
Unique PIL : हाई कोर्ट में अनोखी जनहित याचिका, मध्य प्रदेश को MP न कहा जाए, फिर ऐसा जवाब मिला कि बोलती बंद हो गई!
Jabalpur : हाल ही में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के सामने बेहद रोचक जनहित याचिका दाखिल की गई। इसमें याचिकाकर्ता ने मांग की, कि मध्य प्रदेश को मप्र या एमपी बोलने या लिखने पर रोक लगाई जाए। याचिका में हाई कोर्ट से यह सुनिश्चित करने की भी मांग की गई कि इस बारे में राज्य सरकार को हर संभव कदम उठाने के निर्देश देने के लिए कहा जाए। मध्य प्रदेश राज्य का नाम हिंदी में पत्राचार आदि के सभी रूपों में एमपी या मप्र के रूप में न लिखा जाए। सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से उसकी मांग के पीछे जनहित को लेकर सवाल पूछा, तो वह कुछ बता नहीं पाया, इसके बाद हाई कोर्ट ने इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट में यह याचिका भोपाल के वरिंदर कुमार नस्वा ने लगाई थी। उन्होंने खुद ही अपनी तरफ से हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखा। याचिका में उन्होंने कहा कि हमारे प्रदेश का संवैधानिक नाम मध्य प्रदेश है। लेकिन, 90% लोग बोलचाल की भाषा में और 80% लोग लिखा-पढ़ी में मध्य प्रदेश के लिए संक्षिप्त नाम एमपी का प्रयोग करते हैं। मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच ने कहा कि बोलचाल में आसानी व समय बचाने के लिए पूरी दुनिया में संक्षिप्त नामों या शॉर्टनेम का इस्तेमाल किया जाता है।
अदालत ने दिलचस्प तर्क दिए
अदालत ने कहा कि छोटे नामों का उपयोग केवल भारत में ही राज्यों का नाम बताने के लिए नहीं किया जाता है, जैसे आंध्र प्रदेश को एपी, चंडीगढ़ को सीएच, हरियाणा को एचआर, हिमाचल प्रदेश को एचपी, उत्तर प्रदेश को यूपी, मध्य प्रदेश को एमपी के रूप में जाना जाता है। ऐसा इस्तेमाल दुनियाभर में भी किया जाता है। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका को यूएसए, यूनाइटेड किंगडम को यूके लिखा जाता है। कोर्ट ने कहा कि नाम छोटा करने से किसी जगह का नाम नहीं बदलता, बल्कि पहचान आसान होती है।
वाहन के नंबर में भी शार्ट फॉर्म
याचिका खारिज करने से पहले हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि आप जिस वाहन का इस्तेमाल करते हैं, उसका नंबर क्या है। तो शख्स ने जवाब देते हुए कहा कि ‘सीएच’ यानी चंडीगढ़ का नंबर बताया। तब अदालत ने पूछा कि आप कब मध्य प्रदेश आए और वह आपकी मदर लैंड कब से हो गई। वैसे भी आरटीओ का नियम तो यह कहता है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में वाहन ले जाने के बाद नंबर बदलना पड़ता है। जब वाहन के नंबर में ही ‘एमपी’ लिखने का प्रावधान है, तो इसे क्यों बदलें।
साथ ही अदालत ने जब उस शख्स से पूछा कि आपकी जनहित याचिका में जनहित की कौन सी बात है, तो वह याचिकाकर्ता यह भी नहीं बता पाया। याचिका पर विचार किए जाने से किस जनहित की पूर्ति होगी। इसके बाद अदालत ने शख्स की याचिका को खारिज कर दिया।





