
Markings of Bionicillin Glasses: भारतीय कोबरा (नाजा नाजा) में तीन बायनोसिलेट चश्मे के निशान: वैज्ञानिक विश्लेषण
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास
Rare cobra with three spectacle markings rescued, Times of India द्वारा 27 जुलाई को प्रकाशित समाचार का mediawala से संबद्ध भारतीय उपमहाद्वीप के सरीसृप वैज्ञानिक शोधपरक संदर्भों सहित इस नैसर्गिक अद्भुत घटना का विश्लेषण कर रहे हैं।
लीजिए ,
अवगाहन कीजिए प्रकृति में मिले 3 बायनोसिलेट निशानों युक्त अद्भुत रहस्य और रोमांचकारी जीव का जैव वैज्ञानिक विश्लेषण.
एक दुर्लभ घटना और उसके संभावित कारण
भारतीय कोबरा (नाजा नाजा) अपनी विशिष्ट पहचान, फन पर मौजूद ‘चश्मे’ या ‘बायनोसिलेट*
‘निशान के लिए जाना जाता है। हालांकि, चेन्नई में हाल ही में एक ऐसे कोबरा की खोज की गई है जिसके शरीर पर एक नहीं, बल्कि तीन चश्मे जैसे निशान पाए गए, जो इस प्रजाति में एक अत्यंत दुर्लभ और असाधारण घटना है। यह खोज सरीसृप विज्ञानियों और संरक्षणवादियों के लिए गहन रुचि का विषय बन गई है, और यह प्रकृति की आनुवंशिक अप्रत्याशितता

का एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करती है।
1. भारतीय कोबरा में
बायनोसिलेट निशान की सामान्य स्थिति
भारतीय कोबरा (Naja naja) के फन पर पाया जाने वाला चश्मे का निशान, जिसे ‘ओसेली’ या ‘बिनोकुलेट’ पैटर्न कहा जाता है, इस प्रजाति की एक विशिष्ट पहचान है। यह पैटर्न आमतौर पर फन के ऊपरी हिस्से पर एक या दो वृत्ताकार या अंडाकार धब्बों के रूप में दिखाई देता है, जिनके चारों ओर हल्की या गहरी रंगत होती है, जो चश्मे के फ्रेम जैसा दिखता है। ये निशान शिकारियों को भ्रमित करने और उन्हें पीछे हटने के लिए प्रेरित करने में सहायक हो सकते हैं (Greene, 1997, पृ. 225)। सरीसृप विज्ञान में अक्सर इन निशानों का उपयोग व्यक्तिगत सांपों की पहचान करने के लिए करते हैं, और यह देखा गया है कि एक ही संतान के बच्चों के फन के पैटर्न में भिन्नता हो सकती है (Zug et al., 2001, पृ. 110)।
2. चेन्नई में खोजे गए दुर्लभ कोबरा की विशेषता
16 जुलाई को चेन्नई वन्यजीव प्रभाग द्वारा बचाए गए भारतीय कोबरा में यह असाधारण विशेषता है कि उसके शरीर पर एक नहीं, बल्कि तीन बिनोकुलेट ‘बायनोसिलेट’
निशान हैं। यह घटना भारतीय कोबरा के लिए अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है, क्योंकि ये निशान आमतौर पर केवल फन तक ही सीमित होते हैं। तस्वीर में दिखाए गए सांप के सिर पर एक स्पष्ट चश्मे का निशान दिखाई दे रहा है,उसके शरीर के अन्य हिस्सों पर भी ऐसे दो और निशान मौजूद हैं। यह एक ऐसी घटना है जिसे तिरुनेलवेली स्थित सरीसृप विज्ञानी और सेंट जॉन्स कॉलेज के पूर्व प्राणि विज्ञान प्रोफेसर अल्बर्ट राजेंद्रन ने भी पहले कभी नहीं देखा था।
3. संभावित कारण: आनुवंशिक उत्परिवर्तन और जन्मजात विकार
इस प्रकार की असामान्य रूपात्मक असामान्यता, जैसा कि इस कोबरा में देखी गई है, एक्टोडर्मल त्वचा की एक अनियमितता है। यह विभिन्न आनुवंशिक और विकासात्मक कारकों के कारण हो सकती है। डॉ तेज प्रकाश व्यास, भारतीय उपमहाद्वीप के सरीसृप वैज्ञानिक के अनुसार यह एक ‘फेनोटाइपिक आनुवंशिक अप्रभावी उत्परिवर्तन’ (phenotypic genetic recessive mutation) या ‘जन्मजात विकार’ (congenital disorder) का परिणाम हो सकता है।
फेनोटाइपिक आनुवंशिक अप्रभावी उत्परिवर्तन:
यह तब होता है जब एक या एक से अधिक जीन में परिवर्तन होता है, और यह परिवर्तन केवल तभी व्यक्त होता है जब व्यक्ति को उस विशेष जीन की दो अप्रभावी प्रतियां विरासत में मिलती हैं। त्वचा के पैटर्न और रंगत के लिए जिम्मेदार जीन में ऐसे उत्परिवर्तन से असामान्य पैटर्न का विकास हो सकता है (Griffiths et al., 2000, पृ. 195-197)
जन्मजात विकार:
ये विकार जन्म के समय मौजूद होते हैं और भ्रूण के विकास के दौरान उत्पन्न होते हैं। पर्यावरणीय कारक, गर्भावस्था के दौरान कुछ आनुवंशिक कारक इन विकारों का कारण बन सकते हैं (Moore & Persaud, 2008, पृ. 15-18)।
इस तरह की अनियमितताएं, जैसे कि एल्बिनिज्म (Albinism), ल्यूसिज्म (Leucism) या विटिलिगो (Vitiligo) जैसी पिगमेंटेशन (रंजकता) संबंधी स्थितियां, भी आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होती हैं जो वर्णक उत्पादन को प्रभावित करती हैं। इस मामले में, यह वर्णक के वितरण या पैटर्न गठन को प्रभावित कर रहा है।
4. हार्मोनल परिवर्तन का प्रभाव
विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया है कि यौन परिपक्वता से जुड़े हार्मोनल परिवर्तनों के कारण जीवन में बाद में भी ऐसे पैटर्न प्रकट हो सकते हैं। हार्मोन विकास और रूपात्मक परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, ऐसे लक्षण आमतौर पर आनुवंशिक रूप से पीढ़ियों तक नहीं पहुंचते हैं, जिसका अर्थ है कि यह एक विशिष्ट घटना है और जरूरी भी नहीं कि अगली पीढ़ी को विरासत में मिले (Duellman & Trueb, 1986, पृ. 250-252)।
5. संरक्षण और वैज्ञानिक महत्व
यह दुर्लभ कोबरा सरीसृप विज्ञानियों और संरक्षणवादियों के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है। यह घटना हमें सांपों के आनुवंशिकी और विकासात्मक जीव विज्ञान की जटिलताओं को समझने का अवसर प्रदान करती है। यद्यपि ये विशेषताएं आमतौर पर आनुवंशिक रूप से पारित नहीं होती हैं, इस तरह के असाधारण नमूनों का अध्ययन हमें आनुवंशिक भिन्नता, उत्परिवर्तन की आवृत्ति और प्रकृति में उनके प्रभाव के बारे में अधिक जानने में मदद कर सकता है। इस कोबरा को गिंडी चिल्ड्रन पार्क के सर्पेंटेरियम में स्थानांतरित करना इसके दीर्घकालिक अवलोकन और अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। यह घटना सांपों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालने में भी मदद करती है।
निष्कर्ष
भारतीय कोबरा में तीन
बायनोसिलेट निशानों की खोज एक उल्लेखनीय घटना है जो प्रकृति की आश्चर्यजनक विविधता और आनुवंशिक प्रक्रियाओं की जटिलता को दर्शाती है। यह फेनोटाइपिक अभिव्यक्ति में आनुवंशिक उत्परिवर्तन या जन्मजात विकार के संभावित प्रभावों का एक दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस तरह के नमूनों का अध्ययन हमें वन्यजीवों के स्वास्थ्य, आनुवंशिकी और विकास के बारे में हमारी समझ को गहरा करने में मदद करेगा, और संरक्षण प्रयासों के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।
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संदर्भ
— Greene, Harry W. (1997). Snakes: The Evolution of Mystery in Nature. University of California Press. (पृष्ठ 225 पर सांपों में चेतावनी पैटर्न और रक्षा तंत्र पर चर्चा)।
– Zug, George R., Vitt, Laurie J., & Caldwell, Janalee P. (2001). Herpetology: An Introductory Biology of Amphibians and Reptiles. Academic Press. (पृष्ठ 110 पर सरीसृपों की पहचान और रूपात्मक भिन्नता पर चर्चा)।
– Griffiths, Anthony J. F., Miller, Jeffrey H., Suzuki, David T., Lewontin, Richard C., & Gelbart, William M. (2000). An Introduction to Genetic Analysis. W. H. Freeman and Company. (पृष्ठ 195-197 पर अप्रभावी उत्परिवर्तन और फेनोटाइपिक अभिव्यक्ति पर विस्तार से चर्चा)।
-Moore, Keith L., & Persaud, T. V. N. (2008). The Developing Human: Clinically Oriented Embryology. Saunders. (पृष्ठ 15-18 पर जन्मजात विकारों और उनके कारणों का विवरण)।
-Duellman, William E., & Trueb, Linda. (1986). Biology of Amphibians and Reptiles. Johns Hopkins University Press. (पृष्ठ 250-252 पर हार्मोनल प्रभाव और विकास पर सामान्य चर्चा)।
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास
सरीसृप वैज्ञानिक
भारतीय उपमहाद्वीप,
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति निधि संरक्षण संघ, ग्लैंड स्विट्जरलैंड,
निवास : बी 12, विस्तारा टाउनशिप, ए बी बायपास, ईवा वर्ल्ड स्कूल के पास ,
इंदौर.
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