राज-काज: सम्मान लेने की बजाय आइना दिखा गए ये मीसाबंदी….

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राज-काज: सम्मान लेने की बजाय आइना दिखा गए ये मीसाबंदी….

दिनेश निगम ‘त्यागी’

सम्मान लेने की बजाय आइना दिखा गए ये मीसाबंदी….

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– स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जो कभी नहीं हुआ होगा, वह इस बार हो गया। दमोह में आयोजित मुख्य समाराेह में तब असहज स्थिति बन गई जब एक मीसाबंदी संतोश भारती ने प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के हाथों सम्मान लेने से इंकार कर दिया और समारोह छोड़कर चले गए। भारती ने कहा कि मैंने 40 साल पहले हाउसिंग बोर्ड से जमीन खरीदी थी। रजिस्ट्री कराने गया तो अफसर ने 5 हजार की रिश्वत मांगी। रिश्वत नहीं दी तो रजिस्ट्री नहीं हुई। मैंने हाईकोर्ट से केस जीता। इसके बाद भी रजिस्ट्री नहीं हो रही। पहले कांग्रेस का शासन था तो लोग कहते थे कि भाजपा शासन में रजिस्ट्री हो जाएगी। अब 25 साल से भाजपा की सरकार है, लेकिन आज भी न्याय नहीं मिल रहा है। भारती ने कहा कि मैंने कभी किसी मंच पर जाकर सम्मान नहीं लिया। समाराेह में मेरे जाने का मकसद न्याय पाना था। भारती ने दावा किया कि मैं देश का इकलौता ऐसा व्यक्ति हूं जो तीन बार मीसाबंदी में जेल गया। उन्होंने कहा कि मैं सम्मान का भूखा नहीं हूं। राजनीति कोई धंधा नहीं है। हमारे आंचल में रोजगार, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं होनी चाहिए, वर्ना यह सम्मान पाखंड है। भारती ने मंत्री को दिए आवेदन में लिखा है कि ‘आज 15 अगस्त को मीसाबंदियों का किए जा रहे सम्मान से मैं अपने आपको अलग कर रहा हूं।’ इस तरह एक मीसाबंदी ने मौजूदा व्यवस्था को आइना दिखा दिया।

 *दौड़ से बाहर हो गए प्रदेश अध्यक्ष पद के ये दावेदार….!* 

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– राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। ऐसा ही कुछ हुआ कांग्रेस द्वारा घोषित जिलाध्यक्षों की सूची में। इसे डिमोशन कहा जाए या प्रमोशन, इसमें उन वरिष्ठ नेताओं को भी जिलाध्यक्ष की जवाबदारी सौंप दी गई जो पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के प्रबल दावेदार हैं। इनमें एक हैं दिग्विजय सिंह के बेटे पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह और दूसरे युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे पूर्व मंत्री ओमकार सिंह मरकाम। जयवर्धन अपने पिता दिग्विजय की राजनीतिक विरासत संभालने तैयार हैं। कहा जाता है कि उनकी वजह से ही इतिहास में पहली बार कमलनाथ की सरकार में सभी मंत्री केबिनेट बनाए गए थे। मंत्रिमंडल में न कोई राज्यमंत्री था और न ही उप मंत्री। दिग्विजय की कोशिश जयवर्धन को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की है, लेकिन गुना के जिलाध्यक्ष पद की जवाबदारी दे दी गई। ओमकार सिंह कांग्रेस का आदिवासी चेहरा हैं। उनका नाम दोनों पदों मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के लिए चल चुका है। वे युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं लेकिन उन्हें भी डिंडोरी जिले का अध्यक्ष बना दिया गया। इस तरह जयवर्धन और ओमकार फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं। हालांकि यह पद जल्दी खाली होने की संभावना नहीं है क्योंकि जीतू पटवारी राहुल गांधी कैंप के हैं। वे संगठन को मजबूत करने की दिशा में मेहनत भी कर रहे हैं।

 * ये ‘सृजन’ की बजाय कांग्रेस के ‘विसर्जन’ पर आमादा….* 

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– राहुल गांधी की सोच के मुताबिक कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने के उद्देश्य से ‘सृजन’ अभियान चलाया था। कहा जा रहा है कि इस अभियान के तहत ही कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने जिलाध्यक्ष पद के लिए 71 हीरे खोज कर निकाले हैं। पर नामों की घोषणा होते ही बवाल मच गया। पार्टी के कुछ नेता कांग्रेस का विसर्जन करने पर आमादा हो गए। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के खास देवास जिले के गौतम बंटू गुर्जर ने कांग्रेेस की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए पार्टी के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी पर आरोप लगाया कि वे पंजाब में कांग्रेस का विसर्जन करके आए हैं, अब मप्र में भी यही करने वाले हैं। बंटू देवास जिलाध्यक्ष पद के दावेदार थे। बुरहानपुर के हेमंत पाटिल ने इस्तीफा देकर कहा कि निर्वाचित पदाधिकारियों के समर्थन के बावजूद मेरी अवहेलना की गई। मजेदार बात यह है कि पूर्व विधायक विपिन वानखेड़े आगर मालवा में सक्रिय हैं। यहां से ही विधायक रहे हैं लेकिन इन्हें इंदौर ग्रामीण का जिलाध्यक्ष बना दिया गया। इन्होंने दावेदारी भी प्रस्तुत नहीं की थी। विधायकों को जिलाध्यक्ष बनाने का खास विरोध है। सतना में सिद्धार्थ कुशवाहा और उज्जैन में महेश परमार के खिलाफ बगावत जैसे हालात हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये विधानसभा का टिकट लेकर विधायक बनेंगे और संगठन में भी इनका ही कब्जा रहेगा तो अन्य नेता क्या करेंगे? जयर्वधन सिंह को गुना जिलाध्यक्ष बनाए जाने पर समर्थक नाराज हैं। उनका कहना है कि जयवर्धन का कद घटा दिया गया। यह बवाल कई जिलों में और बढ़ सकता है।

 * जिला अध्यक्ष पद को ‘पॉवरफुल’ बनाने की कोशिश….!* 

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– कांग्रेस द्वारा घोषित प्रदेश के जिलाध्यक्षों की सूची हालांकि पार्टी के बड़े नेताओं के प्रभाव से मुक्त नहीं है फिर भी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की मंशा के अनुसार जिलाध्यक्ष के पद को पॉवरफुल बनाने की कोशिश की गई है। राहुल कई अवसरों पर कह चुके हैं कि वे कांग्रेस में जिलाध्यक्ष और ब्लाक अध्यक्ष के पद को सबसे पॉवरफुल बनाना चाहते हैं। संगठन में उनकी सहमति और मर्जी के बिना कोई निर्णय नहीं होगा। इसके लिए उन्होंने संगठन सृजन अभियान शुरू किया और इसकी शुुरुआत गुजरात से की। इसके बाद इसे प्रदेश में लागू किया गया। इसके तहत केंद्र द्वारा भेजे पर्यवेक्षकों ने प्रदेश के पर्यवेक्षकों के साथ प्रभार वाले जिलों का दौरा किया। उन्होंने रायशुमारी कर अध्यक्ष के लिए नाम छांटे और पैनल तैयार किए। इसके बाद घोषित सूची को देख कर लगता है कि वरिष्ठ नेताओं को जिलाध्यक्ष पद की जवाबदारी देकर इसे पॉवरफुल बनाने की कोशिश की गई। इसीलिए पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह और ओमकार सिंह मरकाम जैसे विधायक जिलाध्यक्ष बनाए गए। इनके साथ एक दर्जन से ज्यादा विधायक और पूर्व विधायकों के नाम सूची में हैं, जबकि अब तक विधायक अपनी मर्जी का जिलाध्यक्ष बनाने की कोशिश करते थे। प्रदेश के अिधकांश जिलों में असरदार नेताओं को दायित्व सौंप कर पद को असरदार बनाने का प्रयास हुआ है।

 * बदजुबानी, हरकतों से बाज नहीं आ रहे ये माननीय….* 

BJP and Congress

– भाजपा-कांग्रेस दोनाें दलों में कुछ विधायकों की न जुबान पर लगाम हैं और न ही आचरण सुधर रहा है। इनमें एक हैं रीवा जिले के सेमरिय सीट से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा। ये माननीय पहले भाजपा में हुआ करते थे। इन्होंने अपमानजनक भाषा की सारी मर्यादाएं ही लांघ डालीं। उन्होंने रीवा के एसपी को अर्द्धनारीश्वर की संज्ञा देते हुए कह दिया कि रीवा एसपी न तो पुरुष हैं और न ही महिला। उनका 25 से 30 लाख महीना शराब ठेकों से पला-बंधा है। उनका एक ही काम है कि कुर्सी न बदल जाए, इसलिए उप मुख्यमंत्री के चरण बंदन करो और रीवा को जलने दो। जिसकी इज्जत लूटनी है लूट लो, जिसे गोली मारना है मार दो, लेकिन इनकी इज्जत और कुर्सी बची रहना चाहिए। क्या ऐसी भाषा बाेलने वाले माननीय कहलाने लायक हैं। भाजपा के रतलाम से विधायक मथुरालाल डामर का आचरण देखिए। इन्होंने अपनी विधायक निधि से महाविद्यालय को 10 लाख का फर्नीचर दिलाया तो इसमें अपने फोटो और नाम लिखवा दिए। सार्वजनिक हित के कार्यों में प्रचार की इतनी भूख कहां तक उचित है? कम से कम शिक्षा के मंदिर को तो बख्श देना चाहिए। भाजपा के एक माननीय ने आजादी को ही कटी-फटी कह दिया। ये कुछ उदाहरण हैं लेकिन ऐसे माननीय काफी तादाद में हैं जो आए दिन अपने आचरण और बयानों के कारण अपने दलों की छीछालेदर करा रहे हैं।

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