विपक्ष को डर है कि… लोकतंत्र समृद्ध होगा या संकट के बादल मंडराएंगे…

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विपक्ष को डर है कि… लोकतंत्र समृद्ध होगा या संकट के बादल मंडराएंगे…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

राज्यों में विधायकों की खरीद-फरोख्त या यूं कहें कि दलबदल कानून का कथित दुरुपयोग या सत्ताधारी दल के विधायकों का दबाव-प्रभाव में इस्तीफा देकर सरकार गिराकर दूसरे दल की सरकार बनवाकर उसमें शामिल होने जैसे मामलों ने लोकसभा में विपक्ष के सदस्यों में डर भर दिया है। और जिस विषय को सत्तारूढ़ दल कानूनी और संवैधानिक दायरे में ला रहा है, उसके बाद विपक्ष के सामने लाचारी महसूस करने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। विपक्षी सदस्यों का मानना है कि जिस तरह दिल्ली में जेल में रहते हुए शान से मुख्यमंत्री बने रहे अरविंद केजरीवाल ने केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार को ठेंगा दिखाकर राज किया था, उस बेचैनी को दूर करने के लिए सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की तरफ से यह विधेयक लाया गया है। और इस बात में कोई संशय भी नहीं है कि अगर विधेयक पारित हो गया तो फिर विपक्ष जितना लाचार होगा, सत्तारूढ़ दल उतना ही सशक्त नजर आएगा। और तब मुख्यमंत्री, मंत्री और जिम्मेदार केंद्र सरकार की मंशा के खिलाफ एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। और इसीलिए विधेयक के पारित होने के बाद 20 अगस्त 2025 को लोकसभा में हंगामा बरपा है। इसीलिए पीएम, सीएम के गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी और 30 दिन तक जेल में रहने के बाद उन्हें पद मुक्त करने वाले विधेयक का कांग्रेस ने विरोध किया है। विपक्ष को डर है कि इस विधेयक के आने के बाद लोकतंत्र सशक्त होगा या फिर उस पर संकट के बादल मंडराएंगे। केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां कहीं फिर मुख्यमंत्री, मंत्री या जिम्मेदारों को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती नजर तो नहीं आएंगी।

सरकार ने लोकसभा में जो बिल पेश किया है, वह तीन विधेयकों का एक सेट है, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और केंद्र के अलावा राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों के लिए गंभीर अपराधों के मामले में अनिवार्य रूप से इस्तीफा देने या पद से हटाने का प्रावधान किया गया है। यह उन मामलों में होगा जिसमें पांच वर्ष या उससे ज्यादा जेल की सजा का प्रावधान हो और आरोपी लगातार 30 दिन गिरफ्तारी या नजरबंदी में बिताए। लेकिन, अगर वे जेल से रिहा हो जाते हैं तो उनके तत्काल उसी पद पर बहाली का भी प्रावधान है। कांग्रेस सांसद और राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस बिल ( 130वां संविधान संशोधन ) के विरोध में तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए इसे कठोर और अलोकतांत्रिक बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस बिल को भ्रष्टाचार-विरोधी बताना सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए है। वे एएनआई से बोलीं, ‘मैं इसे बहुत कठोर मानती हूं, क्योंकि यह सभी चीज के खिलाफ है। इसे भ्रष्टाचार विरोधी समाधान बताना लोगों की आंखों पर पर्दा डालने की तरह है।’ उन्होंने यहां तक दावा किया कि ‘कल को आप एक सीएम पर किसी भी तरह का केस लगा देंगे, बिना दोषी सिद्ध हुए 30 दिनों तक गिरफ्तार करेंगे और उसे सीएम पद से हटना होगा। यह पूरी तरह से असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।’

इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारी हंगामे और नारेबाजी के बीच तीन बिल पेश किए थे। इसके तहत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के गंभीर अपराध के आरोप लगने और 30 दिनों तक जेल जाने की स्थिति में उन्हें उनके पद से हटाया जा सकेगा। बिल पेश करते ही विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया और बिल की कॉपी फाड़कर अमित शाह के सामने उछाल दी। सदन में हंगामा इतना अधिक बढ़ गया कि मार्शल तुरंत शाह की तरफ गए और उनके लिए सुरक्षा घेरा बना लिया। तीन विधेयक – संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक – संसद में पेश किए गए, विपक्ष ने हंगामा करते हुए बिल की प्रतियां फाड़ दीं।

हालांकि बिल की कॉपियां फाड़ना कतई उचित नहीं है लेकिन जब राहुल गांधी अपनी ही सरकार में बिल की कॉपी फाड़कर आक्रोश जता सकते हैं तो कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष में बैठकर तो यह काम कर ही सकती है। पर यह बात अवश्य है कि विधेयक की मंशा पर सवाल उठाना गलत भी नहीं है। और जो डर विपक्ष को भयभीत कर रहा है, वह भी उचित माना जा सकता है। अगर पिछले 11 साल से केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार विपक्ष के मन में इतना विश्वास भरने में सफल होती कि कानून सबके साथ न्याय करेगा तो शायद आज यह नौबत नहीं आती। आज यह डर विपक्ष के मन में नहीं होता और तब लोकतंत्र भी ऐसे विधेयक से समृद्ध महसूस करता और संकट के बादल दूर-दूर तक मंडराते नजर नहीं आते…। फिलहाल तो यही सही है कि ऐसे विधेयक से विपक्ष को डर है कि… लोकतंत्र समृद्ध नहीं होगा और संकट के बादल मंडराएंगे…।