
झालावाड़ का स्कूल हादसा: मासूम जिंदगी मलबे में, सवालों में दबी ज़िम्मेदारी
-राजेश जयंत
*झालावाड़/पिपलोदी*- 25 जुलाई शुक्रवार की सुबह राजस्थान के झालावाड़ जिले में, पिपलोदी गांव का सरकारी स्कूल बच्चों के लिए रोज़ की तरह उम्मीद और सपनों का ठिकाना था। लेकिन आज की सुबह मौत बनकर छत और दीवार की शक्ल में टूटी और स्कूल की रौनक चीख-पुकार, खून और मलबे में बदल गई। केवल कुछ सेकंड में न जाने कितने परिवारों की उम्मीदें और बच्चों के अरमान गहरी चोंटों- परेशानियों के नीचे दब गए।

*हादसा:पल भर में तबाही*
शुक्रवार सुबह का वक्त, स्कूल के दो कमरों में कुल 71 बच्चे थे। अचानक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की छत भरभराकर गिर गई और साथ में दीवार भी ढह गई। चीख-पुकार, धूल और अफरा-तफरी के बीच कुछ मासूम जिंदगी हमेशा के लिए खामोश हो गईं।
राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्कूल दीवार गिरने से 07 मासूम बच्चों की मौत की स्तब्ध करने वाली सूचना मिली! पीड़ित परिवारों के प्रति मैं अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं!
यह हादसा सबक है!
अब कहीं भी ऐसी आपदाओं,
को आधार नहीं मिलना चाहिए!!Posted by Jitu Patwari on Friday, July 25, 2025
अब तक 8 बच्चों की मौत की पुष्टि हुई है; हादसे में 27 से ज्यादा घायल हैं, जिनका इलाज चल रहा है। जिनकी पहचान हुई, उनमें 14 वर्षीय पायल, प्रियंका, 8 साल का कार्तिक और हरीश भी शामिल हैं। गांव का हर शख्स इस मंजर के गवाह के तौर पर सदमे में है- मां-बाप बेहाल, ग्रामीण रोते-बिलखते, और अफसर/राहतकर्मी रेस्क्यू में जुटे।
*मलबे में दफन सवाल और सिस्टम की लापरवाही*
सिर्फ हादसा ही नहीं, इस घटना की सबसे बड़ी टीस ये है कि ये त्रासदी टल सकती थी। स्कूल में दो साल पहले मरम्मत के नाम पर करीब 1.80 लाख रुपये लिए गए, मगर ईमारत कभी ठीक न हुई।
ग्रामीण बताते हैं- स्कूल में पहले भी छत से कंकड़-पत्थर गिरते रहते थे। बच्चों ने घटना के ठीक पहले भी शिक्षक को बताया: “सर, छत से पत्थर गिर रहे हैं!” लेकिन जवाब मिला, “क्लास में जाओ!”- और दो ही मिनट बाद सब बर्बाद हो गया।
14 जुलाई 2025 को शिक्षा विभाग ने मानसून से पहले सभी स्कूलों की जर्जर छत, दीवारें ठीक करने के आदेश भेजे थे; लेकिन स्थानीय प्रशासन ने न तो वक़्त रहते मरम्मत कराई, न खतरा महसूस किया। नतीजाजी 8 बेगुनाहों की जान गई, 27 जिंदा हैं मगर जख्मी या दहशत में।
*दर्द और गुस्से का सैलाब*
हादसे के बाद इलाके में कोहराम मचा है। बच्चों की मौत से आहत परिजन, ग्रामीण और अभिभावक सड़क पर उतर आए- गुराड़ी चौराहे पर जाम लग गया, प्रशासन और जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ नारेबाज़ी शुरू हो गई।
पीड़ित माताएं, पिताओं और गांव वालों का एक ही सवाल है- अगर समय पर कार्रवाई होती, तो उनके नौनिहाल जिंदा होते..? इतनी फाइलों, प्रशासनिक कवायद और स्कीम्स का क्या फायदा, जब बच्चों की जान इतनी सस्ती हो गई?
*कार्रवाई..?*
1. हादसे के तुरंत बाद प्रशासन और राहत कर्मी रेस्क्यू कार्य में जुट गए।
2. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर, SP और कलेक्टर मौके पर पहुंचे, घायलों को बेहतर इलाज देने के निर्देश मिले।
3. जिला प्रशासन और सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं, महिला प्रिंसिपल समेत 4 शिक्षक सस्पेंड किए गए।
4. पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम भजनलाल शर्मा ने हादसे पर गहरा शोक जताया; राहत देने और दोषियों पर कठोर कार्रवाई के आश्वासन दिए।
5. गांव वालों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा, उनकी नजरों में बरसों की लापरवाही की ये करारी सजा है।
*अब आगे क्या?*
स्कूल- जहां बच्चे सपने बुनने जाते हैं वहां छत कब मौत बनकर गिर जाएगी, इसका डर पूरे इलाके में पसरा है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या हर हादसे के बाद जांच और निलंबन से आगे भी सिस्टम कभी जागेगा…? कब तक मासूमों की आह दीवारों में दबती रहेगी…?
*आख़िर में…*
झालावाड़ हादसा किसी परिवार, किसी गांव का दर्द नहीं, पूरा देश उन टूटी कॉपियों, खून से सनी यूनिफॉर्म और बेसुध पड़ी मांओं के आंसुओं से टकरा रहा है।
सरकार को अब सिर्फ जांच रिपोर्ट या क्षतिपूर्ति नहीं, स्कूलों और सपनों के इन मंदिरों की ईमानदार रक्षा करनी होगी।
क्योंकि एक बार बर्बाद हुआ बचपन कभी लौट नहीं सकता और मासूम जिंदगियों का यह ज़खीरा अबकी बार सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक सवाल है- कितनी और देर…?





