
मैंने फिल्म देखी –
Review of ‘Dhadak 2’:’धड़क 2’दलित लड़के और उच्च जाति की लड़की की प्रेम कहानी
नीलम सिंह सूर्यवंशी,इंदौर
साहित्य और सिनेमा दोनों ही समाज का दर्पण होते हैं।यह एकदम सही है। हाल ही में आई फ़िल्म ‘धड़क२’ को हमारे भोपाल में फ़िल्माया गया है।इस फ़िल्म का निर्देशन शाजिया इक़बाल ने किया है । उन्होंने हर एक सीन का फिल्मांकन बहुत बारीकी से किया है ।सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी फ़िल्म के मुख्य किरदार में नज़र आए हैं ।
यह फ़िल्म दलित लड़के और उच्च जाति की लड़की की प्रेम कहानी है जो इस कहानी की आड़ में जाति व्यवस्था को दर्शता है ।
यह फ़िल्म उस घुटन भरी सच्चाई को बया करती है जो आज भी हमारे समाज में व्याप्त घिनौनी मानसिकता है ।
सिद्धांत ने अपने किरदार ‘ निलेश ‘ को बहुत जीवंत बना कर पर्दे पर उतारा है ,जो देखकर हरकिसी को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा आज भी होता है? पर अफ़सोस आज भी हमारे समाज में ऐसा होता है।
बहुत से लोगो ने उस घृणा को महसूस किया होगा जो उच्च वर्ग के कुछ लोग बिन बोले निम्न वर्ग से करते हैं।इस पूरी फ़िल्म में इस बात को सिद्धांत ने बिना कुछ कहे बहुत प्रभाव शाली ढंग से दर्शाया है।अपने नाम के साथ सरनेम ना बताने की झिझक,अपनी पहचान को छुपाने की झिझक जो एकदम सही है । उत्तर भारत में हर एक दलित व्यक्ति अपने नाम के साथ कुमार लिखता है क्यों ?सिर्फ़ यही एक वजह है।

हर एक व्यक्ति ने उस हीन भावना को महसूस किया होगा जो उसकी जाति के आधार पर उसको परिभाषित करती है। उसको अपने उस समाज से नफ़रत होती है जिसमे उसने जन्म लिया है,जबकि किस जाति में पैदा होना, वो उसके हाथ में नहीं है।
स्कूल कॉलेजों में आरक्षण के नाम पर भेदभाव , शोषण करना और कहना कि तुम्हें तो ये मुफ्त में मिली हुई सीट है। लेकिन ये तो सिर्फ वो लोग ही जानते हैं कि इस एक सीट की क़ीमत उनकी कितनी ही पिछली पीढ़ियो ने चुकाई होगी ।
“मरने और लड़ने में से किसी एक को चुनना हो तो, तुम लड़ना चुनना “यह बहुत प्रभाव पैदा करने वाला सीन है
फ़िल्म में जिस तरह से बदलाव दिखाया गया है ,वैसा ही बदलाव लाना होगा ।चाहे जाति के आधार पर हो या अमीरी,गरीबी के चलते हो।और उस अंतर और अंतर की वजह से पैदा हुई घृणा को खत्म करना होगा तभी समाज में बदलाव आएगा।
तृप्ति डिमरी का किरदार शुरुवात में एक कॉलेज जाने वाली साधारण सी लड़की का है जो समझदार है ,लेकिन वो उस गहराई से नीलेश की समस्या को नहीं समझ पाती,पर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है वो अपने किरदार को बहुत प्रभावशाली बनाती है।जो निलेश और उसके समाज की तकलीफे भी महसूस करती है, उसके लिए आवाज़ भी उठाती है।
फ़िल्म में कहीं कहीं संवाद बहुत ही प्रभावशाली हैजो फ़िल्म पर बहुत गहरी छाप छोड़ते हैं।फ़िल्म के पहले भाग में कसावट की कमीं लगी है लेकिन आगे चलकर अपना फ्लो पकड़ लेती हैं ।बहुत अच्छी कहनी के साथ सजिया इक़बाल ने फ़िल्म को बनाया है ।हर किसी को फ़िल्म देखना चाहिए।
नीलम सिंह सूर्यवंशी,इंदौर
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