
राज-काज: BJP: बड़ों को फटकार, छोटों पर कार्रवाई, यह कैसा न्याय….?
* दिनेश निगम ‘त्यागी’
BJP: बड़ों को फटकार, छोटों पर कार्रवाई, यह कैसा न्याय….?

– प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने जब भिंड कलेक्टर से बदतमीजी करने वाले विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह को तलब किया तभी से सबकी नजर उन पर होने वाले एक्शन पर थी। इसलिए भी कि चंबल अंचल के दो मंडल अध्यक्षों के इस्तीफे गलत आचरण पर लिए जा चुके थे। पर यहां खंडेलवाल के साथ प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने निराश किया। विंध्य अंचल के पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी की तरह कुशवाह को भी सिर्फ फटकार लगाई गई। कहा गया कि आपका आचरण पार्टी लाइन के खिलाफ है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यह ऐसा ही हुआ जैसे भगवान महाकाल मंदिर के गर्भगृह तक आम लोगों को जाने की अनुमति नहीं मिलती लेकिन वीआईपी और रसूखदारों को प्रवेश दे दिया जाता है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने भी दोहरा पैमाना अपनाया। छोटेे नेताओं ने अनुशासन तोड़ा तो तत्काल इस्तीफा, लेकिन विधायक, सांसद, मंत्री अथवा कोई बड़ा नेताा ऐसा करे तो सिर्फ चेतावनी। यह कैसा न्याय? कुशवाह से यह भी कहा गया कि भविष्य में ऐसा किया तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सवाल है कि आखिर, इनके लिए बर्दाश्त का पैमाना क्या है? प्रदेश अध्यक्ष खंडेलवाल ने कार्यभार संभालने के साथ अनुशासन पर फाेकस बनाया था, इसलिए बड़ा हो या छोटा, सब पर एक जैसी कार्रवाई होना चाहिए। वर्ना अनुशासन टूटते रहेंगे और चेतावनियां बेअसर होती रहेंगी।
* पटवारी का महिलाओं पर बयान ‘सेल्फ गोल’ जैसा….*

– कांग्रेस लंबे समय से प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही है। अचानक पार्टी के नेता ऐसा ‘सेल्फ गोल’ कर बैठते हैं, जिससे पूरे किए-कराए पर पानी फिर जाता है। इस बार ऐसा किया खुद प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने। उन्होंने कह दिया कि देश में मप्र ऐसा राज्य है, जहां की महिलाएं सबसे ज्यादा शराब पीती और नशा करती हैं। यह भी कहा कि वे अपनी तरफ से यह नहीं कह रहे हैं बल्कि सरकार की एक रिपोर्ट ऐसा कहती है। पटवारी ने ऐसी कौन सी रिपोर्ट पढ़ ली, वे ही जाने लेकिन उनके यह बोलते ही भाजपा ने बवाल खड़ा कर दिया। वैसे भी लाड़ली बहना जैसी योजनाओं के कारण महिलाएं चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी ताकत बन चुकी हैं, ऐसे में कांग्रेस के उस नेता द्वारा महिलाओं को शराबी कहना, जिस पर पार्टी नेतृत्व ने प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में लाने की बागडोर सौंपी है, अपने पैर में कुल्हाड़ी पटकना ही है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल सहित तमाम नेताओं ने पटवारी के बयान को महिलाओं का अपमान बताया। भाजपा महिला मोर्चा ने जगह-जगह प्रदर्शन किए, पुतले जलाए। बाद में पटवारी ने बार-बार सफाई दी लेकिन कोई सुनने तैयार नहीं। आखिर कांग्रेस के नेता ऐसे कैसे बहक जाते हैं? मुख्यमंत्री डॉ यादव ने कह ही दिया था की रात की उतरी नहीं होगी।
* लीजिए, नाथ-दिग्गी ने ही दे दी ज्योति को क्लीनचिट….*

– कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच झगड़े का सबसे ज्यादा फायदा किसी को मिला तो वे हैं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरािदत्य। कांग्रेस नेता उन पर पार्टी को तोड़ने और सरकार गिराने का आरोप लगाते आ रहे थे। कहा जा रहा था कि पद के लालच में उन्होंने ऐसा किया। पर नाथ और दिग्गी के झगड़े ने ही उन्हें क्लीनचिट दे दी। शुरुआत दिग्विजय ने की। उन्होंने कहा कि कमलनाथ की कार्यशैली से ज्योतिरादित्य नाराज थे। मैंने समझौता बैठक कराई लेकिन बात नहीं बनी और सिंधिया ने 22 विधायक तोड़ कर कांग्रेस सरकार गिरा दी। कमलनाथ ने भी पलटवार किया। उन्होंने कहा कि सिंधिया को लग रहा था कि सरकार मैं नहीं, दिग्विजय चला रहे हैं। इसकी वजह से नाराजगी थी और सिंधिया पार्टी छोड़ गए। दोनों के आरोप-प्रत्यारोप से साफ हो गया कि ज्योतिरादित्य उतने दोषी नहीं, जितना बताया जा रहा था। सिंधिया भी विवाद में कूदे। उन्होंने कहा कि उनके परिवार को लेकर इतनी टीका-टिप्पणी की गई कि उन्हें कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि इस झगड़े को भी राज्यसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। 2026 में दिग्विजय के राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने वाला है। यह सीट कांग्रेस को मिल सकती है। ज्योतिरादित्य से भी झगड़ा राज्यसभा की सीट को लेकर बढ़ा था और अंतत: वे कांग्रेस तोड़ कर भाजपा से राज्यसभा में पहुंचे थे।
* शिवराज, वसुंधरा में से किसी के हाथ लगेगी बाजी….!*

– आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक कथन ने भाजपा नेतृत्व पर पार्टी अध्यक्ष को लेकर जल्दी निर्णय करने का दबाव बढ़ा दिया है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि यदि संघ को निर्णय लेना होता तो इतना विलंब नहीं लगता। संघ सिर्फ सलाह देने का काम करता है, मानना या न मानना भाजपा नेतृत्व के पाले में रहता है। इसके बाद भाजपा अध्यक्ष को लेकर कवायद तेज हो गई है। इस पद के लिए दो नाम चर्चा में हैं। पहला, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और दूसरा, राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे सिंधिया का। वसुंधरा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह के साथ दो मुलाकातें हो चुकी हैं जबकि शिवराज की हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत से लगभग पौन घंटे तक चर्चा हुई। इन मुलाकातों को राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। अच्छी बात यह है कि ये दोंनो नेता मप्र से जुड़े हैं। शिवराज तो यहां के हैं ही, वंसुधरा भी ग्वालियर के सिंधिया घराने से हैं। राजनीतिक हलकों में राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए इन दोनों के नाम शीर्ष पर बताए जा रहे हैं। इनमें से बाजी किसके हाथ लगती है और राष्ट्रीय अध्यक्ष का ताज किसके सिर बंधता है, इस पर सभी की नजर है। हालांकि ऐसा होगा, यह जरूरी नहीं क्योंकि मोदी-शाह के राज में चर्चा किसी की रहती है, बाद में बाजी कोई और मार ले जाता है।
* यह सिंधिया की पकड़ ढीली पड़ने की वजह तो नहीं….!*

– शिवपुरी में नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ एक साथ 18 पार्षदों के इस्तीफे भाजपा से ज्यादा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खतरे की घंटी है। इसलिए भी क्योंकि उन्होंने पार्षदों को समझाने के पूरे प्रयास किए लेकिन वे नहीं माने। दरअसल, चंबल-ग्वालियर अंचल में विधानसभा के पिछले चुनाव में ज्योतिरादित्य के कई समर्थको को पराजय का सामना करना पड़ा था। इसकी वजह से 2019 के मुकाबले विधानसभा में उनके समर्थक सदस्यों की तादाद काफी कम है। अंचल में यह उनकी पकड़ कमजोर होने का संकेत था। बावजूद इसके गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र को सिंधिया परिवार का गढ़ कहा जाता है। गुना में दिग्विजय सिंह जैसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन केपी सिंह को अपवाद छोड़ दें तो शिवपुरी में इस परिवार काे कभी चुनौती नहीं रही। अब शिवपुरी जिला मुख्यालय में नगर पालिका के पार्षदों का एक साथ इस तरह इस्तीफा, सिंधिया के माथे पर बल लाने वाला है। 22 पार्षदों ने करैरा स्थित बगीचा सरकार मंदिर में नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा को हटाने की कसम खाई थी। इसके लिए उन्होंने नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था, लेकिन इसे खारिज कर दिया। अंतत: पार्षदों ने इस्तीफा देने का निर्णय लिया और सिंधिया के मनाने के बाद भी नहीं माने। इसकी वजह सरकार के उस अध्यादेश से नाराजगी भी है, जिसके जरिए निकाय अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को रोका गया है।
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