
Narrator Aniruddhacharya’s Statement on Girls: क्या कहना है लेखकों का ,आइये जानते हैं !
परिचर्चा-इंदौर लेखिका संघ इंदौर ,पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति,भोपाल का संयुक्त आयोजन
कथावाचक अनिरुद्धाचार्य लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर दिए गए बयान को लेकर घिर गए हैं। उनके बयान पर विवाद गहरा गया है।अनिरुद्धाचार्य ने कथित तौर पर कहा है कि 25 वर्ष की अविवाहित लड़कियों का चरित्र ठीक नहीं होता। लड़कियों की शादी 14 वर्ष की उम्र में ही कर देनी चाहिए। इससे वे परिवार में अच्छे से घुल मिल जाएंगी। उनके बयान को लेकर महिलाओं में भारी आक्रोश है.कथावाचक अनिरुद्धाचार्य का लड़कियों पर बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ । आरोप लगाया जा रहा है कि कथावावक के बयान से 20 से 26 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं की गरिमा और भावनाएं आहत हुई हैं। कहा गया कि अमर्यादित टिप्पणी एक आध्यात्मिक व्यक्ति को शोभा नहीं देती। इसी विषय को लेकर इंदौर लेखिका संघ और पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा विचार विमर्श रखा गया। अनिरुद्धाचार्य जी का विवादित बयान कितना अनुचित है? क्या इस तरह की भाषा ओर विचार उचित है ? आपकी क्या राय है इस विषय पर दोनों तरह के विचार प्राप्त हुए। हालाकिं उनसे सहमत विचारों की संख्या बहुत कम है ,उनके बयान की निंदा और अमर्यादित आचरण के विरोध के स्वर अधिक दिखे। क्या कहना है लेखन कर्म से जुड़े लोगों का ,आइये जानते हैं ——
–सम्पादन -डॉ. स्वाति तिवारी
1 .किसने अधिकार दिया ऐसे व्यापारी को, कि ऊल-जुलूल भाषा में समाज को दिशा निर्देशित करे ?
वंदना दुबे, धार।
कितनी अजीब बात है कि अपनी असभ्य भाषा को सही सिद्ध करने अनिरुद्धाचार्य स्वयं की तुलना भगवान कृष्ण से कर रहे हैं।प्रिय भाषा से राज्य, धर्म और तन का शीघ्रता से नाश होता है ।किंतु अनिरुद्धाचार्य न तो कृष्ण है, न सचिव है,न वैद्य है और न ही गुरु है बल्कि वो तो एक पेशेवर कथावाचक है ; एक दिन की कथा की फीस एक से तीन लाख और सात दिन की भागवत् कथा की फीस दस से पंद्रह लाख लेते हैं। किसने अधिकार दिया ऐसे व्यापारी को, कि ऊल-जुलूल भाषा में समाज को दिशा निर्देशित करे ?
यदि समाज में कुछ प्रतिशत युवा अमर्यादित हो रहे हैं तो क्या सभ्य लोग उन्हें सुधारने स्वयं मर्यादा तोड़ कर निचले स्तर की भाषा का प्रयोग करने लग जाएंगे ?फिर दोनों में अंतर क्या रहेगा ?अमार्यादित लोगों को सुधारने, क्या यही एकमात्र अमर्यादित तरीका शेष रहा है?लोगों का ध्यान बंटाने और अपनी बात को सही सिद्ध करने, फिल्मों की गंदगी का उदाहरण देकर खुद को सच्चा समाज सुधारक बताना कदापि उचित नहीं।
जिस दिन अनिरुद्धाचार्य अपनी कथा मुफ्त में करना शुरू कर देंगे उस दिन से शायद उन्हें समाज सुधारक माना भी जा सके पर फिलहाल तो वो एक व्यापारी कथावाचक हैं और चर्चा में बने रहने के लिए ऐसे ऊटपटांग बयान दिया करते हैं।
इन्हें नियंत्रित करने की शुरुआत यहीं से होना चाहिए। महिलाओं को कथावाचकों के ऐसे प्रायोजित आयोजनों में जाना कर बंद कर देना चाहिए।महिला श्रोताओं की बढ़ती संख्या ही इन कथावाचकों के हौसले को बुलंद कर रही है ।
2 .बयान निंदनीय भी और निम्नस्तर का भी,मन हुआ जाकर इनके मुंह पर टैप चिपका दूँ !
डॉ. रजनी भंडारी
मैं तो कि सी महानुभावों का नाम भी नहीं लेना चाहती और उनके नाम को लिखकर उनकी पब्लिसिटी भी नहीं करना चाहती आप सभी समझ गई है मैं किनकी बातो और बयानों पर अपनी राय देने जा रही हूँ
किसी भी कथा वाचक के मुंह से हजारों महिलाओं की उपस्थिति में महिला के लिए कही गई ओछी बाते और असभ्य विचार सुनकर मन हुआ जाकर इनके मुंह पर टैप चिपका दू इनको किसने ये अधिकार दिया की ये बोले – मुंह मार कर आई – मैं इनसे पूछना चाहती हूँ क्या पुरुष दूध का धुला है पुरुष चाहे तो आठ जगह मुंह मारे वह तो सच्चा ही रहेगा क्यो भाई ? ये समाज दोहरे माप दंडों से निर्धारित नहीं किया जा सकता कथा सुन रही महिलाओं का भी एक तरह से अपमान ही किया गया भाषा का स्तर कहीं गई बात को किस हद तक निदनीय बना सकता है ये उस दिन हमने देखा
यहाँ हम गिरते हुये और बदलते हुए सामाजिक ताने बाने की बात नहीं कर रहे और न ही लड़कियों की जीवन शैली और पहनावे पर लिख रहे है हम एक कथा वाचक धर्म गुरु – तथाकथित के द्वारा दिए गए अशोभनीय निंदनीय निकृष्ट बयान और उनके विचारो पर अपनी आपत्ति प्रदर्शित कर रहे है इनकी कथाओ का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए
कम से कम समाज इन के द्वारा इन धर्म के ठेकेदारों से इस भाषा और स्त्री के अपमान की उम्मीद नहीं लगाता
सही विचार या सही गलतियों को भी यदि निम्न भाषा का प्रयोग कर बताया जाए – वह भी से घोषित गुरुओं द्वारा तो उनको न तो भविष्य में सुना जाएगा और न ही उनको फॉलो किया जाएगा इतना तो तय है.
3 .नारी अस्मिता पर प्रहार करते पंडित अनिरुद्धाचार्य के वचन घृणित और निंदनीय है।
डॉ. शारदा मिश्रा
नारी अस्मिता पर प्रहार करते पंडित अनिरुद्धाचार्य के वचन निंदनीय है।अति प्रतिष्ठा, मान सम्मान और धन दौलत व्यक्ति का सबसे पहले विवेक नष्ट करतो है।रामचरितमानस में उल्लेख है प्रभुता पाय काहि मद नाहि।
भागवत कथा करते-करते समाज सुधारक का दायित्व निभाते अनिरुद्धाचार्य अपनी वाणी का संयम खो बैठे। उन्हें लगने लगा मैं जो कहूंगा वह सभी समाज के हित में होगा भूल गए बातन हाथी पाई, बातन हाथी पांव।
हमारी बोली ही है जो हमें हाथी भी दिलवा सकती है और हाथी के पांव के नीचे भी कुचला सकती है।पंडित जीअति हर चीज की बुरी होती है।आपने स्वयं ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। आप और भी कोई उदाहरण दे सकते थे। महिला मुंह मारती है। बताइए क्या अकेली महिला मुंह मार सकती है फिर पुरुष के लिए आपका मौन विवादों को जन्म तो देगा ही।
बहुत सी बातें आवरण में ढकी ही अच्छी लगती हैं इस प्रकार सामूहिक रूप से उसकी चर्चा करके आपने उन निर्दोष महिलाओं को भी आहत किया है जो संयमित जीवन जी कर अपनी कर्तव्य का निर्वाह कर रही है।आपके बोल वचन घृणित और निंदनीय है।
4 . ‘नारी स्वतंत्रता की सीमा’ निधारित करने की कुचेष्टा की गयी है.
डॉ. शिवाकांत मिश्रा
किसी भी व्यक्ति या वक्तव्य का समर्थन या विरोध व्यक्ति के बौद्धिक स्तर या विचारधारा से निर्धारित होता है।मूल तथ्य यह है, कि ‘नारी स्वतंत्रता की सीमा’ निधारित करने की कुचेष्टा की गयी है।
कोई भी प्रबुद्ध महिला या प्रबुद्ध व्यक्ति ऐसे कथावचकों के समर्थन में नहीं आया। मीडिया ने भरपूर आलोचना की है।आध्यात्मिक का अर्थ होता है एक ऐसा व्यक्ति जिसमें संत के लक्षण हों वाणी और व्यवहार में सादगी हो, सरलता हो और विनम्रता हो. सबके लिए सम्मान का भाव रखता हो, सही बातें कहता हो, लोगों को सही राह दिखाता हो.
निष्कर्षतः कह सकते हैं, कि ऐसे प्रयास असफल ही होंगे।
5 .जो कुछ हुआ वह असहिष्णुता की पराकाष्ठा है-
राधवेन्द्र दुबे
दुनिया के सभी धर्मों में स्त्री की महानता का राग अलापा जाता है, परंतु यथार्थ जीवन में अहं, धर्म ,इज्जत ,मर्यादा और जाति आदि का नाम लेकर इन्हीं कोड़ों से उन्हें पीटा जाता है ।दरअसल पुरुष स्त्री से भयभीत है, परंतु वह भय को छुपाने की प्रक्रिया में अत्यधिक असहिष्णु हो जाता है। जो कुछ हुआ वह असहिष्णुता की पराकाष्ठा है।
6 .अमर्यादित भाषा का प्रयोग कथावाचक के द्वारा स्वयं अपनी ही मर्यादा का उल्लंघन है
ऊषा सक्सेना-मुंबई
नारी का सम्मान करने के स्थान पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग वह भी किसी संत महापुरुष कहे जाने वाले कथावाचक के द्वारा स्वयं अपनी ही मर्यादा का उल्लंघन है ।जो स्वयं अपनी वाणी को मर्यादित भाषा में प्रयोग न कर सके उसे हम क्या कहेंगे सोचनीय प्रश्न है ? क्या यह बात एक पुरुष के नैतिक चरित्र को रेखांकित नहीं करती।
नारी की निजता और स्वयं पुरुष का आचरण दोनों ही एक तुला पर नहीं तौले जा सकते । जिनको मुंँह मारने की आदत हो वह तो अपने घर की महिलाओं को भी नहीं छोड़ते ।उनके लिये तो नारी केवल एक भोग की वस्तु है और कुछ नहीं चाहे किसी के भी आगे परोस दो । आज की नारी पुरुष के चरित्र का आकलन करने उतरी है । याद आती है भागवत की वह कथ जिसमें अप्सरायें एक तालाब में जल क्रीड़ा करती स्नान कर रही थीं ।शुकदेव जी निकले वह फिर भीस्नान करती रहीं।जब उनके पीछे उनके पिता व्यास जी निकले तो उन्होंने उन्हें देख कर झट से अपने वस्त्र पहन लिये जब व्यास जी ने उनसे इसका कारण पूंछा तो उन्होंने कहा कि आपका पुत्र तो निर्विकार भाव से चला जा रहा था उसने हम पर दृष्टिपात भी नही किया ।आप तो हमें देख रहे थे ।आपकी दृष्टि से बचने के लिये ही हमें यह वस्त्र धारण करने पड़े ।अब यह हमारे बाबाओं पर निर्भर है कि वह कथावाचन कर रहे हैं या महिलाओं पर दृष्टिपात कर अपनी आंखें सेंकते है। धन्यवाद। दोष किसका है आज की नारी पुरुष की परीक्षा ले रही है कि वह कितने पानी में है ।
7 .मर्यादित भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता वह संत/ आचार्य कहलाने के योग्य ही नहीं है.
आशा जाकड़
महिलाओं ने ही बाबाओं और कथा वाचकों को इतना बढ़ावा दिया है। कुछ महिलाएं बड़ी खुश होती है बाबाओं का सम्मान करने में, उनके पैर छूती है और उनको कपड़े इत्यादि देती है उनकी बातें सुनती है। चाहे घर के लोगों का वह सम्मान नहीं करें बाबाओं का सम्मान करने में शान समझती हैं।
अनिरुद्ध आचार्य जी ने जो उदाहरण दिया है कि कृष्ण ऐसा कहते हैं कि तू नपुंसक है तो उन्होंने किसको कहा ,अर्जुन को कहा अर्जुन उनका कौन था?वह साला था उनका।
सच पूछा जाए तो इन संतों ने अपनी दुकान अपना बिजनेस चला लिया है जो औरतों को बेवकूफ बनाया करती हैं मीठी- मीठी बातें करके ।कभी उलटी सीधी बातें करके वह विवादों में भी आ जाते हैं लेकिन लोग है कि उनका विरोध नहीं करते हैं महिलाएं ही अगर विरोध करें और जाना छोड़ दें उनके प्रवचन सुनने के लिए तो ये संत लोग सही रास्ते पर आ जाए और सही भाषा ,मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करें।
लोगों में ऐसी भेड़ चाल है। एक नए कथावाचक के पास एक रुद्राक्ष के लिए लाखों की संख्या में लोग पहुँच जाते हैं सारा रास्ता जाम कर देते हैं । लोग पढ़-लिखकर भी अभी भी अंधविश्वास में ही जी रहे हैं।
किस प्रकार कहता है कि मुंह मार के आई है तो उसी समय आचार्य/संत से महिला को प्रश्न करना चाहिए कि आपका क्या तात्पर्य है। और जो संत मर्यादित भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता वह संत/ आचार्य कहलाने के योग्य ही नहीं है।
8 .बाबा , कथा वाचक और ज्योतिष ये तीनों खूब महिलाओं को बनाते हैं पागल और खूब लूटते हैं।
प्रभा तिवारी,इंदौर
मुझे तो समझ नही पड़ता महिलाएं सबसे ज्यादा इन कथावाचकों को सुनने क्यों जाती है ओर पंडितों के पास जैसे ये भगवान हो गए ऐसा विश्वास करती है।अनिरुद्धचार्य को सुन केसे लिया जबकि पढ़ी लिखी महिलाएं भी बैठी थी ।ये आज-कल के कथावाचक सिर्फ अपनी पब्लिसिटी और पैसा कमाने के सिवाय कुछ नहीं है ।एक धंधा बना लिया है कोई सनातन सनातन के नाम से भीड़ इकट्ठी कर मशुहूर हो गए ।हर कोई शंकराचार्य बना बैठा है।बाबा , एक कथा वाचक और एक ज्योतिष ये तीनों खूब महिलाओं को बनाते हैं पागल और खूब लूटते है. ……..
9 .इस बयान का विरोध करने पर घर में ही कोपभाजन का शिकार हुई –
माधुरी सोनी मधुकुंज,अलीराजपुर
कहना सिर्फ इतना ही हे कि कथावाचकों ने हर घर की महिलाओं की मन:स्थिति को इस कदर बदला है कि में अभी केवल घर की बड़ी,छोटी,प्रिय के टोटके ही सुन रही,भाभी ऐसा करना…वैसा करना…
फलाना ढिकाना।मतलब आस्था और विश्वास में टोटके के साथ हिन्दू बेटियों के प्रति यदि कथावाचक घटिया बातें कथा के दौरान भरे पंडाल में बोलकर तालियों से प्रशंसा पाते हैं वो बहुत गलत है।आस्था में स्त्रियां सदा ही समर्पित होती आई परन्तु आजकल हर स्त्री को ज़रूरत लगती हे एक विश्वसनीय साथ की जिनसे वे अपने जीवन पथ की अच्छी बुरी बात को कह सकें।टोटकों से शुरुवात आस्था आज अनर्गल प्रपंच में विस्तार पा रही स्त्रियोचित जो कि गलत है।आज यह बात जब देवरानी से कही मैंने की धर्म की बात अच्छी हे पर ऐसे विचार यदि कथावाचक कहते हैं तो घटिया है… मेरे इतना कहते ही कोपभाजन का शिकार मैं ही बनी।
10 .पुरूष या महिला किसी के लिए भी गलत भाषा , अश्लील इंगित सर्वथा निंदनीय है.
मीता चटर्जी,भोपाल
अनिरुद्ध आचार्य कथावाचक हैं कथा मनोरंजक शैली में सुनाते हैं,लोग आकर्षित होते हैं।कुछ लोग उन्हें अपनी समस्या बताते हैं और विश्वास रखते हैं कि उनकी समस्या का समाधान मिलेगा यह उनकी आस्था है । जिसका सम्मान किया जाना चाहिए, किन्तु अगर देखा जाए तो इन समस्यायों का समाधान समाजशास्त्री या मनोचिकित्सक अच्छे-से दे सकते हैं, लोगों में जानकारी का आभाव है।
पुरूष या महिला किसी के लिए भी गलत भाषा , अश्लील इंगित सर्वथा निंदनीय है। लोगों को स्वयं निर्धारित करना होगा कि किसी व्यक्ति को दूसरे को जज करने का अधिकार देना चाहिए कि नहीं।अनिरुद्धाचार्य के बयान को अनुचित तो क्या ही कहें क्योंकि जब किसी कृत्य की पीड़ा अंतर मन को प्रभावित करती है तब शब्द ही अभिव्यक्ति का माध्यम बनते हैं और उस कृत्य के निहितार्थ शब्दों को मुलम्मा चढ़ाना या पॉलिश करना बहुत मुश्किल होता है। हमें यह तो स्वीकारना होगा की कुछ ही प्रतिशत युवतियों का नैतिक पतन तो हो रहा है। प्रतिदिन हम कभी सुनकर, कभी पढ़कर हमारा मुंह अवाक्- सा खुला रह जाता है। जब काम अनुचित ही है तो क्या उचित ढूंढना। यह तो तत्काल प्रतिक्रिया होती है।यह मेरे अपने विचार हैं।
11 .बयान को अनुचित तो क्या ही कहें क्योंकि जब किसी कृत्य की पीड़ा अंतर मन को प्रभावित करती है.
विनीता तिवारी ,इंदौर
अनिरुद्धाचार्य के बयान को अनुचित तो क्या ही कहें क्योंकि जब किसी कृत्य की पीड़ा अंतर मन को प्रभावित करती है तब शब्द ही अभिव्यक्ति का माध्यम बनते हैं और उस कृत्य के निहितार्थ शब्दों को मुलम्मा चढ़ाना या पॉलिश करना बहुत मुश्किल होता है। हमें यह तो स्वीकारना होगा की कुछ ही प्रतिशत युवतियों का नैतिक पतन तो हो रहा है। प्रतिदिन हम कभी सुनकर, कभी पढ़कर हमारा मुंह अवाक्- सा खुला रह जाता है। जब काम अनुचित ही है तो क्या उचित ढूंढना। यह तो तत्काल प्रतिक्रिया होती है।यह मेरे अपने विचार हैं।
12 .अनिरूद्धाचार्य जी ने इसी ओर ध्यान आकर्षित किया है सिर्फ उन्होंने गलत शब्दों का चयन किया है.
अचला गुप्ता,इंदौर
आधुनिक काल में नारी स्वतंत्र है, अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए , अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए ।इसका सबसे बड़ा कारण है नारी का शिक्षित और आर्थिक रूप से सक्षम होना।लेकिन आधुनिकता को अंगीकार कर नारी ने अपनी स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठाया है।हम अपने आसपास देख रहे हैं, शालीनता को पिछड़ापन समझने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।अधिक उम्र में विवाह हो रहे हैं। लिव इन रिलेशनशिप जैसी व्यवस्था ने समाज को दूषित कर दिया है। अनिरूद्धाचार्य जी ने इसी ओर ध्यान आकर्षित किया है सिर्फ उन्होंने गलत शब्दों का चयन किया है।
आज भी हमारे परिवारों में संस्कार है, हमारी संतानें संस्कारी हैं।सभी को एक हीनज़रिए से देखना,एक ही तराजू में तौलना गलत है।नारी ने अवश्य अपना रूप बदला है पर नारीशक्ति आज भी समाज की धुरी है।

13 .भारतीय संस्कृति शुद्ध तो रह ही नहीं पाएगी,क्योंकि एक और हम बेटियों को बेटा मानकर हर तरह से माहौल दे रहे हैं।
प्रभा जैन इंदौर
पाश्चात्य संस्कृति का चोला कुछ अंश पूरे समाज ने पहन रखा है।भारतीय संस्कृति शुद्ध तो रह ही नहीं पाएगी,क्योंकि एक और हम बेटियों को बेटा मानकर हर तरह से माहौल दे रहे हैं आगे बढ़ने का।दुनिया बहुत छोटी हो गई है,,और बच्चे चारों और फैल गए है।तो संस्कृति में मिलावट आना स्वभाविक ही है।शादियां भी विदेशी विभीन्न जन एक दूजे से कर रहे हैं,,तो बदलाव आना निश्चित ही है।या तो हम हमारी संस्कृति को बचाने के लिए बिल्कुल स्ट्रिक्ट हो जाएं।पर वो होता नहीं है।फिल्मी माहौल,विदेशों की संस्कृति का लेप धीरे धीरे चढ रहा है और बढ़ता जा रहा है।ये बिल्कुल निश्चित है।समय का बदलाव पूरे वातावरण को बदल के रख देता है ये सभी को।दिख रहा है।हमे हमारी संस्कृति को बचाना है तो अनर्गल बातों से नहीं किन्तु ,आनेवाली पीढ़ी को अच्छा बुरा समझाना हमारा पालक गण एवम गुरुजनों का कर्तव्य बनता है।शेष तो जिसको जो करना है वही करेगा।,,मैं जो करूं तुम्हें क्या?..मेरी मर्जी,,ये शब्द भी सुनने को मिल सकते हैं।आज के मॉडर्न दौर में।खैर ,भाषा का उचित उपयोग तो हमेशा ही आवश्यक है।क्योंकि हर जीव (बेटे,बेटी)के लिए नकारात्मक भाषा फीट नहीं हो सकती है, इससे किसी के भी सम्मान को ठेस पहुंचना स्वाभाविक है।कुछ अपवाद रूप हों ,तो भी उसे सभी को इंगित हो ऐसी भाषा का उपयोग न होना चाहिए।
14.धार्मिक प्रवचनकर्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह संवेदनशील और सम्मानपूर्वक भाषा का प्रयोग करे.
सुषमा शुक्ल
यह विवाद वाकई बहुत गंभीर प्रतीत होता है। अनिरुद्धाचार्य के हालिया विवादित बयान महिलाओं को ‘वैश्या लेकिन खुद को सती सावित्री कहना’ जैसा बयान देना , बॉलीवुड पर तीखी टिप्पणी और बाल विवाह संबंधी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टिप्पणियाँ—सभी ने व्यापक आलोचना को जन्म दिया हैं ।
मेरी व्यक्तिगत राय में, एक धार्मिक प्रवचनकर्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह संवेदनशील और सम्मानपूर्वक भाषा का प्रयोग करे, विशेषकर जब महिलाओं, परिवार और समाज जैसे भावनात्मक मुद्दों की बात हो। ऐसे विवादास्पद, संवेदनहीन और आहत करने वाले बयानों से न केवल सामाजिक विभाजन बढ़ता है बल्कि धार्मिक आस्था की गरिमा भी क्षतिग्रस्त होती है। इसलिए, ये टिप्पणियाँ न केवल अनुचित हैं, बल्कि जिम्मेदार भूमिका में खड़े व्यक्ति के लिए बेहद निराशाजनक भी हैं।
इन बयानों ने महिलाओं के सम्मान और अधिकारों को ठेस पहुँचाई है, और इससे उत्पन्न सामाजिक असंतुलन एवं नेतृत्व की भूमिका पर प्रश्न गंभीरता से उभरते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसी भाषा और दृष्टिकोण निंदनीय हैं—एक शिक्षक, मार्गदर्शक या कथावाचक से अपेक्षित मर्यादा और सहिष्णुता से कोसों दूर।
अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की मध्य प्रदेश इकाई द्वारा काव्य चौपाल का आयोजन
शुभ संकल्प समूह द्वारा बाल गंगाधर तिलक जयंती पर साहित्यक संगोष्ठी सम्पन्न





