‘पद पाकर सब अकड़े हुए हैं…झुकना अब सब भूल गए हैं…’

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‘पद पाकर सब अकड़े हुए हैं…झुकना अब सब भूल गए हैं…’

कौशल किशोर चतुर्वेदी

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने जुलाई महीने के अंतिम शनिवार को अमरावती जिले के दारापुर में अपने ‘मन की बात’ खूब खुलकर कर ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मन की बात में माह के अंतिम रविवार को राष्ट्र की उपलब्धियों और समाज में अपना स्थान बनाकर दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुके लोगों की चर्चा होती है। तो गवई ने अपनी मन की बात में वास्तव में संत की तरह अपने मन की गूढ़ बातें सबके सामने रख दीं। वह अपनी सेवानिवृत्ति के बाद परामर्श और मध्यस्थता करेंगे तथा कोई सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे। यानि संदेश सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायाधीशों की तरफ भी मुड़ रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने,रिटायर हुए तो सरकार का दामन थामे हुए नजर आए। बीआर गवई ने शनिवार यानि 26 जुलाई 2025 को घोषणा करते हुए कहा कि वह अपने रिटायरमेंट के बाद कोई भी सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे। इसके बजाय, वह परामर्श और मध्यस्थता (कंसल्टेशन और आर्बिट्रेशन) के क्षेत्र में काम करेंगे। गवई ने यह बयान महाराष्ट्र के अमरावती जिले में लेट टीआर गिल्डा मेमोरियल ई-लाइब्रेरी के उद्घाटन के दौरान दिया। वह 23 नवंबर 2025 को रिटायर होने वाले हैं। अमरावती के अपने पैतृक गांव दारापुर में एक कार्यक्रम के दौरान गवई ने कहा, “मैंने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि मैं रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद स्वीकार नहीं करूंगा। मैं परामर्श और मध्यस्थता के कार्य में जुड़ा रहूंगा।” उन्होंने यह भी बताया कि वह रिटायरमेंट के बाद अपना अधिकांश समय दारापुर, अमरावती और नागपुर में बिताने की योजना बना रहे हैं।

सीजेआई गवई अपने पिता की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में पूरी तरह से अलग अंदाज में नजर आए। गवई ने वह गूढ़ बातें सबके सामने रखीं, जिन पर अमल करना तो दूर उतनी सोच बनाना भी अफसर जरूरी नहीं समझते। न्यायिक स्वतंत्रता पर जोर देते हुए गवई ने पहले भी कहा था कि रिटायरमेंट के तुरंत बाद सरकारी पद स्वीकार करना या चुनाव लड़ना नैतिक चिंताओं को जन्म देता है और यह जनता के न्यायपालिका पर विश्वास को कमजोर कर सकता है। उन्होंने और उनके कई सहयोगियों ने सार्वजनिक रूप से यह प्रतिज्ञा ली है कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी भूमिका स्वीकार नहीं करेंगे, ताकि न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता बनी रहे।

गवई ने न्यायिक ढांचे के विकेंद्रीकरण की वकालत की और कहा कि इससे न्याय लोगों तक आसानी से पहुंचेगा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वह न्यायिक बुनियादी ढांचा समिति के प्रमुख के रूप में तालुका और जिला स्तर पर नए कोर्ट स्थापित करने के लिए एक मॉडल तैयार कर चुके हैं, हालांकि नौकरशाही बाधाएं इस कार्य में रुकावट डाल रही हैं।

गवई ने युवा वकीलों को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें अपने पद और प्रतिष्ठा को सिर पर नहीं चढ़ने देना चाहिए। उन्होंने कहा, “वकील और जज समान साझेदार हैं। हमें अपनी शक्ति का उपयोग लोगों की सेवा के लिए करना चाहिए, न कि इसे अपने अहंकार का हिस्सा बनाना चाहिए।” बीआर गवई 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बने। वे देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित सीजेआई हैं। उनकी छह महीने की अवधि 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगी।

गूढ़ संदेशों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए गवई ने कहा कि सिर्फ अफसरशाही नहीं, बल्कि न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं को भी अपने आचरण पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा, ‘न्यायाधीशों को वकीलों को सम्मान देना चाहिए। अदालत वकील और न्यायाधीश दोनों की होती है।” चीफ जस्टिस गवई ने अपने संबोधन में कहा, “यह कुर्सी जनता की सेवा के लिए है, न कि घमंड के लिए। कुर्सी अगर सिर में चढ़ जाए, तो यह सेवा नहीं, बल्कि पाप बन जाती है।” उनका यह बयान न्यायपालिका और प्रशासनिक पदों पर बैठे हर व्यक्ति के लिए एक चेतावनी की तरह था। और अगर देखा जाए तो अधिकतर मामलों में कुर्सी पदधारकों के सिर पर चढ़ी हुई है। चाहे इसे भ्रष्टाचार से जोड़कर देखें या फिर आम आदमी के साथ बदसलूकी और कर्तव्य निर्वहन में उदासीनता और उद्दंड बर्ताव को लेकर।

जूनियर वकीलों को चेतावनी भरे अंदाज में गवई ने कहा, “25 साल का वकील कुर्सी पर बैठा होता है और जब 70 साल का सीनियर आता है, तो उठता भी नहीं। थोड़ी तो शर्म करो! सीनियर का सम्मान करो।” तो सम्मान का यह अभाव भी हर क्षेत्र में फल-फूल रहा है।

गवई ने सीधा संदेश दिया कि ‘पद मिले तो झुकना सीखो, अकड़ना नहीं’

अपने पूरे भाषण के दौरान गवई का जोर इसी बात पर रहा कि चाहे कोई भी कुर्सी हो- वह जिलाधिकारी की हो, पुलिस अधीक्षक की या न्यायाधीश की हो, सिर्फ और सिर्फ जनसेवा का माध्यम है। उन्होंने दो टूक कहा, “कुर्सी सिर में घुस गई, तो न्याय का मोल खत्म हो जाएगा। ये कुर्सी सम्मान की है, इसे घमंड से अपमानित न करें।” जबकि वास्तव में देखा जाए तो 99 फ़ीसदी मामलों में पद मिलने के बाद पदधारी अकड़े हुए ही नजर आ रहे हैं। मानो झुकना यानि विनम्रता, शिष्टता, सरलता, सहजता जैसे आचरण को वह दोयम दर्जे का मानते हों। भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की यह बातें अगर अमल में लाई जाएं तो भारत की तस्वीर ही बदल सकती है… यह बड़े दुख की ही बात है कि मुट्ठी भर अपवादों को छोड़कर यही सच है कि ‘पद पाकर सब अकड़े हुए हैं…झुकना अब सब भूल गए हैं…’।