्रद्धा का भाव आजकल कम ही देखने को मिलता है कि उनके सम्मान समारोह को मंदिर की तरह पवित्र भाव से महसूस किया जाए। सनातनी परंपरा में तो मंदिर के बाहर ही जूते चप्पल उतारकर अंदर जाया जाता है लेकिन सैनिकों के सम्मान में चप्पल बाहर उतारकर आना वाकई हतप्रभ करने वाला मामला था।

 

दरअसल, कारगिल युद्ध की वर्षगांठ और इस दौरान हुए आपरेशन विजय में हिस्सा लेने वाले पूर्व सैनिकों के सम्मान में हिमाचल प्रदेश में सैन्य प्रशिक्षण कमान, शिमला ने मशहूर रिज (मॉल रोड) पर कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में एक महिला के चप्पल बाहर उतारकर आने ने सभी का ध्यान खींच लिया। सभागार की व्यवस्था सम्भाल रहे सैनिकों ने उनसे चप्पल पहने रहने का आग्रह किया लेकिन वे तैयार नहीं हुई। दो से तीन बार अनुरोध के बाद ही उस महिला ने चप्पल पहनी। यह महज एक वाकया नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश में सैनिकों के प्रति आदर भाव का उदाहरण है।

 

और इतना आदर दिया भी क्यों न जाए…हिमाचल प्रदेश को भले ही आमतौर पर देवभूमि कहा जाता है लेकिन इसे ‘वीर भूमि’ कहना भी उतना ही सार्थक है। सोचिए, जिस राज्य ने अब तक चार परमवीर चक्र और दस महावीर चक्र विजेता जांबाज दिए हों, वह वीरभूमि ही तो होगी। देश का ‘पहला’ सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र भी हिमाचल प्रदेश के हिस्से ही आया था। मेजर सोमनाथ शर्मा देश के पहले परमवीर चक्र विजेता हैं और इसी प्रदेश के शूरवीर थे। इसके अलावा, इस राज्य से अब तक मेजर धन सिंह थापा, कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार भी इस सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। इतना ही नहीं, तीन अशोक चक्र और 18 कीर्ति चक्र विजेता भी यहीं से हैं। यह बताने की जरूरत नहीं है कि अशोक चक्र शांतिकाल में परमवीर चक्र जैसा ही सम्मान माना जाता है। इसके अलावा, वीर चक्र और सेना मैडल की तो गिनती ही नहीं की जा सकती।

 

इस राज्य की माटी में घुली वीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कारगिल युद्ध में शहीद हुए कुल 527 सैनिकों में से 52 हिमाचल प्रदेश के थे। करीब 69 लाख की आबादी वाले इस राज्य से हर साल लगभग 5,000 सैनिकों का चयन किया जाता है । सेना में शामिल होने के इच्छुक युवाओं की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। राज्य में लगभग तीन लाख सेवारत या सेवानिवृत्त सैनिक और उनकी विधवाएँ हैं। अगर उनके परिवारों को भी शामिल कर लिया जाए, तो हिमाचल प्रदेश में रक्षा क्षेत्र से जुड़े लगभग आठ लाख लोग निवास करते हैं।

 

यहां गांव गांव में वीरता की कहानियां बिखरी हैं और नौजवान सेना में जाना नौकरी से ज्यादा अपना कर्तव्य समझते हैं। शायद राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने हिमाचल जैसे किसी राज्य की वीरता से प्रभावित होकर ही ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कालजयी कविता लिखी थी क्योंकि यहां का युवा भी कहता है:

 

चाह नहीं, मैं सुरबाला के

गहनों में गूँथा जाऊँ।

चाह नहीं, प्रेमी-माला में

बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥

 

चाह नहीं, सम्राटों के शव पर,

हे हरि, डाला जाऊँ।

चाह नहीं, देवों के सिर पर

चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥

 

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

उस पथ में देना तुम फेंक॥

मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।

जिस पथ जावें वीर अनेक॥

इसलिए, सैनिकों के सम्मान में किसी महिला का चप्पल उतारकर आना यहां के लोगों के लिए खबर नहीं है..कोई और राज्य होता तो अब तक वह महिला मीडिया की सनसनी बन चुकी होती।