रविवारीय गपशप : मंत्रालय में काम की गति धीमी जरूर पर लगे रहो तो कामयाबी

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रविवारीय गपशप : मंत्रालय में काम की गति धीमी जरूर पर लगे रहो तो कामयाबी

आनंद शर्मा

कहते हैं जैसे मोक्ष के लिये मरना जरूरी है वैसे ही नौकरी का मर्म जानने के लिये मंत्रालय की पोस्टिंग जरूरी है । फील्ड में तेज़तर्राट और हवा सा वेग रखने वाले बंदे मंत्रालय में आते ही संजीदा रफ़्तार के मुरीद बन जाते हैं । सन् 2016 में मैंने भी बरसों फ़ील्ड की नौकरी और दो जिलों की कलेक्टरी करने के बाद भोपाल वल्लभ भवन में आमद दे दी । वल्लभ भवन में किस विभाग में पोस्टिंग हो इस मुद्दे की फाइल जब मुख्य सचिव के पास पहुँची तो वहाँ उनके पास मुक्तेश वार्ष्णेय साहब बैठे थे जो सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव और मेरे खैरख्वाह वरिष्ठ मित्र अरुण तिवारी के बैचमेट थे । उन्होंने सी.एस. से कहा इसे मुझे दे दो और इस तरह मैं अपर सचिव सामान्य प्रशासन विभाग नियुक्त हो गया । वार्ष्णेय साहब ने मुझे ख़ुद ये वाक़या सुनाया और कहा अभी आप अपर सचिव हो पर मैं आप को अभी से सचिव का काम , कमरा और कार दे रहा हूँ , और इस तरह मुझे चौथी मंजिल पर उनके बगल के कमरे में बैठने की जगह और आनेजाने को एक नई कार मिल गई । मैंने पहले पहल तो यही सोचा कि इसमें कौन सी बड़ी बात है ? बतौर सी.ई.ओ. जिला पंचायत या निगम आयुक्त या कलेक्टर , मैं तो इससे ज़्यादा बड़े कमरों और बेहतर वाहनों का प्रयोग कर चुका था , पर जल्द ही जब मैंने नए आमद दिए सचिव और प्रमुख सचिव स्तर के मुझसे वरिष्ठ अफसरों को इन्ही सब बातों के लिए परेशान होते देखा तो मुझे समझ आ गया कि वार्ष्णेय साहब ने मुझ पर कैसी दयनातदारी दिखाई थी ।

Mantralaya Vallabh Bhavan Bhopal

जी.ए.डी. यानी सामान्य प्रशासन विभाग की पोस्टिंग में मुझे भरपूर संतुष्टि मिली । कई नए काम सीखे , जैसे कैबिनेट नोट कैसे बनते हैं , राज्यपाल के अभिभाषण की तैयारी कैसी होती है , मंत्रियों के शपथ ग्रहण , अंतर्विभागीय समन्वय आदि जैसे बहुतेरे विषय , लेकिन सरकार के काम करने के तरीके सीखने अभी बाक़ी थे । एक बार की बात है बज़ट पर माननीय मुख्यमंत्री जी का उदबोधन फाइनल होकर प्रिंट के लिए जाने वाला था । मुझे उसके लिए पत्र बनाने का काम सौंपा गया । मैंने पत्र बनाते हुए देखा कि उसमें एक लाइन सही नहीं थी । मैंने पी.एस. को फ़ोन किया और बताया तो वार्ष्णेय साहब बोले वो तो एच.सी.एम. से फाइनल ड्राफ्ट है , अपने स्तर से हम कुछ नहीं कर सकते । मैंने निवेदन किया कि सर इससे बिंदु में असमंजस बन रहा है तो उन्होंने कहा अब तो ये ऊपर से ही सुधरेगा । अगले दिन छुट्टी थी और सोमवार को विधानसभा थी यानी इसे आज ही प्रिंट के लिए जाना था । मेरा मन ना माना मैं ड्राफ्ट लेकर पाँचवी मंजिल पर गया जहाँ मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव बैठे थे , मैंने उनसे स्थिति बतायी , उन्होंने ड्राफ्ट लिया और कहा इसमें क्या बड़ी बात है और उसे सही करते हुए कहा लो अब छपने भेज दो ।

उन दिनों सोमवार को वल्लभ भवन के सामने वाले परिसर में राष्ट्र गान की परंपरा थी । उपस्थिति में निरंतर होती कमी को देखते हुए इसे आकर्षक बनाने का सोचा गया । तय हुआ कि पुलिस बल की परेड और बैण्ड इसमें शामिल किया जाएगा , ख़ुद माननीय मुख्यमंत्री जी या गृह मंत्री जी इसमें उपस्थित रहेंगे , और ज़ाहिरी तौर पर सभी वरिष्ठ अफसरों की उपस्थिति अनिवार्य रहेगी । इन सारे कामों के देखरेख की ज़िम्मेदारी स्वाभाविक रूप से जी.ए.डी. को दी गई । इसकी शुरुआत होने वाले सोमवार से ठीक एक दिन पहले मुझे पी.एस. ने कहा कि आज दोपहर को रिहर्सल है , तुम मेरी ओर से जाकर देख लेना । मैं समय से पहुँच गया , छुट्टी का दिन था सो मेरी तरह बाक़ी के भी एवजी अफ़सर ही पहुँचे हुए थे । मैंने पाया कि बैण्ड वादकों का दल दूर से शुरुआत में देशभक्ति के गाने की धुन बजाता है , फिर रास्ते में आते हुए धुन बजाता है , पर स्टेज के पास आकर चुपचाप खड़ा हो जाता है और फिर राष्ट्रगीत और मध्यप्रदेश गान के गायक अपनी प्रस्तुति देते हैं । मुझे लगा इतनी मधुर धुन बजाने वाले स्टेज के पास आकर भी देशप्रेम के किसी एक नग़मे की धुन बजा दें तो सोने पे सुहागा हो जाएगा । मैंने अपनी मंशा फ़ोन पर पी.एस. को कही तो वे बोले “पार्टनर इसे तो सी.एस. फ़ाइनल कर चुके हैं , अब इसमें ना तुम कुछ नया कर सकते हो ना मैं “। मैं चुप रह गया पर मन न माना । शाम को पाँच बजे ख़बर आई कि फाइनल रिहर्सल देखने सी.एस. आ रहे हैं । इस बार पी.एस. का फ़ोन बजा कि मैं भी आ रहा हूँ तुम भी पहुँचो । मैं समय से पहुँच गया , फिर वही सब प्रक्रिया दोहराई गई , वादक दल स्टेज पर आकर चुपचाप कतारबद्ध खड़ा हो गया । राष्ट्र गान शुरू हो इसके पहले मैं डीसा साहब के पास पहुँच गया और उनसे कहा सर यदि यहाँ पर एक और धुन ये बजा दें तो कितना अच्छा होगा हम सब पास से इन्हें और अच्छा सुन लेंगे , उन्होंने हाँ कहा और मैंने उनके इंचार्ज अफ़सर को इशारा किया । सचमुच मामला जम गया और फिर वही तय हुआ जैसा मैं कह रहा था , पर मैं समझ गया वल्लभ भवन में काम की गति धीमी जरूर है पर लगे रहो तो कामयाबी मिल ही जाती है ।

मंत्रालय में काम की गति धीमी जरूर पर लगे रहो तो कामयाबी