रविवारीय गपशप: पासपोर्ट तो बन गया लेकिन विदेश यात्रा के लिए वित्त विभाग की अनुमति में पसीना आ गया

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रविवारीय गपशप: पासपोर्ट तो बन गया लेकिन विदेश यात्रा के लिए वित्त विभाग की अनुमति में पसीना आ गया

आनंद शर्मा

अब तो सरकारी नौकरी में रह के विदेश घूमना सरल हो गया है , पर बीच पचीस बरस पहले ये राह इतनी आसान नहीं थी । पासपोर्ट बनना तो तब बहुत आसान था पर बनवाने के लिए अनुमति मिलने में ही पसीने छूट जाते थे । आवेदन करने पर ही ढेर सारी प्रश्नावलियाँ आरंभ हो जातीं । कहाँ जाना है , कब जाना है , क्यों जाना है ? व्यय कौन वहन करेगा , क्यों करेगा , आदि आदि इत्यादि । मुझे जब उज्जैन में सूझा कि पासपोर्ट बनवा लूँ तो , पासपोर्ट बनाने वाले एजेंट ने कहा आप तो सरकारी अधिकारी हो , आपका पासपोर्ट तो झट बन जाएगा , बस विभाग की अनुमति होना चाहिए । मैंने आवेदन लिखने का सोचा तो सामने मुख्य प्रश्न था क्यों बनवाना चाहते हो ? मैंने वही किया जो हर तरह की मुसीबत आने पर हम करा करते थे , यानी उज्जैन में पदस्थ ए.डी.एम. श्री ए.के.सिंह उर्फ दाढ़ी वाले साहब से सलाह लेना । सिंह साहब बोले तुम ऐसा करो प्रयोजन लिख दो मानसरोवर यात्रा पर जाना चाहते हो , आजकल सरकार भी इसके लिए प्रोत्साहन दे रही है , और पासपोर्ट बन जाए तो फिर जहाँ चाहे जाओ कौन रोकेगा ? हाँ बाहर जाने के पहले एक बार फिर अनुमति ज़रूर ले लेना । मैंने वही किया और नतीजतन अगले एक माह में अनुमति और पासपोर्ट सब आ गया , पर विदेश जाने का संयोग बना उसके कई बरस बाद जब मैं परिवहन विभाग में उपआयुक्त प्रशासन हो गया । ऑफिस में आए भारत सरकार के एक सर्कुलर से मुझे पता लगा कि परिवहन से संबंधित एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में जिसे भारत और सिंगापुर सरकार आयोजित कर रहे हैं जाने का संयोग बन सकता है । मैंने परिवहन आयुक्त श्री एन.के.त्रिपाठी से सलाह ली तो उन्होंने न केवल अनुमति दी , बल्कि ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए नियत फॉर्म को कैसे भरना है ये भी सिखाया ।

कुछ दिनों बाद भारत सरकार से पत्र आ गया कि मेरा आवेदन मंज़ूर कर लिया गया है और मुझे सिंगापुर के लिये अगले पंद्रह दिन में निकलना है । मैं तो ख़ुशी से फूला न समाया । दौड़ा दौड़ा एन.के.त्रिपाठी साहब के पास गया और उन्हें पत्र दिखाते हुए बताया कि चयन हो गया है और ट्रेनिंग में होने वाले सभी खर्च यहाँ तक कि रुकने खाने जी सहित सिंगापुर सरकार वहन करेगी बस आने जाने का खर्च और विदेश जाने की अनुमति लगेगी । उन्होंने पूछा कितने की है टिकट ? मैंने झट मोबाइल दिखा कर कहा मात्र नौ हज़ार । त्रिपाठी जी बोले बस इतना ही , फिर क्या दिक्कत है , और मेरे सामने ही शासन को अनुशंसा का पत्र लिख , प्रमुख सचिव को सिफारिशी फोन भी कर दिया । दरियादिली में त्रिपाठी साहब का कोई सानी था ही नहीं , बस मैं ख़ुशी ख़ुशी आकर अपनी पहली विदेश यात्रा की तैयारी करने लगा । सामान्य प्रशासन विभाग में सीमा शर्मा मैडम ने तुरंत अनुमति जारी कर दी , परिवहन में एम.के.रॉय साहब की मंज़ूरी भी साथ ही साथ आ गई , पर वित्त विभाग की यात्रा व्यय की मंज़ूरी नहीं आई । जाने में दो ही दिन , बचे थे और मैं बैचेन हो रहा था । वित्त विभाग में कांता राव साहब थे , जो कुछ दिनों पहले ही कलेक्टर शिवपुरी हुआ करते थे और मेरे परिचित थे । मैंने उन्हें फोन लगाया तो वो बोले विभाग से तो आपकी यात्रा के लिए असहमति का प्रस्ताव मंत्री जी को फाइल पर पुटअप हो गया है । मैंने अर्ज की कि सर पूरा खर्च सिंगापुर की सरकार उठा रही है और यात्रा व्यय तो मात्र नौ हज़ार रुपये ही है , इस पर आपत्ति क्यों ? वे बोले विभाग से डिसेंट नोट ही जाता है , आप अपने लेवल पर कोशिश कर लो । मैं हैरान रह गया , मेरा अपना तो कोई लेवल था ही नहीं , कुछ ना सूझा तो मैं त्रिपाठी साहब के सामने जा पहुँचा । मेरा लटका मुँह देख कर कमिश्नर साहब बोले क्या हो गया ? मैंने स्थिति बयान की और कहा सर मैं तो किसी को जानता ही नहीं , अब क्या करूँ ? उन्होंने कहा आप बैठो और स्टेनो को फ़ोन पर बोले वित्त मंत्री जी से मेरी बात कराओ । उन दिनों राघव जी वित्त मंत्री हुआ करते थे । थोड़े देर में ही मंत्री जी को फ़ोन लग गया । त्रिपाठी साहब ने मंत्री जी से कहा हमारा विभाग शासन को आठ सौ करोड़ का राजस्व देता है और वित्त विभाग हमारे ऑफिसर की ट्रेनिंग पर नौ हज़ार भी खर्च करने पर आपत्ति कर रहा है । मंत्री जी ने डिटेल्स पूछे और कहा आप निश्चिंत रहो । मैं अपने चेम्बर में वापस आकर बैठा ही था कि थोड़ी ही देर में वित्त मंत्री जी के विशेष सहायक संजय गुप्ता , जो अभी अभी आयुक्त उज्जैन संभाग से रिटायर हुए हैं , का फ़ोन मेरे पास आ गया ।गुप्ता जी बोले जाइए पैकिंग करिए , विभाग की आपत्ति को दरकिनार कर मंत्री जी ने आपको सिंगापुर जाने की अनुमति जारी कर दी है ।

पासपोर्ट तो बन गया लेकिन विदेश जाने के लिए वित्त विभाग की अनुमति में पसीना आ गया