
14 SECONDS HORRIFYING VIDEO:14 सेकंड का वीडियो सरकार और समाज दोनों पर जोरदार तमाचा है!
रंजन श्रीवास्तव की विशेष रिपोर्ट
यह बॉलीवुड के किसी मसाला फिल्म की शूटिंग का हिस्सा नहीं बल्कि एक वास्तविक घटना है- एक 21 वर्षीय मूक और बधिर लड़की सड़क पर अपराधियों से अपनी अस्मत और जान बचाने के लिए भागते हुए और अपराधी कम से कम 3-4 बाइक पर लगभग सुनसान सड़क पर उसका पीछा करते हुए.
अंततः लड़की का प्रयास असफल होता है और लड़की के भाई द्वारा दर्ज कराये गए प्रथम सूचना रिपोर्ट के अनुसार लड़की को एक सुनसान जगह ले जाकर गैंग रेप का शिकार बनाया जाता है.
मूक और बधिर होने के नाते लड़की अपनी सहायता के लिए चिल्ला भी नहीं सकती थी. लड़की सदमे में है और एक अस्पताल में उसका इलाज हो रहा है. घटना 11 अगस्त की रात का है जो किसी दूरदराज गांव में नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के शक्ति केंद्र लखनऊ से 150 किलोमीटर दूर बलरामपुर शहर के बीचों बीच घटित हुआ और जो सीसीटीवी फुटेज है 14 सेकण्ड्स का वह कहीं और नहीं बल्कि पुलिस अधीक्षक के बंगले के सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ.
जाहिर है लड़की जब अपराधियों के चंगुल से भागकर बचने का प्रयास कर रही थी तो वह पुलिस अधीक्षक के बंगले के सामने से भी गुजरती है पर उस पूरे इलाके कोई पुलिस कर्मी मौजूद नहीं था. अगर होता तो यह घटना नहीं होती.
दो आरोपी इस घटना के बाद पकड़े गए हैं जिनकी उम्र 21 और 22 वर्ष हैं.

हर वीभत्स बलात्कार या सामूहिक बलात्कार या बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या की घटना के बाद मीडिया और विपक्ष शोर शराबा मचाता है. सरकार अपना बचाव करने में व्यस्त हो जाती है. अधिकारियों द्वारा दिए गए आंकड़ों को सरकार का कोई प्रवक्ता पढ़ देता है जिसमें यह बताया जाता है कि पूर्व में विपक्षी दल के शासन के दौरान अपराध चरम सीमा पर थे और जब से यह वर्तमान सरकार आयी है तरह तरह के कदम उठाये गए जिससे अपराधियों और अपराध पर अंकुश लगा है और ऐसी रेप या गैंगरेप की घटनाएं अपवादस्वरूप देखी जानी चाहिए.
इस राजनैतिक कर्मकांड में और आरोप प्रत्यारोप के बीच वो सारे जरूरी कारक पीछे छूट जाते हैं जिनकी वजह से महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि होती रहती है और महिलायें अकेले कहीं भी जाने में असुरक्षित महसूस करती हैं.
यह इसके बावजूद है कि निर्भया काण्ड के बाद पूरे देश में भूचाल आ गया था तथा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न कदम उठाये जाने की घोषणा की गयी थी.
यह भी गौरतलब है कि बलरामपुर की घटना किसी ऐसे समय घटित नहीं हुई जब अमूमन सड़कों पर अकेले चलना किसी महिला के लिए असुरक्षित समझा जाए और वो भी उत्तर प्रदेश में जहाँ नियमित अंतराल में महिलाओं की सुरक्षा और बेहतर कानून व्यवस्था होने का ढोल सरकार पीटती रहती है. घटना का समय लगभग 8 बजे रात्रि का है और जगह शहर का वह स्थान जो किसी भी महिला के लिए सबसे सुरक्षित समझी जानी चाहिए. पुलिस अधीक्षक का आवास जहाँ चौबीसों घंटे सशस्त्र पुलिस बल मौजूद रहता है उससे बेहतर सुरक्षित जगह किसी महिला के लिए और क्या मानी जानी चाहिए?
वस्तुतः चाहे शार्ट एनकाउंटर हो या ‘लॉन्ग” एनकाउंटर जब तक सरकारें और प्रशासन सभी कारकों पर एक साथ काम नहीं करेंगे तो ऐसी घटनाओं को रोकना मुश्किल है.

जिस सुलभता से आजकल नशा- चाहे वह शराब हो या सूखा नशा- युवाओं को उपलब्ध है वह समाज के लिए खतरनाक है. इसी तरह पोर्नोग्राफी भी बहुत ही सरलता से इंटरनेट पर उपलब्ध है सरकार की तमाम तरह की घोषणाओं और कदम उठाने के बाद भी. हर हाथ में स्मार्ट फ़ोन है और इसी तरह पोर्नोग्राफी की उपलब्धता भी. ओटीटी प्लेटफार्म पर नग्नता और हिंसा के अतिरेक से भरे दृश्य इस शराब /सूखा नशा और पोर्नोग्राफी के कॉकटेल में युवाओं के दिमाग पर पागलपन के नशे जैसा काम करते हैं.
समाज में संयुक्त परिवार की अवधारणा ख़त्म सी हो गयी है और पेरेंट्स के पास इतना समय या इच्छाशक्ति नहीं है कि वे बच्चों को इन कुप्रभावों से बचाने की हर कोशिश में लगे हों.
हर बात का ठीकरा सरकार, पुलिस और प्रशासन के माथे फोड़ना भी ठीक नहीं है. वस्तुतः चाहे पोर्नोग्राफी हो या नशा और इसका माध्यम कुछ भी हो इसको रोकना सरकार के अकेले वश का नहीं है.
बच्चों के माता पिता, सामाजिक संस्थाएं, शिक्षण संस्थाएं, जनप्रतिनिधि, धर्मगुरु तथा समाज के हर तबके के लोगों को एक सामूहिक प्रयास करना होगा तभी महिलाओं तथा बच्चों के खिलाफ होने वाली घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आएगी.
पर यह सामूहिक प्रयास भी तभी संभव होगा जब सरकारों की इस दिशा में प्राथमिकता स्पष्ट हो. अगर सत्ता को बनाये रखना ही सर्वोच्च प्राथमिकता होगी, उसको बनाये रखने में अपराधियों की मदद चुनावों में ली जाएगी, आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग विधान सभा और संसद में प्रवेश पाते रहेंगे, भ्रष्टाचारियों को सम्मान दिया जायेगा और धनबल और बाहुबल लोकतंत्र में हावी रहेगा तो स्थिति में किसी भी तरह के सकारात्मक बदलाव की आशा रखना व्यर्थ है.





