‘मालेगांव’ के भूत’ ने ‘प्रज्ञा’ का पीछा छोड़ दिया है…!

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‘मालेगांव’ के भूत’ ने ‘प्रज्ञा’ का पीछा छोड़ दिया है…!

कौशल किशोर चतुर्वेदी

भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मालेगांव धमाकों में लगे आरोप पर सफाई दी थी कि उन्होंने ‘कोई कुकर्म नहीं किया जो मालेगांव का भूत हमेशा उनके पीछे लगा रहेगा’। और उनकी बात आखिर 6 साल बाद सही साबित हो गई है। मालेगांव की भूत ने प्रज्ञा का पीछा छोड़ दिया है। पर अभी यह नहीं कहा जा सकता कि मालेगांव का भूत स्थाई रूप से प्रज्ञा का पीछा छोड़ चुका है। पीड़ित पक्षों के पास अभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प खुला हुआ है। और देखा जाए तो जब तक आखरी दरवाजा बंद नहीं हो जाता तब तक मालेगांव का भूत जिंदा बना रहेगा और फिर से प्रज्ञा का पीछा करने को आजाद है। पर फिलहाल यह बात इसलिए हो रही है क्योंकि मालेगांव ब्लास्ट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने सभी सात अभियुक्तों को बरी कर दिया है। भाजपा नेता साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित इस मामले में सबसे चर्चित अभियुक्त रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा भोपाल से भाजपा की सांसद रह चुकी हैं। विशेष एनआईए अदालत के इस फैसले से भारत में फिर एक नई बहस शुरू हो गई है। या यूं कहा जाए कि परंपरागत रूप से फैसले का स्वागत और विरोध करने वाले दो अलग-अलग धड़ों में बंट गए हैं।

मालेगांव बम विस्फोट मामले में अदालत के फ़ैसले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, “आतंकवाद भगवा न कभी था, ना है, ना कभी रहेगा!” तो मालेगांव ब्लास्ट में मारी गई एक बच्ची के पिता लियाकत शेख ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “हमारे साथ गलत हुआ है। उनको सजा होनी थी। हेमंत करकरे साहब ने उनको सबूत के साथ पकड़ा था। अगर उन्होंने नहीं किया तो किसने किया। उनको पकड़ना चाहिए, उनको सजा मिलनी चाहिए। अब आगे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मेरी दस साल की बच्ची शहीद हुई थी। वह वड़ा पाव लाने के लिए गई थी, मैं घर में बैठा था। तभी धमाका हुआ था।”

स्थानीय नेता मौलाना कयूम ने कहा, “मालेगांव के लोगों को उम्मीद थी कि मुल्जिमों को सजा दी जाएगी। पीड़ित लोगों के साथ हम हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। हेमंत करकरे साहब ने जो सबूत दिए थे उसकी रोशनी में हमें उम्मीद थी कि मुजरिमों को सजा मिलेगी।”

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि “हिन्दू आतंकवाद“ जैसे नैरेटिव गढ़ने वाली कांग्रेस सदैव याद रखे, हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। न्यायालय का यह फैसला सनातन धर्म, साधु-संतों एवं भगवा को अपमानित करने वाले लोगों को कड़ा जवाब है। कांग्रेस को सभी सनातनियों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक हेमंत खण्डेलवाल ने कहा कि बीते 17 वर्षों की पीड़ा, सामाजिक बहिष्कार और राजनीतिक प्रहारों के बाद आज मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी 7 आरोपियों को माननीय न्यायालय द्वारा दोषमुक्त करने का निर्णय अभिनंदनीय है। वोटबैंक के लालच और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने न सिर्फ निर्दोषों को फंसाया, बल्कि पूरे हिंदू समाज की छवि को धूमिल करने का संगठित प्रयास भी किया। आज न्यायालय ने उनके इस झूठे नैरेटिव का पर्दाफाश कर दिया है। यह फैसला उन सबके लिए सबक है, जो वोटबैंक की राजनीति के लिए “भगवा आतंक“ जैसे आपत्तिजनक शब्दों को गढ़ते हैं।

पूरा मामला यह था कि करीब 17 साल पहले मालेगांव में हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे‌। 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिलों में रखे विस्फोटकों में धमाका हुआ था।विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और 100 लोगों से अधिक घायल हो गए थे।इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, बीजेपी नेता प्रज्ञा ठाकुर, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

शुरुआत में इस मामले की जाँच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) कर रहा था, लेकिन 2011 में इसकी जाँच की जिम्मेदारी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी।विशेष एनआईए न्यायाधीश एके लाहोटी ने 8 मई को सभी अभियुक्तों को 31 जुलाई को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था। मुकदमे के दौरान सरकारी पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 37 अपने बयान से मुकर गए थे। फैसला सुनाते समय न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को साबित करने के लिए विश्वसनीय और ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने माना कि अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त कानूनी आधार नहीं हैं। सभी अभियुक्तों को संदेह का लाभ देते हुए निर्दोष घोषित किया गया है।

दरअसल इस धमाके में एक मोटरसाइकिल इस्तेमाल की गई थी। एनआईए की रिपोर्ट के मुताबिक यह मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी। मालेगांव ब्लास्ट की जाँच में सबसे पहले 2009 और 2011 में महाराष्ट्र एटीएस ने स्पेशल मकोका कोर्ट में दाखिल अपनी चार्जशीट में 14 अभियुक्तों के नाम दर्ज किए थे।एनआईए ने जब मई 2016 में अपनी अंतिम रिपोर्ट दी, तो उसमें 10 अभियुक्तों के नाम थे। इस चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह को दोषमुक्त बताया गया। साध्‍वी प्रज्ञा पर लगा मकोका हटा लिया गया और कहा गया कि प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ करकरे ने जो जाँच की वो असंगत थी। इसमें लिखा गया कि जिस मोटरसाइकिल का जिक्र चार्जशीट में था वो प्रज्ञा के नाम पर थी, लेकिन मालेगांव धमाके के दो साल पहले से कलसांगरा इसे इस्तेमाल कर रहे थे।प्रज्ञा ठाकुर को जमानत तो मिल गई लेकिन उनपर मुकदमा चलता रहा। बाद में वह 2019 में भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ीं और जीत गईं।

मालेगांव विस्फोट कांड का फैसला आने के बाद अब तत्कालीन सरकारों पर राजनीतिक हमला भी तेज हो गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि इस प्रकार का नैरेटिव फैलाने के लिए अब कांग्रेस देश से माफी मांगे।विस्फोटों के बाद चंद दिनों के घटनाक्रम स्पष्ट इशारा करते हैं कि ‘भगवा आतंकवाद नैरेटिव’ की बुनियाद तो राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने रखी थी। जब मालेगांव में विस्फोट हुआ था, उस समय केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह संप्रग की सरकारें थीं। केंद्र में गृह मंत्री कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल थे, तो महाराष्ट्र के गृह मंत्री शरद पवार की पार्टी राकांपा के नेता आरआर पाटिल थे। और यह भी एक संयोग है कि जब मालेगांव ब्लास्ट के इस मामले का फैसला आया तब केंद्र, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकारें हैं। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि भगवा, आतंकवाद से मुक्त हो गया है और प्रज्ञा का पीछा मालेगांव के भूत ने छोड़ दिया है…।