
Story of Archana : अर्चना की कहानी शातिर दिमाग की उपज, वीडियो में दिखा कि कैसे इटारसी स्टेशन से काली साड़ी पहनकर निकली!
Indore : अर्चना तिवारी की गुमशुदगी और फिर अचानक यूपी-नेपाल बॉर्डर से बरामद होने की गुत्थी अब पूरी तरह से खुल गई। पुलिस जांच में जो परतें सामने आई हैं, उसने साफ कर दिया है कि यह कोई अपहरण या हादसा नहीं, बल्कि खुद अर्चना की बनाई गई साजिश थी। अब इस केस का एक अहम वीडियो सामने आया है जिसने पूरी पोल खोल दी है। कटनी की रहने वाली और इंदौर में रहकर जज की तैयारी कर रही 29 वर्षीय ने खुद को गायब करने के लिए जो किया वो सब सामने आ गया।
सामने आए एक वीडियो में अर्चना काली साड़ी पहने, चेहरा घूंघट से ढके और अपने दोस्त तेजेंद्र का हाथ पकड़े हुए इटारसी रेलवे स्टेशन से बाहर निकलती नजर आ रही हैं। फुटेज से साफ हो गया कि पूरी साजिश कितनी सोची-समझी थी।
7 अगस्त की रात अर्चना नर्मदा एक्सप्रेस से इंदौर से रवाना हुई थी. परिवार को उसने बताया था कि वे राखी पर कटनी जा रही हैं। लेकिन, वहां तक पहुंची ही नहीं। अगले दिन से उनका फोन बंद हो गया और परिवार ने भोपाल के रानी कमलापति जीआरपी थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी। इस दौरान सामने आए इटारसी स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज में अर्चना तिवारी अपने दोस्त तेजेंद्र के साथ नजर आती हैं। फुटेज में अर्चना ने काले रंग की साड़ी पहन रखी है और चेहरा कपड़े से ढका हुआ है। वहीं तेजेंद्र बड़ी तेजी के साथ उसे प्लेटफॉर्म से बाहर ले जाता दिखाई देता है।
गुमशुदगी की स्क्रिप्ट मोबाइल फेंककर बनाई
पुलिस जांच में सामने आया कि अर्चना ने गुम होने की योजना पहले से बना रखी थी। वकील होने के नाते उसे कानून और जांच प्रक्रिया की बारीकियां पता थीं। उन्होंने सोचा कि अगर मामला जीआरपी में दर्ज होगा तो उस पर गहन जांच नहीं होगी। इसी सोच के तहत इटारसी के पास जंगल में अर्चना ने अपना मोबाइल फोन फेंक दिया, ताकि लोकेशन ट्रेस न हो सके। यही नहीं, उन्होंने ट्रेन से उतरने के बाद ऐसा रास्ता चुना जहां टोल टैक्स और सीसीटीवी कैमरों की संभावना न हो।
दो दोस्तों की मदद से ड्रामा रचा
पुलिस अधीक्षक (रेलवे) राहुल कुमार लोधा ने बताया कि इस पूरे घटनाक्रम में अर्चना के दो दोस्तों शुजालपुर निवासी सारांश और नर्मदापुरम का ड्राइवर तेजेंद्र की अहम भूमिका रही। सारांश से अर्चना की पहचान इंदौर में पढ़ाई के दौरान हुई थी। तेजेंद्र ड्राइवर था, जो अक्सर अर्चना को बाहर ले जाया करता था। इस बार उसने नर्मदापुरम से ट्रेन में चढ़कर अर्चना को साड़ी और कपड़े दिए। तीनों ने मिलकर तय किया कि गुमशुदगी का नाटक करना ज्यादा आसान रहेगा।ओ
शुरुआत इंदौर से दिल्ली, फिर नेपाल तक का सफर
तेजेंद्र और सारांश की मदद से अर्चना इटारसी से निकलकर शुजालपुर पहुंचीं। वहां से उन्होंने लंबा रूट लिया, ताकि किसी टोल प्लाजा या कैमरे में न आएं। शुजालपुर से वे बुरहानपुर गईं। वहां से हैदराबाद और फिर जोधपुर होते हुए दिल्ली पहुंचीं। इसके बाद सारांश के साथ 14 अगस्त को नेपाल चली गईं। इस दौरान अर्चना ने नई सिम कार्ड या फोन भी मध्य प्रदेश से नहीं लिया, ताकि कहीं भी उनकी ट्रैकिंग न हो सके।
सुराग के लिए 500 से ज्यादा सीसीटीवी खंगाले
अर्चना की तलाश में जीआरपी की 70 सदस्यीय टीम ने करीब 12-13 दिन तक दिन-रात काम किया। टीम ने 500 से अधिक सीसीटीवी फुटेज खंगाले। जांच का बड़ा सुराग तब मिला जब अर्चना की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) में एक नंबर पर लंबे समय तक बातचीत दर्ज हुई। वह नंबर सारांश का निकला। वहीं से पुलिस ने कड़ियां जोड़नी शुरू की। सारांश को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई तो पूरा राज खुल गया।
अर्चना नेपाल बॉर्डर से बरामद हुई
जैसे ही पुलिस ने सारांश को पकड़ा, खबर अर्चना तक भी पहुंच गई। तब तक वे नेपाल में थीं, लेकिन परिवार से संपर्क करने के बाद नेपाल-भारत बॉर्डर से लौट आईं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी कस्बे से उन्हें सुरक्षित बरामद किया गया। इसके बाद भोपाल लाकर पूछताछ की गई।
सारी कहानी शादी से बचने के लिए रची गई
पुलिस जांच में सामने आया कि अर्चना की गुमशुदगी के पीछे की असली वजह उनकी शादी थी। परिवार ने उनका रिश्ता एक पटवारी से तय कर दिया था और उन पर पढ़ाई छोड़कर शादी की तैयारी करने का दबाव था। लेकिन, अर्चना इसके लिए तैयार नहीं थीं। इस कारण उन्होंने गुमशुदगी का नाटक रच डाला ताकि शादी टल सके
पूरे मामले में कई तरह की अटकलें भी लगाई गईं। लेकिन, पूछताछ में अर्चना ने साफ कहा कि सारांश के साथ उनके कोई प्रेम संबंध नहीं हैं। वह सिर्फ उनका दोस्त है, जिसने इस पूरी योजना में मदद की। जांच के दौरान सिपाही राम तोमर का नाम भी चर्चा में आया। लेकिन, पुलिस ने स्पष्ट किया कि अर्चना की गुमशुदगी में राम तोमर का कोई हाथ नहीं है।





