
World Tribal Day : विश्व आदिवासी दिवस पर आलीराजपुर के साथ मथवाड़ में होगा विशेष आयोजन!
अलीराजपुर से ‘मीडियावाला’ के स्टेट हेड विक्रम सेन की रिपोर्ट
Alirajpur : जिला मुख्यालय पर विश्व आदिवासी दिवस को भव्य रूप से मनाने की तैयारियां सांस्कृतिक एवं सामाजिक ‘जयस’ संगठन के नेतृत्व में जोरों पर हैं। प्रशासन भी अपनी ओर से इस आयोजन की सफलता हेतु हर संभव प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में, सोंडवा क्षेत्र के मथवाड़ व आसपास के डूब एवं पहाड़ी गाँव जो दूरस्थ होने के साथ-साथ विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अक्सर जिला स्तरीय आयोजनों का हिस्सा नहीं बन पाते—इस बार एक ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बनने जा रहे हैं। रानी काजल माता की पावन छांव में, माथिया भील की कर्मभूमि ग्राम मथवाड़ में 9 अगस्त 2025 शनिवार को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

संस्कृति के रंगों में रंगा आयोजन
स्थानीय पटेल, सरपंच एवं जनप्रतिनिधियों की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया है कि कार्यक्रम में डीजे पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे। सभी आदिवासी भाई-बहन पारंपरिक वेशभूषा में ढोल, मांदल, बांसुरी, पीहा, पावली के साथ शामिल होंगे, ताकि सांस्कृतिक परंपरा का संरक्षण और संवर्धन हो सके। जनसभा में सांस्कृतिक धरोहर, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज की एकता एवं मजबूती जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श होगा। समाज के गणमान्य व्यक्तियों एवं बुद्धिजीवियों का मार्गदर्शन मिलेगा। नृत्य-गीत और सांस्कृतिक रैली: पारंपरिक वाद्यों और लोकनृत्यों के साथ क्षेत्र की समृद्ध लोक परंपराओं का प्रदर्शन भी किया जाएगा।

आमंत्रण और संदेश
आयोजक मंडल ने क्षेत्र के सभी लोगों से स्नेह पूर्ण आमंत्रण देते हुए अपील की है कि वे परिवार सहित इस विशेष आयोजन में सम्मिलित होकर विश्व आदिवासी दिवस की गरिमा और उत्सव को और भी भव्य बनाएं। आइए, अपनी जड़ों से जुड़े संस्कृति को संवारें और समाज को एकजुट करें। माथिया भील आलीराजपुर जिले के एक आदिवासी राजा थे जो 14वीं-15वीं शताब्दी में वहां राज करते थे। माथिया भील और आलिया भील, दोनों ही आसपास के क्षेत्र के महत्वपूर्ण शासक थे। इन्हीं के नाम पर कालांतर में क्रमशः मथवाड़ और आलीराजपुर नाम रखा गया हैं।
गूंजेंगे ये जोशीले नारे
1. जुड़ें अपनी जड़ों से मनाएं विश्व आदिवासी दिवस!
2. संस्कृति हमारी पहचान, एकता हमारी जान!
3. ढोल-मांदल की थाप पर गूंजेगी मथवाड़ की पहचान!
4. गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!
5. धरती, जंगल, संस्कृति यही है हमारी शक्ति!
सांस्कृतिक संदेश
हमारी जड़ें हमारी पहचान हैं। ढोल-मांदल की थाप, बांसुरी की मधुरता, और पारंपरिक वेशभूषा, यही हमारे अस्तित्व की आत्मा है।
इस विश्व आदिवासी दिवस पर अपनी परंपराओं को संवारें, अपनी एकता को मजबूत करें और आने वाली पीढ़ियों को सांस्कृतिक विरासत सौंपें।





