पर्व विशेष प्रसंग लोक पर्व – तेजा दशमी

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पर्व विशेष प्रसंग

लोक पर्व – तेजा दशमी
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वी पी पारीक स्तंभकार

(प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर)

वीर तेजाजी को राजस्थान के लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं। भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की दशमी को तेजा दशमी कहा जाता हैं। इस दिन वीर तेजा जी के थान पर मेला लगता हैं और उनकी जात भी लगती हैं। साँप के काटने से रक्षा के लिये तेजा जी के नाम का धागा बांधा जाता हैं। इससे व्यक्ति को प्राणों का संकट नही होता। तेजा दशमी के दिन वो धागा तेजा जी के स्थान पर खोल कर चढ़ाया जाता हैं।

2 सितम्बर को तेजा दशमी
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इस वर्ष तेजा दशमी 2 सितम्बर, 2025 मंगलवार के दिन मनाई जारही है ।

वीर तेजाजी से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य
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1. वीर तेजाजी को राजस्थान के लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात में वीर तेजाजी की पूजा की जाती हैं। वीर तेजाजी का जन्म जाट वंश में माघ माह की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन वर्ष 1074 ई. में राजस्थान राज्य के नागौर जिले के खरनाल (वर्तमान खरनाल) गाँव में हुआ था।

2. इनकी माता का नाम राजकुंवर और पिता का नाम ताहड़ जी था। तेजाजी का विवाह पनेर (अजमेर जिले में स्थित है) रायचन्द्र की पुत्री पैमलदे (पैमल) के साथ हुआ।

3. तेजाजी को भी गोगाजी की ही भांति गायों के मुक्तिदाता और नागों के देवता के रूप में पूजा जाता हैं।

4. तेजाजी के पुजारी (भोपे) को घोड़ला (घुड़ला) और तेजाजी के चबूतरे को थान कहते हैं।

5. तेजाजी को मूर्तियों और चित्रों में उन्हे घोड़े पर सवार और तलवार लिये एक योद्धा के रूप में दर्शाया जाता हैं।

6. तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण था। ऐसा कहा जाता है कि उनकी मृत्यु का समाचार उनकी घोड़ी ने ही उनके घर पहुँचाया था।

7. तेजाजी का मूल स्थान सैंदरिया हैं। ऐतिहासिक पुस्तकों में ऐसा उल्लेख है कि तेजाजी का स्वर्गवास अजमेर के किशनगढ़ स्थित सुरसुरा नामक स्थान पर हुआ था।

8. तेजाजी का एक प्राचीन थान (चबूतरा) ब्यावर के तेजा चौक में स्थित हैं।

9. हर साल तेजाजी की याद में भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की दशमी पर नागौर जिले के परबतसर नामक गांव में तेजा पशु मेलें का आयोजन किया जाता हैं।

10. वीर तेजाजी को काला-बाला के देवता, सर्पों के देवता तथा कृषि कार्यों का उपकारक देवता कहा जाता हैं।

वीर तेजाजी की कहानी
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वीर तेजाजी के नाम से प्रसिद्ध राजस्थान के लोकदेवता तेजाजी का जन्म राज्स्थान के नागौर जिले में खड़नाल नाम के गांव में हुआ था। उनका जन्म जाट वंश में हुआ था। उनके पिता का नाम ताहड़जी (ताहरजी) और माता का नाम रामकुंवर था। तेजाजी का जन्म माघ माह की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी वि.सं. 1130 को यानि 29 जनवरी 1074 को हुआ था। तेजाजी अपने बाल्यकाल से बहुत निर्भीक, वीर, साहसी और वचने के पक्के थे। उनके द्वारा किये जाने वाले आश्चर्यजनक कार्यों और उनके गुणों के कारण उनको लोग अवतारी पुरूष माना करते थे। वीर तेजाजी का विवाह राजस्थान राज्य के अजमेर जिले के पनेर नामक स्थान के रायचन्द्र जी की पुत्री पैमलदे (पैमल) के साथ हुआ था। ऐतिहासिक कहानी के अनुसार वीर तेजाजी की एक मुहँबोली बहन थी लाछां गूजरी। एक बार जब वो अपनी मुहँबोली बहन लाछां गूजरी से मिलने गये तो उन्हे ज्ञात हुआ की उसकी गायों को मेर के लोग चुरा कर ले गये हैं। अपनी बहन की सहायता करने के लिये और उसकी गायों को वापस लाने के लिये वीर तेजाजी अपने घोड़े पर सवार होकर मेर के लोगों के पीछे गये। मार्ग में भाषक नाम के एक सर्प ने उनका रास्ता रोक लिया। वो नाग तेजाजी को काटना चाहता था। वीर तेजाजी ने उस सर्प को मार्ग से हटने के लिये कहा, परंतु वो नही माना। उसको मार्ग से हटाने के लिये वीर तेजाजी ने उसे वचन दिया कि, हे सर्प देवता! मैं अभी अपनी बहन की गायों को छुड़ाने के लिये जा रहा हूँ। जब मैं उन गायों को मुक्त करा लूंगा, तब मैं स्वयं तुम्हारे पास आ जाऊँगा। तब तुम मुझे ड़स लेना। किंतु तुम मुझे अभी जाने दो। तेजाजी द्वारा दिये गये उस वचन को मानकर उस नाग ने उनका मार्ग छोड़ दिया।

तेजाजी का मेर के लोगों से भीषण संग्राम हुआ। वीर तेजाजी के सामने उन लोगों की एक ना चली और तेजाजी ने उन सभी को मृत्यु के घाट उतार कर उन गायों को उनसे मुक्त कराया। अपनी बहन की गायों को मुक्त कराने के पश्चात्‌ सर्प को दिये अपने वचन को निभाने के लिये वो उस साँप के पास गये। जब तेजाजी उस साँप के पास पहुँचे तो वो बुरी तरह से लहूलुहान हो रखे थे। उनके शरीर पर जगह-जगह घाव हो रखे थे, जिनसे रक्त बह रहा था। तब उस सर्प ने उनसे कहा, तुम्हारा पूरा शरीर घायल हो रखा हैं, सभी घावों से रक्त बह रहा हैं। रक्त से भीगा तुम्हारा शरीर तो अपवित्र हो गया है। अब मैं कहाँ ड़सूँ? तब तेजाजी ने उसे अपनी जिव्हा बताई और कहा, कि मेरी जिव्हा अभी तक सकुशल हैं, तुम यहाँ पर ड़स सकते हो।

वो सर्प वीर तेजाजी की वचनपरायणता को देखकर बहुत प्रसन्न हो गया। उसने उन्हे आशीर्वाद दिया कि अब से जो कोई भी सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति तुम्हारे नाम का धागा बाँधेगा उस पर विष का प्रभाव नही होगा। ऐसा कहकर उस भाषक सर्प ने उनके घोड़े पर चढ़कर उनकी जिव्हा पर ड़स लिया। उस दिन भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की दशमी थी। इसलिये तभी से इस दिन तेजा दशमी मनाई जाती हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि सर्पदंश के स्थान पर तेजाजी के नाम का धागा (तांती) बाँधने से सर्पदंश से पीड़ित पशु या मनुष्य पर साँप के विष का प्रभाव नही होता। और वो जल्द ही स्वस्थ हो जाता हैं।
तेजा दशमी का त्यौहार लोगों की श्रद्धा, भक्ति के साथ उनकी आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं। तेजा दशमी से एक दिन पहले नौमी को पूरी रात जागरण का आयोजन किया जाता हैं। वीर तेजाजी के थान एवं मंदिरों पर मेलें लगते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्दालु तेजाजी के मंदिरों पर जाते हैं। वहाँ पर पीड़ितों का धागा खोला जाता हैं। तेजा जी की प्रसादी और भंड़ारा होता हैं।

क्यों चढ़ाई जाती है छतरी?
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तेजाजी महाराज को छतरी इसलिए चढ़ाते हैं, क्योंकि मनोकामना पूरी होने पर भक्त सामूहिक रूप से तेजाजी मंदिरों पर जाकर ढोल-ढमाकों के साथ छतरी चढ़ाते हैं। यह एक प्रथा है जिसके माध्यम से भक्त अपनी इच्छाएं पूरी होने पर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते है।