
Gold Jewellery: विरासत में मिले सोने पर लगेगा कैपिटल गेन टैक्स
यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप गोल्ड कितने साल के बाद बेच रहे हैं।
New Tax Rules: सोने की बिक्री से उत्पन्न कोई भी आय, चाहे ज्वेलरी, सिक्के या बार के रूप में हो, कैपिटल गेन के तहत टैक्सेशन के अधीन है. अगर आप सोना या इसके आभूषण खरीदते है तो आपको वस्तु एंड सेवा कर (GST) देना पड़ता है। वहीं, गोल्ड को बेचने पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है। अगर गोल्ड को तीन वर्षों से अधिक समय तक रखा जाता है, तो इसे लॉन्ग-टर्म कैपिटल एसेट माना जाता है, और लाभ पर इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20% पर टैक्स लगाया जाता है.नए नियमों के तहत सोने को लॉन्ग-टर्म कैपिटल एसेट के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए होल्डिंग पीरियड को 36 महीने से घटाकर 24 महीने कर दिया गया है। इसका मतलब है कि अगर आप सोने को 24 महीने से अधिक समय तक रखते हैं, तो उस पर LTCG लगेगा।
Gold Jewellery: लोगों के घरों में गोल्ड की ज्वैलरी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ट्रांसफर होती है। रिटायर व्यक्तियों के लिए विरासत में मिले सोने के आभूषण बेचने पर लागू होने वाले नए टैक्स नियमों को समझना थोड़ा जटिल हो सकता है, हालांकि यह बहुत जरूरी है। आयकर अधिनियम, 1961 के तहत भले ही सोना विरासत में मिला हो, उसे पूंजीगत संपत्ति माना जाता है। और इसे बेचने से होने वाले किसी भी लाभ पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है।
जब आप विरासत में मिले सोने के आभूषण बेचते हैं, तो उस पर होने वाले मुनाफे को पूंजीगत लाभ माना जाता है। इस लाभ पर टैक्स लगता है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि सोने की खरीद की तारीख और लागत उस मूल मालिक की मानी जाती है, जिससे आपको यह विरासत में मिला है। उदाहरण के लिए, अगर आपको 1981 में अपनी मां से गहने मिले और उन्हें यह उनके माता-पिता से विरासत में मिले थे, तो आप या तो मूल मालिक की वास्तविक लागत या 1 अप्रैल 2001 तक का उचित बाजार मूल्य (FMV), जो भी अधिक हो, उसे अपनी खरीद लागत मान सकते हैं। 2001 और 2005 में मिले गहनों के लिए भी लागत आपकी मां या दादी (यदि वह मूल मालिक थीं) से ही मानी जाएगी।




