
संघ से संबंधों पर भड़कने से पहले राहुल गांधी कांग्रेस का रिकॉर्ड क्यों नहीं पढ़ते?
आलोक मेहता
स्वंतंत्रता दिवस पर लाल किले से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शताब्दी वर्ष का उल्लेख करते हुए संगठन की राष्ट्र सेवा की सराहना करते हुए उल्लेख किया। साथ ही भारत के महापुरुषों और बलिदान देने वालों का स्मरण करते हुए डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी को विनम्र श्रद्धांजलि भी दी। इस बात पर कांग्रेस और इस समय लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विरोध व्यक्त करते हुए अनर्गल आरोप लगा दिए। यह तो सड़क का विरोध है , लेकिन इससे पहले उनके पास इस बात का क्या जवाब है कि स्वतंत्रता दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर वह अपने पूर्वजों और लोकतान्त्रिक की परम्परा के अनुसार लाल किले के समारोह में क्यों नहीं पहुंचे ? गणतंत्र दिवस पर भी वह नहीं दिखे। ये समारोह किसी पार्टी का नहीं होता है। फिर राहुल गाँधी ने कांग्रेस और संघ तथा हिंदुत्व के प्रबल समर्थक नेताओं से रहे रिश्तों और सहायता का कांग्रेस का रिकॉर्ड देखने किसी से समझने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
राहुल गांधी को यह जानकारी क्यों नहीं मिली कि भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी ) के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत की राजनीति में महान नेता थे । वे राष्ट्रवादी प्रखर हिन्दू नेता और विद्वान शिक्षाविद थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहली कैबिनेट (अंतरिम सरकार के बाद स्वतंत्र भारत की पहली मंत्रिपरिषद) में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।15 अगस्त 1947 को जब स्वतंत्र भारत की पहली मंत्रिपरिषद बनी, तो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उद्योग और आपूर्ति मंत्री बनाया गया।आधुनिक भारत के निर्माण की नींव रखने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। जम्मू कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग और पूरी तरह भारतीय संविधान के तहत रखने 370 समाप्त करने के लिए जीवन का बलिदान तक किया। फिर नेहरुजी , लालबहादुर शास्त्री , इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी , नरसिंह राव , प्रणव मुखर्जी ने समय समय पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं से मुलाकातें की , उनका सहयोग लिया। न केवल देश पर संकट और युद्ध के समय ही नहीं बल्कि सत्ता के लिए भी संघ का समर्थन लिया। राजनीतिक पूर्वाग्रहों से संघ पर प्रतिबन्ध लगाए और क़ानूनी आधार पर ही प्रतिबन्ध हटाने पड़े।
इसे संयोग कहें या सौभाग्य कि मुझे दिल्ली में 1971 से पत्रकारिता करने के अवसर मिले। 71 से 75 तक मैं हिन्दुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी का संवाददाता था। तब से लाल किले के समारोह से लेकर संसद की रिपोर्टिंग और सभी तथा दलों संगठनों के शीर्ष नेताओं से मिलता रहा हूँ। हिन्दुस्थान समाचार के प्रमुख संपादक और निदेशक श्री बालेश्वर अग्रवाल , सहयोगी संपादक एन बी लेले और ब्यूरो प्रमुख रामशंकर अग्निहोत्री संघ के प्रमुख प्रचारक रहे थे। इन सबने मुझे अधिकांश कांग्रेस नेताओं से मिलवाया। एजेंसी को कांग्रेस सरकारों से ही समाचार सेवाएं देने के लिए नियमित रूप से फंड मिलता रहा। फिर मैं कांग्रेस समर्थक बिरला परिवार या जैन परिवारों के प्रकाशन संस्थानों हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स समूह आदि में रहा। इसलिए इंदिरा गाँधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक
प्रधान मंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों या संघ भाजपा या सोशलिस्ट कम्युनिस्ट नेताओं से मिलने बात करने के अवसर मिले और उनकी अंदरूनी राजनीति समझने को समझने के अवसर मिले हैं। इसलिए कह सकता हूँ कि समय समय पर कांग्रेस ने संघ का कितना लाभ उठाया और संघ के नेताओं से कितना संपर्क सम्बन्ध रखा।
राहुल गांधी को नेहरु , इंदिरा गांधी युग की बात पता नहीं हो सकती है , लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेता और उनके बनाए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के 7 जून 2018 को नागपुर में राष्ट्रीय स्ववयं सेवक संघ के शिविर में शामिल होने की खबर तो मिली होगी । इस अवसर पर प्रणब मुखर्जी ने कहा कि “राष्ट्रभक्ति ही भारत का मूल तत्व है।”उन्होंने संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार की प्रशंसा करते हुए उन्हें महान देशभक्त बताया। हेडगेवार का नाम लेकर कहा कि वे भारत माता की सेवा में समर्पित थे और उन्होंने युवाओं को संगठित करने का काम किया।उन्होंने आरएसएस मंच से यह संदेश दिया कि विचारधारा अलग हो सकती है, लेकिन देशहित और राष्ट्रीय एकता सर्वोपरि है।
यह कोई नई बात नहीं थी, क्योंकि पूर्व में कई कांग्रेस नेताओं का संघ से संपर्क सम्बन्ध रहा था—जैसे बी. आर. अम्बेडकर (1939), महात्मा गांधी (1934), और जयप्रकाश नारायण। महात्मा गांधी ने संघ के शिविर की अनुशासन, जातिवाद का अभाव और सरल जीवनशैली की सराहना की। डॉ. अम्बेडकर ने संघ शिविर में सभी झिझक के बिना समान व्यवहार देखकर प्रशंसा की। जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को समाज परिवर्तन में सक्षम, देशभक्ति से प्रेरित संगठन बताया था। चीन या पाकिस्तान युद्ध के संकट काल या प्राकृतिक विपदा भूकंप , बाढ़ आदि में संघ के नेताओं स्वयंसेवकों का सहयोग लेने , पूर्वोत्तर राज्यों में विदेशी ताकतों से बचाव के लिए हिन्दू हिंदी को बढ़ाने के लिए कांग्रेस सरकारें सहायता लेती रही हैं।
राहुल गांधी आजकल बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन पर बहुत आश्रित हो रहे हैं। शायद उन्हें ठाकरे परिवार के कट्टर हिंदूवादी विचारों और बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय लेने के दावों की जानकारी नहीं है या जानकर अनजान है , क्योंकि सत्ता के लिए सब जायज है। बाल ठाकरे ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का खुलकर विरोध नहीं किया। उस समय शिवसेना कांग्रेस सरकार के साथ नरम रुख रखती थी।
विपक्ष के कई नेता जेल में थे, पर ठाकरे और उनकी पार्टी पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। इसीलिए उन्हें उस दौर में “सत्ता समर्थक” माना गया। 1980 के दशक में भी शिवसेना और कांग्रेस (इंदिरा गांधी और बाद में संजय गांधी गुट) के बीच स्थानीय स्तर पर समझौते हुए ताकि मराठी मानुस और हिन्दुत्व के एजेंडे को राजनीतिक लाभ मिल सके। इंदिरा गांधी और बाल ठाकरे के बीच सीधा संवाद और संबंध थे। इंदिरा गांधी ठाकरे को कभी-कभी समर्थन भी देती थीं क्योंकि शिवसेना वामपंथी और कम्युनिस्ट ट्रेड यूनियनों के खिलाफ लड़ रही थी, जो उस समय कांग्रेस के लिए भी चुनौती थे। शिवसेना और आर.एस.एस. दोनों की विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित थी।ठाकरे शुरू से हिन्दू पहचान की राजनीति करते रहे और उन्होंने खुलकर कहा कि “मैं हिंदुत्ववादी हूँ। 1980 के दशक में, बाल ठाकरे और शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया।1990 के दशक तक यह संबंध मजबूत हुआ और मुंबई नगर निगम व महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी-शिवसेना की साझेदारी RSS की छत्रछाया में और गहरी हो गई। बाल ठाकरे कहते थे = “मैं गर्व से कहता हूँ कि मैं हिंदू हूँ और हिंदुत्व की राजनीति करता हूँ।”उन्होंने कहा था कि यदि हिंदुत्व पर हमला हुआ, तो शिवसेना तलवार की तरह खड़ी होगी। 1980 के दशक में धीरे-धीरे शिवसेना का मुख्य एजेंडा हिंदुत्व और मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध बन गया।1989–90 के बाद उन्होंने बीजेपी और आरएसएस के साथ मिलकर खुलकर राम मंदिर आंदोलन का समर्थन किया। बाबरी मस्जिद विध्वंस (6 दिसम्बर 1992) पर बाल ठाकरे ने खुलेआम दावा किया कि बाबरी विध्वंस में शिव सैनिकों का हाथ था। उनका बयान था: “अगर मेरे शिवसैनिकों ने बाबरी मस्जिद तोड़ी है, तो मुझे इस पर गर्व है।” ठाकरे ने यहाँ तक कहा:“अगर वहां शिव सैनिक न होते तो बाबरी ढांचा खड़ा रहता ? इस पृष्ठभूमि में राहुल गांधी और उनके अध्यक्ष खरगे सारे रंग ढंग परंपरा और विचार भूलकर केवल लालू यादव, तेजस्वी यादव की जातिगत राजनीति या विदेशी ताकतों के जाल में फंसकर सभी संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता ख़त्म करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ?





