कहानी : नाम क्या है

862
User comments

कहानी : नाम क्या है

मधूलिका श्रीवास्तव

“बली नानी बली नानी!आपका नाम क्या है?”चार साल के कबीर ने 96 ,97 उम्र से ज़्यादा की परनानी से पूछा।
‌ “मेरा नाम… मेरा नाम बड़ी नानी, मैं तुम्हारी मम्मी की मम्मी की भी मम्मी हूँ।”
‌ “अले नानी जैछे मेला नाम कबील है, मम्मा का नेहा है वैछे….” कबीर ने अपनी तोतली जुबान में फिर पूछा।
“अरे मेरे राजा हम लोगों का नाम तो बदलता रहता है। माँ बापू ने जो नाम रखा था वो तो मुझे याद भी नहीं है।”
“अले नानी कोई अपना नाम भी भूलता है? आप मेरी मम्मी से पूछ लेना वो छब जानती है।” कह कर वह भाग गया , पर बड़ी नानी को उलझन में डाल गया।
वे सोच में पड़ गयीं कि मेरा नाम क्या रखा था अम्मा बाबू ने? नौ साल में शादी हो गई थी ग्यारह में गौना! ससुराल पहुंचते ही बहू रानी नाम हो गया। साल भर बाद बड़े देवर की शादी हुई तो बड़ी बहू रानी हो गई, धीरे धीरे छह बहुयें आ गईं। फिर से नामकरण हुआ और मायके के शहर या गांव के नाम से जानी जाने लगीं । हम हुए इलाहाबाद वाली, हमारे बाद वाली गोरखपुर वाली, नागपुर वाली, उन्नाव वाली, झांसी वाली और जबलपुर वाली। सिलसिला यहीं नहीं ठहरा भौजी,जिज्जी,ताई ,चाची,माई,मामी आदि-आदि! सबके साथ उपनाम इलाहाबाद वाली तो जुड़ा ही।
आज नाम बदलते बदलते दादी नानी से बड़ी नानी दादी हो गया।आज कबीर के नाम पूछने पर अपनी याददाश्त पर बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आ रहा कि असल नाम क्या था । स्कूल कभी गये नहीं अंगूठा ही पहचान बना।
“क्या हुआ नानी किस सोच में डूबी हैं।” नेहा ने अंदर आते हुए पूछा।वे कुछ नहीं बोलीं।
” क्या हुआ नानी, तबीयत तो ठीक है, कुछ तकलीफ़ है क्या?” नेहा ने चिंतित होकर पूछा।
“नेहा बिटिया हमारा नाम क्या है ?” उन्होंने हुलस कर पूछा।
“नानी ”
“अरे नहीं, मेरा असली नाम? जो अम्मा बाऊ जी ने रखा था।”

Screenshot 20230829 155259 Google

“वो मुझे कैसे पता होगा वो तो आप ही बता सकती हैं।”
“अरे मुझे याद नहीं आ रहा, जा अपनी मां को बुला,शायद उसे ‌पता हो।”
“मम्मी मम्मी… जरा इधर तो आइए,देखिए नानी क्या पूछ रहीं हैं ?” नेहा ने वहीं से अपनी मम्मी को आवाज दी।
“क्या हुआ क्यों शोर मचा रही हो,अम्मा ठीक तो हैं?”
“नानी तो ठीक हैं पर वो अपना नाम जानना चाहती हैं।”
“नाम जानना चाहती हैं… इलाहाबाद वाली है न उनका नाम।”
“ओह मम्मी! ये भी कोई नाम हुआ , असल नाम जैसे मेरा नेहा, आप का मीरा…एसा ही नाम?”
मीरा सोचने लगी।अरे हाँ! अम्मा का नाम तो कभी पूछा ही नहीं, न कभी जानने की ज़रूरत पड़ी।
“अम्मा नाम तो मुझे भी नहीं पता… पर आज आप को अपने नाम की क्या सूझी ?”
“तुम्हारा नाती ही पूछ रहा था,बस तभी से उलझन में फंसीं हूँ।”
“ओह अम्मा! ये कबीर भी न… छोड़िए न अम्मा, बेकार परेशान हो रही हैं।” कह कर मीरा बाहर चली गई।
अम्मा उस समय तो चुप हो गईं पर अब हर आने जाने वाले से पूछतीं
तुम्हें मेरा नाम मालूम है। ज्यादातर लोग कहते, ‘नानी या अम्मा’
अब उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।वे अपना नाम जानना चाहती थीं। मीरा तो मीरा सभी घर वाले उनके सवालों से परेशान थे।मीरा के पति राहुल बोले

यह भी पढ़े -Story : भाग्य विधाता 

“क्यों अम्मा के साथ का कोई तो होगा ?”
“अम्मा लगभग 100 साल की होने जा रही हैं।उनके साथ का तो कोई भी नहीं होगा अब।” मीरा परेशान होकर बोली ।
“पर अम्मा बहुत बेचैन हैं,कैसे भी अपना नाम जानना चाहती हैं। क्यों उनके भाई बंधु, नाते रिश्तेदार दोस्त कोई तो होगा।” राहुल ने फिर पूछा ।
“नहीं मुझे तो कोई याद नहीं आ रहा।अब अम्मा भी तो सौ बरस की होने आईं ।पता नहीं कोई है भी कि नहीं।”
“अच्छा परेशान मत हो। मैं फ़ैक्ट्री से किसी को गाँव भेजता हूँ। कोई तो मिलेगा?”
“हाँ ये ठीक रहेगा पर अभी अम्मा से कुछ मत कहना।”मीरा ने कहा ।
अगले ही दिन राहुल ने एक आदमी रामेश्वर को गाँव से किसी बुजुर्ग को लाने के लिए गाड़ी भेजी।रामेश्वर पूरे गाँव के हर घर में गया पर बात नहीं बनी । अम्मा के साथ का तो कोई था ही नहीं अब। वह बहुत परेशान होकर गाँव की चौपाल पर बैठ गया। सोचने लगा ये नाम का भी अच्छा चक्कर है, अब इस उमर में नाम जान कर क्या कर लेंगी। 1980 चल रहा है यानी 1880 ,85 में जन्मी होंगी, पिछली सदी में, लगता है मुझे लौट ही जाना चाहिए।
तभी वहाँ से एक बुजुर्ग निकले।एक अजनबी को वहाँ बैठे देख वे अपना कौतूहल नहीं रोक सके।
“काये भैया इते काहे बैठे हो, कोई झंझट हुई गवा का?”
“नहीं नहीं दादा… हम अपने साब की अम्मा का नाम जानने आये रहे। अब 100 साल की अम्मा के साथ का कोई कहाँ से मिलेगा? “
“किसकी बात कर रहे हो, हम ही बता देहीं।”
“अरे वाह तब तो आप ज़रूर जानते होंगे।” कहकर उसने अम्मा का पूरा ब्योरा दिया।
“अरे कहीं तुम रामबेटी की बात तो नहीं कर रहे, लक्ष्मण प्रसाद काका की बिटिया… ग्वालियर में किसी बड़े ख़ानदानी के इहाँ ब्याही रही।”
“अरे दादा तुम तो सब कुछ जानते हो… तुम कौन हो।” रामेश्वर की बाँछे खिल गईं।
“अरे हम तो गाँव में ही रह गये ,एक बार लक्ष्मण काका के साथ जिज्जी के इहाँ गये रहे घर का… हवेली रही।” दादा की आँखों में मानो सौ दिये जल उठे।
“तुम कौन हो ये तो बताओ। तुम्हारा क्या रिश्ता है उनसे ?” रामेश्वर थोड़ा खिसिया गया।
“अरे रिश्ते में तो ना थे। पड़ोसी रहे आये हमसे तो बहुत बड़ी रहीं पर जब मोटर से गाँव आती तो हम सब बच्चे चिल्लाते हुए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ते रहे।”
“तुम्हे पक्का पता है न , उनका नाम रामबेटी ही है।” रामेश्वर ने फिर पूछा ।
“हाँ बाबू !हम ग़लत काहे बोलेंगे ?”
“तो हमारे साथ चलोगे ? नानी को उनका नाम बताने …
“काहे नहीं चलेंगे, जिज्जी से मिले तो बरसों गुजर गये।जाने हमें पहचानें के नाही।“
“काहे नहीं पहचानेंगी? आप तैयारी कर लो कल सुबह शहर चलेंगे फिर आप को वापस पहुँचा भी देंगे।” कह कर रामेश्वर धर्मशाला में आ गया ।
अगले दिन वह ग्रामीण सुबह सुबह ही आ गया। रामेश्वर उनको ले कर शहर की ओर चल दिया।रास्ते भर वह अम्मा की बातें करता रहा।
“अच्छा दादा तुम्हारी क्या उमर होगी ?”
“ उम्र तो पता नहीं पर पिछले सदी में हमरा जनम भया रहा ।1890,95 बे में ।
“तभी अम्मा के बारे में सब जानते हो… है न ।”
“हमरे लिए तो अजूबा रहीं, ये लंबी गाड़ी में आतीं, गहनों से लदी फंदी बहुतई सुंदर लगे थीं।”
उसकी बातों से कब रास्ता कट गया,पता ही नहीं चला। रामेश्वर ने राहुल जी को पहले ही फ़ोन पर बता दिया था।
जब वे पहुँचे तो राहुल और मीरा ने कहा आप उनका नाम लेते हुए ही अंदर जाना।
वे बाहर से ही आवाज़ लगाते हुए बोले
“रामबेटी जिज्जी रामबेटी जिज्जी… हम हरिया तुमरे गाँव से आये रहे।” कह कर अम्मा के पैर पकड़ लिए।
“अरे-अरे तुम कौन हो? ये रामबेटी कौन है?”
“काहे जिज्जी… अपना नाम ही भूल गईं, वो तो अच्छा हुआ जो रामेश्वर भैया हमें ले आये।तुमने पहचाना,हम तुम्हारे पड़ोसी नारायण साहू के बिटवा हैं। लक्ष्मण काका एको बार हमको तुम्हरी सासरे ले गये रहे।तुम हमको बहुत लाड़ लड़ायो ,हमका बहुत सी मिठाई दिये रहीं और अपने बिटवा की शरट भी दी थीं।” कह कर वह रो पड़ा ।
“अरे हरिया तुम तो बुढ़ा गये।क्या सच में हमारा नाम रामबेटी ही है तुम्हे याद है ?”
“याद काहे न होगा इतना भी बुड्ढा नहीं हुआ हूँ।” कह कर वह हंस पड़ा।अम्मा भी हंस पड़ी और चिल्लाने लगी
“कबीर कबीर… मेरा नाम रामबेटी है रामबेटी। बुलाओ न कबीर को उसने मेरी पहचान दिला दी।” कहते कहते वे रो पड़ीं।
“‘रामबेटी रामबेटी’ कितना प्यारा नाम था मेरा ! आज कबीर के कारण मुझे पहचान मिल गई ,और उन्होंने कबीर को खींच कर गले लगा लिया।

363091835 241462325479354 4144450485760583095 nमधूलिका श्रीवास्तव